इलाहाबाद संग्रहालय की दस हजार मूर्तियों को मिलेगा नया कलेवर

Gallery में रखी गई मूर्तियों को थ्री डी करने की योजना पर शुरू हो चुका है काम

संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के portal से जोड़ने में लगेगा कम से कम छह महीना

dhruva.shankar@inext.co.in

ALLAHABAD: अगर आप देश की ऐतिहासिक कला व संस्कृति से संबंधित मूर्तियों को देखना चाहते हैं लेकिन किसी कारणवश संग्रहालय में नहीं पहुंच पाते हैं तो आपकी मुश्किलें आसान हो जाएगी। इसके लिए बस आपको छह महीने इंतजार करना होगा। क्योंकि उसके बाद आपको इलाहाबाद संग्रहालय थ्री डी के जरिए देखा जा सकेगा। संग्रहालय प्रशासन ने गैलेरी में रखी गई दस हजार मूर्तियों को थ्री डी से दिखाने की दिशा में आगे बढ़ चुका है और पहले चरण का काम भी शुरू हो गया है।

पांच दिन पहले शुरू हुआ काम

थ्री डी यानि थ्री डायमेंशनल के सहारे मूर्तियों को दिखाने की दिशा में कार्य पांच दिन पहले शुरू हुआ था। इसके लिए संग्रहालय के निदेशक राजेश पुरोहित की अगुवाई में विशेषज्ञों की टीम काम कर रही है। संग्रहालय प्रशासन की मानें तो इस योजना को पूरा होने में एक साल का समय लग जाएगा।

मौजूद है दूसरी शती की मूर्ति

संग्रहालय में देश की ऐतिहासिक धरोहरों की दुर्लभ मूर्तियां का हजारों संग्रह रखा गया है। पांचवीं शती की ईट के बने फलक में कृष्ण और बलराम द्वारा प्रलम्ब राक्षस के वध का दृश्य, 11वीं शती की आलिंगन मुद्रा में उमा-माहेश्वर की मूर्ति, दूसरी शती की मद्यपान दृश्य व पांचवीं शती की एक मुखलिंग जैसी हजारों मूर्तियां शामिल हैं।

केन्द्र का 'जतन' बनाएगा आसान

केन्द्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय की वेबसाइट पर जतन नामक एक पोर्टल बनाया गया है। इस पोर्टल पर संग्रहालय अपनी वेबसाइट को लिंक करेगा। फिर उस लिंक के सहारे देश या दुनिया के किसी भी कोने में बैठकर कोई भी व्यक्ति इलाहाबाद संग्रहालय की ऐतिहासिक मूर्तियों को थ्री डी के जरिए आसानी से देख लेगा। खासतौर से मूर्ति की लम्बाई, चौड़ाई व गहराई का अवलोकन एक ही तरीके से कर सकेगा।

थ्री डी की खासियत

फिल्म हो या मूर्ति या कोई अन्य चीज थ्री डी में देखते वक्त आपको कोई भी दृश्य आपकी आंखों के सामने इस तरह घटित होता दिखता है। जैसी चीजें आपके आसपास से गुजर रही हो।

संग्रहालय को पूरी तरह से डिजिटल करने की दिशा में तेजी से काम हो रहा है। मूर्तियों को थ्री डी तकनीक के सहारे देश-दुनिया के किसी भी कोने में बैठकर देखा जा सकेगा। छह महीने में जतन पोर्टल से इसका लिंकअप कर दिया जाएगा।

राजेश पुरोहित, निदेशक इलाहाबाद संग्रहालय