RANCHI: झारखंड के क्भ् परसेंट लोग अस्थमा(दमा) की चपेट में हैं। इसकी मूल वजह राज्य में पॉल्यूशन का लेवल हाई होना है। वहीं, इग्नोरेंस के कारण असमय मौत का भी यह एक बड़ा कारण साबित हो रहा है। अस्थमा के रोगियों में फ्0-फ्भ् परसेंट को यह बीमारी उनके माता-पिता से मिली हैं। ये बातें व‌र्ल्ड अस्थमा डे से पहले प्रेस कांफ्रेंस में डॉ। श्यामल सरकार ने कहीं। डॉ। निरुपम शरण ने कहा कि सांस लेने में किसी भी तरह की प्राब्लम हो, तो उसे स्पाइरोमेट्री टेस्ट और पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट कराना जरूरी है। इससे अर्ली स्टेज में ही बीमारी का पता चल जाएगा, तो मरीज का तत्काल इलाज शुरू किया जा सकेगा।

प्री मैच्योर जन्मे बच्चे को ज्यादा खतरा

डॉ श्यामल सरकार ने कहा कि सिजेरियन व प्री मैच्योर बेबी का जन्म हुआ है, तो उसे अस्थमा होने का तीन से चार गुना अधिक खतरा रहता है। यही वजह है कि अस्थमा की चपेट में आने वालों में छोटे बच्चों की संख्या बढ़ती जा रही है।

अगरबत्ती व क्वाइल बांट रही बीमारी

केवल गाडि़यों या सिगरेट का ही धुआं लोगों के लिए हानिकारक नहीं होता है, बल्कि पूजा के लिए इस्तेमाल की जाने वाली अगरबत्ती का धुआं भी आपको बीमार कर रहा है। वहीं घरों में मच्छरों को भगाने वाला क्वाइल का धुआं भी सिगरेट जितना ही खतरनाक है। इन सबके अलावा अगर घरों में चूल्हे का इस्तेमाल किया जाता है, तो वहां के लोगों को भी अस्थमा होने का खतरा काफी है।

क्या है लक्षण

-बार-बार खांसी

-सांस लेने में प्राब्लम

-सोते वक्त खर्राटे आना

.बॉक्स।

प्रापर ट्रीटमेंट से ठीक हो सकती है बीमारी

डॉ। निरूपम ने बताया कि अस्थमा को लेकर लोगों में अब भी अवेयरनेस की कमी है। इस वजह से लोगों को बीमारी होने के बाद भी इलाज के लिए नहीं जाते हैं। स्थिति यह हो जाती है कि अस्थमा लास्ट स्टेज में पहुंच जाता है और कई बार तो उस इंसान की मौत भी हो जाती है। इसके लिए इनहेलर एक बेहतर विकल्प हो सकता है। जो सीधे ब्रेथ ट्यूब में जाकर काम करता है। इससे मरीज को तत्काल राहत मिल जाती है। इसके अलावा अन्य दवाएं भी अवेलेवल हैं। इससे मरीज का प्रॉपर ट्रीटमेंट किया जा सकता है।