झारखंड पुलिस के प्रवक्ता अनुराग गुप्त ने बताया कि  हमले में घायल हुए पुलिस अधिकारी हीरालाल पाल, प्रकाश, अजय उरांव,  मदतान अधिकारी सुबोध कुमार, बस के ड्राइवर निरंजन यादव को बेहतर इलाज के लिए हेलिकॉप्टर से रांची लाया जा रहा है.

प्रवक्ता के मुताबिक़ मरने वालों में एक पुलिस अधिकारी समेत पांच जवान, दो सरकारी कर्मचारी और बस पर काम करने वाला एक सहायक शामिल है.  झारखंड पुलिस प्रवक्ता ने आठ लोगों के मारे जाने की पुष्टि की है.

इससे पहले गुरुवार को झारखंड पुलिस के महानिदेशक राजीव कुमार ने बीबीसी से इस हमले में पांच लोगों के मारे जाने की पुष्टि की थी.

"इस हमले में पुलिस अधिकारी हीरालाल पाल, पीठासीन अधिकारी बलवंत सिंह समेत नौ लोग घायल हुए हैं"

-अनुराग गुप्त, प्रवक्ता, झारखंड पुलिस

आशंका जताई जा रही है कि हमले के बाद माओवादियों ने पुलिस के हथियार लूट लिए, हालांकि इसकी पुष्टि अभी नहीं हुई है.

घटना को अंजाम देने के बाद  माओवादियों ने लाल रंग के बैनर पोस्टर भी लहराए.

घटना

पुलिस अधिकारी के मुताबिक़ माओवादी हमले में शिकारीपाड़ा थाने के सहायक पुलिस इंसपेक्टर आरएन सिंह, गढ़वा पुलिस के जवान रवींद्र कुजूर, प्रकाश उरांव, रघुनंदन झा, विजय शर्मा की मौत हो गई.

यह घटना दुमका ज़िले के शिकारीपाड़ा थाना क्षेत्र के सरसाजुल पुलिया के पास हुई.

नक्सल प्रभावित यह इलाक़ा  झारखंड की राजधानी रांची से करीब साढ़े चार सौ किलोमीटर और दुमका जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर की दूरी पर है.

गुरुवार शाम मतदान के बाद सरकारी कर्मचारी ईवीएम लेकर एक बस से दुमका लौट रहे थे. बस पर पुलिस के कुछ जवान भी सवार थे.

झारखंड में माओवादियों की ओर से लगाया गया पर्चा

माओवादी हमला: मरने वालों की संख्या आठ हुई

रास्ते में अमसा गांव के पास पुलिया के आसपास घात लगाए माओवादियों ने बारूदी सुरंग विस्फोट कर बस को उड़ा दिया. माओवादियों ने काफ़ी देर तक गोलीबारी भी की.

धमाका इतना जोरदार था कि बस के परखच्चे उड़ गए थे और दूर-दूर तक बारूद के टुकड़े बिखरे थे. पुलिस के कई जवान और सरकारी कर्मचारी बस के अंदर काफ़ी देर तक घायल पड़े रहे.

जोखिम

घटना शाम क़रीब सवा पांच बजे की है. लेकिन अंधेरा होने और जंगली इलाक़े की वजह से काफ़ी देर तक माओवादियों से घिरे पुलिस के जवानों और मतदान कर्मचारियों को सहायता नहीं पहुंचाई जा सकी.

दरअसल और बारूदी सुरंगों की आशंका के कारण पुलिस की टीम घटनास्थल पर जाने का जोखिम उठाने की स्थिति में नहीं थी. बाद में दुमका की डीआईजी प्रिया दुबे के नेतृत्व में बड़ी संख्या में पुलिस के जवान घटना स्थल पर पहुंचे.

यही वजह है कि रात क़रीब 11 बजे तक ज़िला या राज्य मुख्यालय स्तर पर घटना के बारे में स्पष्ट जानकारी देने की स्थिति में नही थे. इस घटना ने पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था और चूक पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं.

कथित माओविदयों ने पिछले साल दुमका ज़िले के ही काठीकुंड में पाकुड़ के एसपी अमरजीत बलिहार समेत पांच पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी थी.

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