पुरातत्‍व भी नहीं सुलझा पाया अब तक ये 10 रहस्‍य

कंबोडिया में 2016 में पुरातत्व विभाग ने हज़ारों गुंबद जैसे मिट्टी के टीलों की खोज की, ग्रिड के आकार के ये टीले करीब 1000 साल पुराने बताये जा रहे हैं। इनमें से कुछ घुमावदार हैं। अजीब बात है कि इतने बड़े आकार के होने बावजूद ये सदियों तक किसी को नजर नहीं आये। इनकी जानकारी तब हुई शोधकर्ताओं लेज़र तकनीक से जंगल को स्कैन कर रहे थे। इसके बाद एक और सवाल अनसुलझा है कि खमेर साम्राज्य के बताये जा रहे इन टीलों का र्निमाण कंबोडिया के मंदिरों के इर्द-गिर्द क्यों करवाया गया।

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जियोग्लिप्स ज़मीन पर बने 300 से 1300 ​मीटर बड़े पत्थरों, पेड़ों या चट्टानों को मिला बनाये गए बड़े डिज़ाइन को कहते हैं। दुनिया में सबसे ज्यादा पेरू की नजाका जियोग्लिप्स मशहूर हैं, लेकिन कुछ साल पहले पुरातत्व में रुचि रखने वाली डिमित्री डे ने गुगल अर्थ पर पिरामिड को सर्च करते हुए कज़ाकिस्तान के जियोग्लिप्स मैदान कोज लिए। जियोग्लिप्स मैदान में करीब 200 विशाल छल्ले, चौकोर और मिट्टी की लाइन जैसे टीले हैं जो एक मीटर ऊंचे और 12 मीटर चौड़े हैं। पर ये पता नहीं चला है कि ये किस सभ्यता के हैं। अब तक उत्तरी कज़ाकिस्तान के तुरगाई इलाके में बने ये विशाल जियोग्लिपस अंतरिक्ष से ही पूरे आकर के दिखाई देते हैं। Tइनकी खूबसूरती देखने के बाद नासा ने इनके बारे में पूरी जानकारी खोजने का फैसला किया है।

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ऐसा नहीं कि भारत इन बातों से अछूता है, यहां भी 16वीं शताब्दी में बना लेपाक्षी मंदिर इंजीनियरिंग विशेषज्ञों के लिए चुनौती बना हुआ है। इस मंदिर में 69 स्तंभ हैं जिनमें से एक ऐसा आश्चर्यजनक खंभा है जो ज़मीन को नहीं छूता बल्कि छत से हवा में लटका हुआ है। इसके तले में इतनी जगह है कि अखबार का पन्ना या कपड़ा इसके नीचे से निकल जाता है। इस मंदिर का र्निमाण 1583 में दक्षिणी आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में दो भाइयों वीरन्ना और विरुपन्ना ने बनवाया

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सर एलेक किर्रकब्रिडे ने 1948 में गलती से जॉर्डन में लगभग 150 किलोमीटर तक फैली इस खट्ट शहबीब दीवार को प्लेन में घूमते हुए खोज लिया था। तभी से इस दीवार के पीछे का इतिहास जानने के लिए वैज्ञानिक प्रयास में लगे हुए हैं, पर अब तक कुछ पता नहीं लगा। इस दीवार की लम्बाई 1 मीटर और चौड़ाई 0.5 मीटर है जो ये बात जाहिर करती है कि इसे युद्ध में दुश्मन से रक्षा के इरादे से तो नहीं बनाया गया था। इसका र्निमाण काल 312 BC–AD 106 या फिर AD 661–750 के आस-पास का होने की संभावना जतायी जाती है।

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दक्षिण इजराइल में बसे हैं नितजाना, हालुजा और शिवता शहर, अजीब बात ये है कि अपने दौर के व्यापारिक और सांस्कृतिक केन्द्र समझे जाने वाले इन शहरों को देख कर लगता है कि जैसे यहां के निवासी अचानक अपने घर छोड़ कर कहीं चले गए। ये घर इस तरह सीलबंद किए गए हैं जैसे घरवालों का वापसी का पूरा इरादा था, पर फिर वे वापस क्यों नहीं लौटै ये राज अब तक अनसुलझा है। यहां बसी शानदार बस्ती और बेहतरीन सड़कों को देख कर यही लगता है कि ये एक विकसित सभ्यता थी। पर फिर सब लोग इस तरह गायब क्यों हो गए, क्या किसी बीमारी, बदलते मौसम या बाहरी हमले की वजह से। पुरातत्व विभाग इसका भी कोई सबूत नहीं खोज पाया क्योंकि ऐसी किसी चीज के निशान भी यहां नहीं मिले हैं।

