- डॉक्टर्स की मारपीट का मामला संसद में पहुंचने के बाद रिपोर्ट तलब

- आईएमए के सर्वे में खतरनाक बताए गये हालात, नया कानून बनाने की मांग

sunil.yadav@inext.co.in

LUCKNOW :सरकारी और निजी अस्पतालों में अक्सर डॉक्टरों और तीमारदारों के बीच होने वाली मारपीट के मामले खतरनाक तेजी से बढ़ रहे हैं। देश भर में करीब 80 फीसद डॉक्टर कभी न कभी मरीजों के परिजनों के गुस्से का शिकार बन रहे हैं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) द्वारा इस बाबत दी गयी रिपोर्ट के बाद केंद्र सरकार ने इस पर रोक लगाने के लिए नया कानून बनाने की पहल शुरु की है। संसद में इस बाबत सवाल पूछे जाने के बाद केंद्र सरकार ने आईएमए ने रिपोर्ट मांगी थी। आईएमए की रिपोर्ट मिलने के बाद उसकी गंभीरता को देख केंद्र सरकार ने सभी राज्यों से डॉक्टर्स के साथ हो रही मारपीट की घटनाओं के सरकारी आंकड़ें भी तलब कर लिए है। ध्यान रहे कि बीते मंगलवार केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर में मरीज के परिजनों ने पीआरओ की पिटाई कर दी थी। इससे कुछ दिन पहले गांधी वार्ड में रेजीडेंट के साथ भी मारपीट हुई थी। अक्सर होने वाली इन घटनाओं की वजह से कई बार डॉक्टर लंबी हड़ताल पर भी जा चुके हैं।

80 फीसद डॉक्टर्स के साथ हुई घटनाएं

केंद्र की ओर से भेजे गए पत्र में कहा गया है कि आईएमए के सर्वे से संबंधित मामलों की रिपोर्ट प्रस्तुत करें। बता दें कि आईएमए की दिल्ली विंग ने कुछ दिन पहले देश भर के डाक्टर्स पर सर्वे कर केंद्र को रिपोर्ट दी थी। जिसमें कहा गया था कि 80 फीसद स्पेशलिस्ट डाक्टर्स को कभी न कभी मरीजों या तीमारदारों के वायलेंस या गुस्से का शिकार होना पड़ा है। इस पर लोकसभा में प्रश्न भी पूछा गया है। आईएमए के पदाधिकारियों के मुताबिक राज्यों की ओर से बनाए गए मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट बहुत प्रभावी नहीं हो पा रहे हैं। जिसके बाद आईएमए ने केंद्र से एक सेंट्रल एक्ट बनाने की मांग की थी। केंद्र अब इस दिशा में एक्ट बनाने के लिए गंभीरता से प्रयास कर रहा है। इसके तहत ही राज्यों से डॉक्टर्स के खिलाफ हो रही घटनाओं की जानकारी मांगी गई है।

मांगी गई डिटेल

केंद्र के पत्र के बाद स्वास्थ्य विभाग के अनुसचिव जीएल यादव ने डीजी हेल्थ को पत्र भेज कर तीन दिन में रिपोर्ट मांगी है। जिसके बाद सभी सीएमओ, आईएमए ओर मेडिकल कॉलेजों, प्रोवेंशियल सर्विसेज एसोसिएशन और नर्सिग होम्स से उनके साथ हुई घटनाओं का ब्यौरा मांगा गया है। इसमें घटना का ब्यौरा, नर्सिग होम की डिटेल और मामले में हुई कार्रवाई सहित अन्य जानकारियां मांगी गई हैं।

यूपी में लागू है क्लीनिक एस्टेब्लिशमेंट एक्ट पर

बता दें कि यूपी में क्लीनिक एस्टेब्लिस्टमेंट एक्ट प्रदेश में लागू हो चुका है। लेकिन इसका प्रभावी क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है। मारपीट की घटनाएं होने पर पुलिस साधारण मारपीट के मामले दर्ज कर लेती है। शासन के अधिकारी भी डॉक्टर्स के साथ हो रहे मामलों में ज्यादा दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं।

सर्वे में निकल कर आया था कि 80 फीसद डॉक्टर वायलेंस या एग्रेशन के शिकार हैं। आईएमए ने केंद्र से सेंट्रल एक्ट भी बनाने की मांग की थी।

डॉ। पीके गुप्ता, प्रेसीडेंट आईएमए

हमसे घटनाओं की जानकारी मांगी गई है। जिस पर रिपोर्ट लखनऊ आईएमए की ओर से भेज दी गई है।

डॉ। जेडी रावत, सचिव आईएमए