जागी है उम्मीद
तीन तलाक पर काफी लंबे समय तक चली बहस के बाद मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया। यह फैसला हकीकत में देश में इंकलाब लाने वाला फैसला है। इसका स्वागत मैं इस उम्मीद के साथ कर रही हूं कि एक ही बार में तीन तलाक कहकर औरतों को घर से बेदखल करने जैसे मामले अब खत्म होंगे। अब मुस्लिम महिलाएं इस डर के साथ नहीं जिएंगी कि दहेज के नाम पर या दूसरे मामलों में कमी निकालकर उनका पक्ष जाने बिना, उन्हें बेघर कर दिया जाएगा। अब जब भी वे अपने साथ हुए जुल्म के खिलाफ फैमिली कोर्ट जाएंगी, तो वहां उनकी सुनवाई होगी। मैं खुश हूं कि महिलाओं के जहन से यह डर देश की सर्वोच्च अदालत ने खत्म किया है।

आज हमारे देश में इंकलाब आया है

 

तलाक से बढ़ती हैं समस्यायें
परिवार में तलाक हमेशा परेशानियों का सबब ही बनता है। जब किसी महिला को अचानक से तीन तलाक का फरमान सुना दिया जाता है, तो उसका असर उसके वालिद और बच्चों पर भी पड़ता है। बहुत सी महिलाएं ऐसी भी हैं, जिन्हें अपने परिवार का साथ भी नसीब नहीं होता। उनके सामने तो चुनौतियां और भी गंभीर होती हैं। सबसे बड़ी बात है कि ऐसा देशभर में हो रहा है। उत्तराखंड की शायरा बानो हो या राजस्थान की अफरीन रहमान, बंगाल की इशरत जहां हो या उत्तर प्रदेश की आतिया सबरी और गुलशन परवीन, इन सभी ने तीन तलाक का दर्द झेला है। इनकी कहानियों से तो हम फिर भी वाकिफ हैं, लेकिन ऐसी बहुत सी महिलाएं हैं, जो लंबे समय से इस प्रथा की भेंट चढ़ती आ रही हैं पर उनकी आवाज आज भी अनसुनी है। इसलिए हम इसे किसी एक जगह की समस्या कहकर टाल नहीं सकते या फिर यह तर्क देकर इस समस्या को खारिज नहीं कर सकते कि कुछेक मामलों में ही तीन तलाक का गलत इस्तेमाल किया जाता है।

गुमराह कर रहे हैं लोग
जो मौलाना इस्लाम का हवाला देकर यह तर्क दे रहे हैं कि तीन तलाक जायज है, वे असल में लोगों को गुमराह करने का काम कर रहे हैं। जिस तरह निकाह के समय गवाहों का होना जरूरी होता है, उसी तरह तलाक के समय में भी गवाह होने जरूरी हैं। लेकिन बहुत से मर्दों ने नियम-कायदों को ताक पर रखकर सोशल मीडिया, फोन और चिठ्ठियों के जरिए भी तलाक देना शुरू कर दिया, जो गलत है। इस्लाम में निकाह को खत्म करने के लिए बाकायदा प्रावधान है। असल में, शरीयत के संरक्षकों ने ही तीन तलाक का बड़े स्तर पर गलत तरीके से इस्तेमाल किया ताकि वे अपने व्यक्तिगत हितों को साध सकें। इसी के कारण महिलाओं का काफी शोषण हुआ। उन पर तमाम तरह के जुल्म होने लगे। इस अनैतिक तीन तलाक के कारण औरतों से इज्जत भरी जिंदगी जीने का मूल अधिकार भी छीन लिया गया। यही नहीं, बच्चे भी अच्छी परवरिश, तालीम और सेहतमंद जिंदगी से महरूम हो गए। अब जब कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार दिया है, तो उम्मीद की किरण जागनी तो लाजिमी है।

