RANCHI: पिछले भ्0 दिनों में मेजर थैलेसीमिया के क्ब्क् मरीज रिम्स पहुंचे। इस बीमारी से ग्रसित बच्चे पेडियाट्रिक वार्ड में भर्ती किए गए हैं। इन्हें हर विजिट पर दो यूनिट ब्लड चढ़ाया जाता है। ऐसे में खून की डिमांड भी काफी बढ़ जाती है। दरअसल, खून की कमी से होने वाली और ताउम्र खत्म न होने वाली जेनेटिक बीमारी थैलेसीमिया जागरूकता के अभाव में फैल रही है। लोगों के ध्यान नहीं देने के कारण बच्चा पूरी तरह ग्रसित हो जाता है, तब बीमारी का पता चलता है। हालांकि, कई डॉक्टर्स शादी से पहले युवक-युवती को जांच कराने के लिए कहते है कि कहीं उनमें से किसी को इसकी शिकायत तो नहीं है। ताकि शादी के बाद उनका होने वाला बच्चा इस बीमारी से ग्रसित न हो जाए।

उम्र के साथ घटता है हीमोग्लोबिन

एक्सपर्ट की मानें, तो थैलेसीमिया के पेशेंट की बॉडी में हीमोग्लोबिन बनने की रफ्तार कम हो जाती है। ऐसे में हीमोग्लोबिन को क्ख्-क्ब् पर मेंटेन रखना एक बड़ी चुनौती बन जाती है। लेकिन सबसे बड़ी चिंता का विषय यह है कि जैसे-जैसे मरीज की उम्र बढ़ती जाती है, उसे ब्लड की जरूरत ज्यादा पड़ने लगती है।

पहला बच्चा हो ग्रसित, तो कराएं स्क्रीनिंग

रिम्स के पेडिया वार्ड की डॉ दिव्या सिंह बताती हैं कि अक्सर लोगों को पहले बच्चे की डिलीवरी के बाद पता चलता है कि उनका बच्चा थैलेसीमिया से ग्रसित है। उन्हें यह भी मालूम नहीं होता कि उन दोनों में से किसी एक में यह प्राब्लम है। ऐसे में उन्हें दोबारा प्रेग्नेंसी के समय स्क्रीनिंग कराने की सलाह दी जाती है, ताकि यह कंफर्म हो सके कि गर्भ में पल रहे बच्चे को भी यह बीमारी न हो जाए।

स्क्रीनिंग की नहीं है व्यवस्था

डॉ। दिव्या बताती हैं कि जेनरल स्क्रीनिंग की तो रिम्स में व्यवस्था है। लेकिन प्रेग्नेंसी के दौरान टेस्ट कराने की व्यवस्था झारखंड में कहीं नहीं है। इसके लिए लोगों को झारखंड से बाहर जाना होता है।