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PATNA: 15 साल में 15 करोड़ रुपया खर्च करने वाला प्रदेश का एक ऐसा विभाग है जो अब तक एक भी शोध नहीं कर पाया है। वर्ष 2003 में विभाग को शोध के लिए ही बनाया गया था, लेकिन सरकार ने इस तरफ से मुंह मोड़ लिया है जिससे शोध करने वाला विभाग ही शोध का विषय बन गया है। अगर सरकार ने ध्यान दिया होता तो आज स्थिति कुछ और होती। शोध के परिणाम के बाद प्रदेश में पौधरोपण का दायरा काफी बढ़ाया जा सकता था और पौधे की वेरायटी को भी अपडेट किया जा सकता था। लेकिन उदासीनता के कारण बड़े बजट के बाद भी विभाग साइलेंट मोड में है।

मंशा नही हुई साकार

सरकार ने 2003 में शोध प्रशिक्षण एवं जनसंपर्क विभाग बनाकर पटना प्रमंडल नाम से कार्यालय अपडेट कर दिया। इसका कार्यक्षेत्र पूरा बिहार बनाया गया और कई रेंज बनाकर अफसरों को शोध के लिए तैनात किया गया। पटना में डीएफओ शोध प्रशिक्षण एवं जनसंपर्क

प्रमंडल को तैनात कर कमान दे दिया गया। शोध के लिए बनाए गए इस विभाग को लेकर सरकार की मंशा थी कि प्रदेश के 6 रेंज में शोध कराना था। इसके लिए बेतिया, बांका, हाजीपुर, पटना में दो, रोहतास के साथ अन्य कई रेंज बनाया गया ।

-शोध को लेकर गंभीर नहीं सरकार

सरकार शोध को लेकर गंभीर नहीं है। अगर सरकार शोध को लेकर ध्यान देती तो विभाग हर तरह का शोध कर सरकार को परिणाम देता। शोध के आधार पर ही काम होता जिससे विभाग पूरी तरह से अपडेट होता। नए ट्रेंड पर काम होता जिससे सरकार अपनी मंशा में पूरी तरह से सफल हो जाती। विभाग में अफसरों और कर्मचारियों के पास शोध से जुड़ा कोई काम नहीं है। वह इंतजार करते हैं कि कोई शोध का काम मिले जिससे वह काम को आगे बढ़ाएं लेकिन 15 साल में उनके सामने यह अवसर ही नहीं आया। विभाग के सूत्रों की मानें तो सरकार पूरी तरह से उदासीन है जिससे विभाग अपना अस्तित्व खोता जा रहा है।

-प्रचार-प्रसार तक सिमटा विभाग

विभाग का मुख्य काम शोध करना था लेकिन सबकुछ अब प्रचार प्रसार और अवेयरनेस कार्यक्रम तक ही सिमट गया है। सूत्रों का कहना है कि जब भी कोई सरकारी कार्यक्रम होता है तो विभाग को प्रचार प्रसार के लिए लगा दिया जाता है। अब तो शोध करने वाले भी सब कुछ भूलते जा रहे हैं। अगर सरकार अभी भी चेत जाए तो बहुत कुछ बदलाव हो सकता है लेकिन कोई ध्यान नहीं है।

शोध होता है। फील्ड से रिपोर्ट सीधा बड़े अफसरों के पास आ जाती है विाग को पता नहीं होगा। ऐसे शोध हुए हैं जो इंडिया में नहीं हुए।

डॉ डीके शुक्ला, प्रधान मुय वन संरक्षक