RANCHI: झारखंड में करीब फ्भ् लाख लोग कॉमन मेंटल डिसआर्डर से ग्रसित हैं। अगर इस पर कंट्रोल नहीं किया गया तो लोग सीवियर मेंटल डिसआर्डर की चपेट में आ जाएंगे और ऐसी स्थिति में सुसाइड जैसे खतरनाक कदम भी उठा लेते हैं। ये बातें व‌र्ल्ड हेल्थ डे के मौके पर रिपोर्ट जारी करते हुए सीआइपी के डायरेक्टर डॉ। डी राम ने कहीं। उन्होंने कहा कि डिप्रेशन अब बड़े और उम्रदराज लोगों तक ही सीमित नहीं रह गया है, बल्कि प्री नर्सरी के बच्चे भी इसकी चपेट में हैं। यह चिंता का विषय है। क्ख् राज्यों में नेशनल हेल्थ मेंटल सर्वे की रिपोर्ट में ये चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। वहीं रिपोर्ट के आधार पर यह भी आशंका जताई जा रही है कि ख्0फ्0 तक डिप्रेशन मौत का एक बड़ा कारण होगा।

7भ् परसेंट नहीं कराते इलाज

देशभर में डिप्रेशन के मरीज बढ़ते जा रहे हैं। लेकिन स्थिति यह है कि आज भी 7भ् परसेंट डिप्रेशन के मरीज इलाज नहीं कराते हैं। इसकी वजह लोगों में जागरूकता की कमी है। जबकि डिप्रेशन के लिए दवा से ही इलाज संभव नहीं है। इसका इलाज थेरेपी से भी किया जा सकता है। डॉ। निशांत गोयल ने बताया कि गांवों में इग्नोरेंस की वजह से मरीजों की संख्या बढ़ रही है। वहीं अरबन एरिया में गांवों की तुलना में अधिक लोग डिप्रेशन की चपेट में हैं। डायरेक्टर डॉ.राम ने कहा कि अरबन एरिया में इसके बढ़ने की एक वजह न्यूक्लियर फैमिली भी है। जहां अपनी बातें शेयर करने के लिए कोई नहीं होता है। इस वजह से लोग सुसाइड जैसे कदम उठा लेते हैं।

स्कूलों में साइकोलॉजिस्ट नहीं

डॉ। बिनोद ने कहा कि स्कूलों में बच्चों का बिहेवियर देखने के लिए सीबीएसई ने एक गाइड लाइन जारी की है। जिसके तहत स्कूलों में एक क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट को अप्वाइंट किया जाना है। लेकिन स्कूल खर्च बचाने के चक्कर में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट को नहीं रखते। इस वजह से बच्चों में डिप्रेशन की जानकारी नहीं मिल पाती है। वहीं डायरेक्टर ने कहा कि सीआइपी से भी कुछ दिन एक्सप‌र्ट्स को रांची के स्कूलों में भेजा गया था, लेकिन स्कूलों ने ही इंटरेस्ट दिखाना बंद कर दिया।