मैरिज एक्ट की मांग
हालांकि हमारी लड़ाई यहीं खत्म नहीं होती क्योंकि असल जीत तो अभी भी मिलनी बाकी है। हमने कोर्ट से मुस्लिम मैरिज एक्ट की मांग की है क्योंकि मुस्लिम मैरिज एक्ट ही औरतों के अधिकारों की सुरक्षा कर सकता है। जब तलाक कानूनी प्रक्रिया के जरिए होगा, तो औरत को अपनी मेहर और बच्चों को पालने के लिए मदद मांगने का मौका भी मिलेगा। उसका पक्ष सुना जाएगा, न कि उसे परिवार की इज्जत का हवाला देकर चुप करा दिया जाएगा, जैसा कि अब तक होता आ रहा था। यही नहीं, हम हलाला जैसी प्रथा का भी पूरी तरह विरोध करते हैं और चाहते हैं कि इसे तुरंत खत्म कर दिया जाए क्योंकि यह रेप से भी बद्तर है। हम यह कह सकते हैं कि हमने सही राह में कदम बढ़ा दिए हैं, लेकिन हमारे सामने कोर्ट के फैसले को लेकर लोगों को जागरूक करने की भी चुनौती है। हम लोगों को अपनी ओर से कोर्ट के फैसले के प्रति जागरूक करेंगे, लेकिन हम जानते हैं कि हमारे सामने तमाम तरह की रुकावटें भी आएंगी। अब तक धर्म के ठेकेदार बने लोग हम पर आरोप लगाएंगे कि यह राजनीति से प्रेरित कदम है, बीजेपी इस्लाम विरोधी है तथा यह उसकी साजिश है, कोर्ट के द्वारा सुनाया गया फैसला इस्लाम के खिलाफ है और भी न जाने क्या-क्या गलतफहमियां पैदा की जाएंगी, लेकिन महिलाओं से मेरी यही अपील है कि वे अपने हक में आवाज उठाएं।

आज हमारे देश में इंकलाब आया है

सरकार से मदद की आस
हालांकि इसमें हमें सरकार की मदद की भी दरकार होगी क्योंकि उसके पास असीमित संसाधन हैं। अगर वह अपने स्तर पर जागरूकता अभियान चलाएगी, तो इसके नतीजे भी जल्दी सामने आएंगे। हम चाहते हैं कि जिस तरह सरकार अपनी नीतियों और किए गए कामों का प्रचार-प्रसार करती है, उसी तरह कोर्ट के फैसले को लेकर भी लोगों को जागरूक करे। सोशल नेटवर्किंग साइट्स और विज्ञापनों के जरिए महिलाओं को उनके अधिकारों से अवगत करवाए तभी हकीकत में बदलाव नजर आएगा। कोर्ट ने अपने फैसले में 6 महीने के भीतर कानून बनाने का आदेश भी दिया है। मुझे उम्मीद है कि कानून निर्माता स्पेशल कोर्ट बनाकर मुस्लिमों को कानूनी तौर पर अलग होने का समान अवसर देंगे और वहां दोनों पक्षों की समान रूप से सुनवाई होगी। वहां जोडऩे की बात होगी न कि किसी एक पक्ष की बात सुनकर फैसला सुनाने की जल्दबाजी।

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पुराने केस भी खुलें
मुझे उम्मीद है कि सरकार महिला सुरक्षा अधिकारों को ध्यान में रखकर और इस्लाम के अनुसार एक ठोस कानून बनाएगी साथ ही व्हॉट्सएप, एसएमएस, फोन, ईमेल के जरिए तलाक देने पर रोक लगाएगी। निश्चित रूप से कोर्ट के फैसले के बाद आने वाले समय में अब तमाम महिलाओं को तीन तलाक की त्रासदी झेलनी नहीं पड़ेगी, लेकिन जो इसके कारण मुश्किलें झेल रही हैं उनके केस भी दोबारा खोले जाने चाहिए और नए सिरे से उनकी सुनवाई होनी चाहिए ताकि ऐसी महिलाओं को भी न्याय मिल सके, उन्हें भी नई जिंदगी जीने का अवसर मिल सके।

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