-विवादों में फंसी रही शताब्दीनगर योजना

-27 सालों से नहीं सुलझ पाया शताब्दीनगर योजना का विवाद

-योजना में मुआवजा और विकास कार्यो में एमडीए खर्च कर चुका मोटा धन

Meerut। शताब्दीनगर आवासीय योजना के लिए मेरठ विकास प्राधिकरण ने 1989 में किसानों से 1608 एकड़ भूमि का अर्जन किया था। इसमें जैनपुर व कंचनपुर घोपला की सबसे अधिक जमीन आई थी। यहां 1000 एकड़ भूमि पर एमडीए कब्जा ले चुका है, जबकि 600 एकड़ भूमि पर अब भी किसानों का कब्जा है।

नई नीति को लेकर फंसा पेंच

भूमि अधिग्रहण के समय से अब तक किसान अपनी भूमि का तीन बार मुआवजा भी उठा चुके हैं बावजूद इसके उन्होंने आज तक भूमि से अपना कब्जा नहीं छोड़ा। अब किसान नई भू-अधिनियम नीति के अनुसार मुआवजा भुगतान की मांग कर रहे थे। आज की तारीख में यह मुआवजा राशि लगभग 5800 रुपए बनती है। ऐसे में एमडीए बड़ी रकम बतौर मुआवजा किसानों को देनी होगी।

374 प्रति आवेदनों पर रार

दरअसल, अतिरिक्त मुआवजा न मिलने पर योजना के 374 किसानों ने शासन में पत्र भेजा था। पत्र में उन्होंने एमडीए से प्रधिकरण की धनराशि या उसके बदले अपनी जमीन वापसी की मांग रखी थी। किसानों की मांग पर शासन ने एमडीए वीसी को अपने विवेक से मामले का निस्तारण कर उसकी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश दिए थे।

फिगर स्पीक --

गांव -- 7 (जमीन)

किसानों की संख्या -- 2369

कुल अर्जित भूमि - 1620 एकड़

कब्जे में भूमि - 608 एकड़

विकास में खर्च राशि - 500 करोड़

किसानों को दी राशि - 200 करोड़

प्रतिकर के रूप में दी राशि- 337 करोड

200 करोड़ का लिया था कर्ज

एमडीए ने 200 करोड़ रुपए कए कर्ज उठा कर शताब्दीनगर के किसानों का मुआवजा भुगतान किया था। बावजूद इसके किसानों ने करीब 600 एकड़ जमीन से कब्जा नहीं छोड़ा और पूर्व की तरीके से जमीन को बोते-जोतते रहे। योजना को पंख लगाने के लिए एमडीए ने करोड़ों रुपए के टेंडर भी जारी किए, लेकिन किसानों ने वहां कोई काम शुरू नहीं करने दिया।

बॉक्स

कहीं उल्टी न पड़ जाए चाल

एमडीए वीसी योगेन्द्र यादव ने किसानों से जल्द से जल्द मामला निपटाने का वादा किया है। जबकि किसान शासन में जमीन वापसी को लेकर प्रार्थना पत्र दे चुके हैं। ऐसे में यदि एमडीए किसानों की जमीन वापसी पर सहमत हो जाता है, तो किसानों के सामने बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा। इस सूरत में किसानों को एमडीए द्वारा दिया गया मुआवजा व विकास शुल्क ब्याज के साथ वापस करना होगा, जो लगभग 1200 करोड़ रुपए के आसपास बनती है। इससे किसानों को बड़ा झटका लग सकता है। हालांकि पूरा परिणाम वीसी के फैसले पर टिका है।