- कुपवाड़ा में आतंकियों से लोहा लेते मुठभेड़ में कानपुर के कैप्टन आयुष शहीद

- परिजन बोले, आखिर कब तक शहादत देंगे हमारे बच्चे, आज जाजमऊ में होगा अंतिम संस्कार

KANPUR: जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा में थर्सडे मार्निग आर्मी कैंप में आतंकी हमले के दौरान कानपुर के कैप्टन आयुष यादव शहीद हो गए। जाजमऊ डिफेंस कालोनी में रहने वाले आयुष यादव आर्मी की आर्टिलरी डिवीजन में तैनात थे। तीन साल पहले ही उन्होंने सेना ज्वाइन की थी। 25 साल के आयुष घर के एकलौते बेटे थे। आखिरी बार वह फरवरी में अपनी बहन की शादी में कानपुर आए थे। आयुष की शहादत की खबर मिलते ही घर में कोहराम मच गया। एक दिन पहले ही मां-बाप की उनसे बात हुई थी। वहीं शहादत की खबर मिलते ही आला प्रशासनिक अधिकारी और राजनेता परिजनों से मिलने घर पहुंचे और उन्हें ढांढस बंधाया। फ्राईडे को शहीद आयुष का पार्थिव शरीर कानपुर आने की संभावना है।

शहादत आख्िार कब तक

आयुष के पिता अरूण कांत यादव चित्रकूट में एसएसआई पद पर तैनात हैं। बहन रूपल बैंक ऑफ बड़ौदा में पीओ हैं। फरवरी में ही उसकी शादी हुई, जिसमें शामिल होने के लिए आयुष शहर आया था। आयुष के दादा बीएल यादव भी एयरफोर्स में थे। परिवार के कई और सदस्य भी सेना में ही अफसर हैं। वहीं मां सरला गृहणी हैं। गुरूवार सुबह जब अरूण और सरला घर पर ही थे, जब उन्हें यह खबर मिली। हालांकि टीवी में चल रही खबरों से उन्हें अनहोनी की आशंका हो गई थी। महज 25 साल की उम्र में देश के लिए शहादत देने वाले आयुष की मां सरला की चीखों में कई सवाल भी थे और आतंकियों के लिए सिर्फ और सिर्फ मौत की ही चाह थी। उनका कहना था कि आखिर कब तक हमारे बच्चे शहादत देते रहेंगे। आतंकियों का हर हाल में सफाया करे सरकार।

कल तक तो बुला रहा था

आयुष की मौत से सदमें में आए उसके पिता अरूण कांत यादव ऐसे पेशे में हैं, जिसमें उन्हें सख्तजान बनना पड़ता है। लेकिन बेटे की शहादत की खबर ने उन्हें अंदर तक तोड़ सा दिया। बातचीत में उन्होंने कहा कि कल ही तो उससे बात हो रही थी कह रहा था कि 30 तारीख को मैरिज एनिवर्सरी है, कुपवाड़ा आकर ही मनाइये। मैंने ही मना कर दिया था कि वहां तो पत्थरबाजी बहुत होती है। जिस पर उसने आर्मी कैंप में पूरी सुरक्षा की बात कही और देखो आज वहीं पर आतंकियों ने हमला कर दिया।

अनहोनी का अंदेशा था

पिता के मुताबिक सुबह वह पूजा कर रहे थे तभी न्यूज चैनल पर कुपवाड़ा में आर्मी कैंप में हमले की खबर सुनी। शुरू में एक मेजर और सिपाहियों की शहादत की खबर आई, लेकिन थोड़ी ही देर बाद भतीजे दीपक का फोन आया कि आयुष इस हमले में शहीद हो गया है। इसी के कुछ समय बाद कर्नल दुष्यंत सिंह घर पहुंचे और उन्होंने इसकी पुष्टि कर दी।

शहीद कभी मरते नहीं

कैप्टन आयुष की मौत की खबर ने उनकी बहन रूपल को भी झकझोर दिया। वो कह रही थी कि अभी कुछ दिन पहले ही शादी में उसने विदा किया था। ऐसा कैसे हो सकता है, इस बीच वह जिम्मेदारी के साथ मां को भी संभाल रही थीं और ढंाढस बंधा रही थी कि भाई शहीद हुआ है और शहीद कभी मरते नहीं।