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फिलीपींस का सबसे मूल्यवान सांस्कृतिक और पुरातात्विक स्थान है इफुगाओ पर यहां पायी जाने वाली चावल की छतें कितने साल पुरानी हैं, इस बात पर सदियों से बहस चल रही है। हालाकि अमेरिकी मानव वैज्ञानिक, हेनरी ओटले बेयर और रॉय एफ. बर्टन इसे 2000 से 3000 साल पुराना बताते हैं। 1995 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित कर दिया।

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जॉर्डन के विशाल घेरे भी कोई छोटा मोटा रहस्य नहीं हैं। आखिर हर तरफ से बंद ये विशान घेरा जिसकी पत्थर की दीवार ज़्यादा ऊंची नहीं है, पर लगभग 400 मीटर के घेरे में है, क्यों, कब और किसने बनाया ये ऐसा राज है जिसके बारे में किसी को नहीं पता। इसके आस-पास की कलाकृतियों को देख कर यही अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि ये लगभग 2000 साल पुराना हो सकता है। पर सवाल वही है कि जिसमें घुसने के लिए दीवार फांद कर जाना पड़े ऐसा घेरा बनवाया क्यूं है।

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चीन के झियांगई प्रॉविंस की तीन गुफाओं में वैज्ञानिकों ने अनगिनत पाइप पाए गए हैं। अजीब बात ये है कि ये पाइप रहस्यमयी बात ये है कि ये पाइप माउंट बाइगांग के पास एक पिरामिड में पाए गए हैं। इन पाइप्य के आकार में भी अजीब विभिन्नता है कुछ तो बहुत बड़े हैं जबकि कुछ सुई जैसे महीन। करीब 30 हजार साल पुराने बताये जा रहे ये पाइप देखने में आम पाइप्स जैसे ही लगते हैं। इस रहस्यमयी पाइप में नया तड़का तब लगा जब वैज्ञानिकों ने खुलासा किया कि पाइप में यूज होने वाले आठ प्रतिशत मटीरियल के बारे में भी जानकारी नहीं मिल पा रही कि दरसल वो है क्या चीज। ये भी दावा किया गया है कि ये पाइप रेडियो एक्टिव हैं।

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साल 2015 में टॉम्स्क स्टेट यूनीवर्सिटी में अध्यनरत शोधार्थियों ने पता लगाया कि किर्गिज़स्तान की इसिक कुल झील में एक प्राचीन सभ्यता जलमग्न है। ये दुनिया की दसवीं सबसे बड़ी और कैस्पियन सागर के बाद दुनिया की दूसरी नमकीन पानी की झील है। इस झील के तल से करीब 200 कलाकृतियां मिलीं, जिसमें एक बड़ा चीनी मिट्टी का बर्तन भी शामिल है। इसके अलावा यहां पर अर्मेनियाई और सीरियाई लिपियां भी देखी गयीं। जिसके बाद दावा किया किया गया कि सेंट मैथ्यु को यहीं दफनाया गया था। हालाकि कैथलिक मान्यता के अनुसार सेंट मैथ्यु को इटली के सालेरॉनो कैथ्रेडल में दफनाया गया बताते हैं। पर इन सबूतों के मिलने के बाद से  रूढ़िवादी चर्च के अनुयायी की मान्यता को बल मिला है। वे लोग मानते हैं कि सेंट मैथ्यु की मृत्यु के बाद रोमन उत्पीड़न बचाने के लिए उनके पार्थिक शरीर को सीरिया से किर्गिज़स्तान ले ​आया गया था, और उनके अवशेष अर्मेनियाई मठ में स्थित इसिक कुल झील में रख दिए गए थे।

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सऊदी अरब के स्टोनहेंज को अल राजाजिल भी कहते हैं, जिसका मतलब होता है आदमी। सामान्य तौर पर आपको इनमें कुछ खास नहीं दिखेगा, लेकिन जब आप इसे ऊंचाई से देखेंगे तो ये सूर्योदय और सूर्यास्त की एक सीध में दिखेंगे। अब तक वैज्ञानिक इसके इतिहास के बारे में नहीं पता कर पाये हैं। ये स्पष्ट नहीं हो सका है कि इन्हें किसने बनाया और क्यों बनाया। हालाकि क्योंकि इन पर कोई चढ़ावा नहीं चढ़ता ना ही कोई पूजा अनुष्ठान होता है इसलिए ये साफ है कि ये धार्मिक कार्य के लिए नहीं हैं।  पुरातत्व विभाग को लगता है कि इसके र्निमाता ने इसे खगोलीय या राजनीतिक कारणों से बनवाया होगा। कहते हैं इन पत्थरों में कई रहस्य छिपे हैं। कुछ स्थानों पर कई स्टोनहेंज गिर चुके हैं और कई आज भी टेढ़े खड़े हैं। ये 54 ग्रुप में बंटे हैं। प्रत्येक ग्रुप में दो से 19 पत्थर के खंभे हैं।

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