शारदीय नवरात्रि (अक्टूबर माह में)
शारदीय नवरात्रि सिद्धि व विजय दिलाने वाली होती है। इन नवरात्रों में मां के दर्शन और उनकी पूजा करने से सिद्धि और विजय दोनों की प्राप्ति होती है। इस नवरात्रि का सबके बीच सबसे खास महत्व होता है। पूरे देशभर में इन नवरात्रि की रौनक देखने लायक होती है। विजय रूप में माने जाने वाले इन नवरात्रों के दसवें दिन विजयदशमी का पर्व मनाया जाता है, जो खुद बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। वैसे सभी नवरात्रों के बीच इन नवरात्रों को सबसे ज्यादा अहम माना जाता है। आदिशक्ति मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना का पर्व शारदीय नवरात्र हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है।

पूजा की विधि
आश्विन शुक्लपक्ष के पहले नवरात्र यानि प्रथमा को घरों व मंदिरों में कलश की स्थापना के साथ ही भक्तों की आस्था का ये त्योहार शारदीय नवरात्र आरम्भ हो जाता है। इसके साथ भक्त मिट्टी में जौं भी बोते हैं, जो नौ दिन में पककर जवारे बन जाते हैं। नौ दिनों तक चलने वाले इस महापर्व में मां भगवती के नौ रूपों क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धदात्री देवी की पूजा की जाती है। ये नौ दिन कई भक्त व्रत के साथ मां का श्रंगार कर उनकी उपासना करते हैं। नवरात्रि के अंतिम दिन यानी नवमी को कन्या भोज कराया जाता है। कन्याओं को मां का स्वरूप मानकर उन्हें भोज कराते हैं। इस भोज में हलवे और चने का विशेष महत्व होता है। उसके बाद कन्याओं को दक्षिणा व उपहार देकर विदा करते हैं। कन्याओं को भोज कराने के बाद भक्त खुद व्रत का पारण करते हैं। यह महापर्व सम्पूर्ण भारत में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।

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माघ गुप्त नवरात्रि (जनवरी के महीने में)
माघ गुप्त नवरात्रि को मनोरथ पूर्ण करने वाली नवरात्रि माना जाता है। इस नवरात्रि के महत्व के बारे में बताया जाता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम श्रीराम जब वनवास पर गए थे, तब माघी नवरात्रि में ही मेघनाद ने शक्ति की साधना करनी चाही थी, जिसे वानरों ने बिगाड़ दिया था। कहते हैं कि अगर उस समय उसकी साधना पूर्ण हो जाती तो निशाचरों का मनोरथ पूर्ण हो जाता।

चैत्र नवरात्रि (मार्च के महीने में)
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा मार्च के महीने में मनाई जाती है। जीवन की रीढ़ कृषि व प्राणों की रक्षा के लिए इन दोनों ही ऋतुओं वाले इस महीने में लहलहाती हुई फसलें खेत-खलिहान में आ जाती हैं। माना जाता है कि इन फसलों के रखरखाव व कीट पंतगों से रक्षा के लिए परिवार को सुखी व समृद्ध बनाने तथा कष्टों, दुःख-दरिद्रता से छुटकारा पाने के लिए सभी वर्ग के लोग इस महीने के नौ दिनों तक विशेष सफाई तथा पवित्रता को महत्व देते हुए नौ देवियों की आराधना, हवन आदि यज्ञ क्रियाएं करते हैं। इसके अलावा मां की आराधना को सफल बनाने के लिए भक्त इन नौ दिनों का व्रत भी करते हैं। यज्ञ क्रियाओं की मदद से दोबारा वर्षा होती है जो धन, धान्य से परिपूर्ण करती है।|

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अषाढ़ गुप्त नवरात्रि (जुलाई के महीने में)
जुलाई के महीने में अषाढ़ गुप्त नवरात्रि को मनाया जाता है। इनको गायत्री नवरात्रि के नाम से मनाया जाता है। इन नवरात्रों का दक्षिण भारत में खास महत्व है। इन दिनों दक्षिण भारत में वाराही देवी की आराधना की जाती है। पहले तीन दिन मां दुर्गा की पूजा होती है, अगले तीन दिन मां लक्ष्मी के होते हैं। अगले तीन दिन मां सरस्वती की पूजा-अर्चना की जाती है।

पौष गुप्त नवरात्रि (दिसंबर और जनवरी के बीच के महीने में)
पौष गुप्त नवरात्रि को दिसंबर के महीने में मनाया जाता है। शुक्ल पक्ष में इन नवरात्रों को मनाया जाता है। इन नवरात्रों में मां शाकंबरी देवी की पूजा की जाती है, इसलिए इन्हें शाकंबरी नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है। इन्हें ज्यादातर उत्तर-प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु और कर्नाटक में मनाया जाता है। इन नवरात्रों के पहले तीन दिन मां काली की पूजा की जाती है। उसके आगे की तीन दिन मां लक्ष्मी की और अगले तीन दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है।

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