- बेसिक शिक्षा पर हर साल करोड़ों खर्च कर रही सरकार।

- 25 प्रतिशत सरकारी स्कूलों में तय मानक से अधिक स्टूडेंट्स

- किसी स्कूल के पास जमीन नहीं तो कहीं सुविधाओं की कमी

Meerut बेसिक शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए व अच्छी शिक्षण गुणवत्ता में सरकार हर साल करोड़ों का मोटा खर्च करती है। मगर सरकारी प्राइमरी स्कूलों में पढ़ रहें बच्चों को इस मोटे बजट का कुछ भी फायदा नहीं है। यहां स्कूलों में पढ़ाई तो बहुत दूर की बात है, सरकारी स्कूलों का भवन तक जर्जर ही रहता है। हालात तो इतने बुरे हैं कि स्कूलों में बैठने के लिए सीट तक नहीं होती है। इसके उलट प्राइवेट स्कूलों में फीस से होने वाल आमदनी से ही बच्चों को हर तरह की सहूलियत दी जाती है।

ये हैं प्राइवेट स्कूल में सुविधाएं

- हर कदम पर मॉनिटरिंग है। टीचर्स के लिए यह भी तय है कि एक सप्ताह में कितना पढ़ाना है। इसके अलावा समय समय पर टेस्ट होते हैं। ताकि ये पता चले कि बच्चे ने कितना सीखा है।

- रिजल्ट खराब होने पर सैलेरी भी काट ली जाती है।

- इन स्कूलों में क्लास रूम में हर तरह की सुविधा होती हैं। बैठने के लिए फर्नीचर के अलावा बिजली पंखे जैसी सार सहूलियत होती हैं।

- इन स्कूलों में बालक एवं बालिकाओं के अलग-अलग टॉयलेट होते हैं, इनकी नियमित सफाई होती है।

- इन स्कूलों में डिसीप्लीन पर खास ध्यान दिया जाता है। स्कूल में आने की टाइमिंग से लेकर बच्चों केसभी तरीकों पर टीचर ध्यान देता है।

ऐसी हैं सरकारी स्कूल की सुविधाएं

- बेसिक स्कूलों में न तो कोई मानक है और न किसी टीचर को होता है पढ़ाई का कोई प्लान।

- बेसिक स्कूलों में केवल स्कूल में बच्चों की उपस्थित दर्ज कराने से अधिक यहां मॉनिटरिंग कोई सिस्टम नहीं है।

- स्कूलों में बच्चे कुर्सी पर पंखे की हवा में बैठने जैसी सुविधाओं को तरसते हैं।

- स्कूलों में लड़के-लड़की का टॉयलेट अलग होने की बात तो छोडि़ए काफी स्कूल ऐसे हैं, जहां पर दूर-दूर तक कोई सुविधा तक नहीं है।

50 प्रतिशत स्कूलों में ओवरलोड

शहर के अगर हम बेसिक स्कूलों की बात करें तो यहां 50 प्रतिशत सरकारी स्कूल ओवरलोड ही हैं। यानि यहां तय संख्या से अधिक बच्चे हैं, प्राइमरी स्कूलों में पढ़ते हैं। अगर हम बच्चों के अनुसार स्कूलों में टीचर्स की संख्या देखे तो वो बहुत ही कम है। 25 परसेंट स्कूल तो ऐसे हैं जहां पर 300 से 500 बच्चे हैं। इनमे किसी में भी स्कूल में चार शिक्षक से अधिक नहीं हैं।

कुछ की जमीन तो कुछ बंद

कुछ सरकारी प्राइमरी स्कूल ऐसे हैं । जिनकी आज तक काई जमीन नहीं है है। डूडा की योजना के तहत मजबूरी में इन्हें सामुदायिक केंद्रों से चलाया जा रहा है। प्राइमरी सहित कई स्कूल दूसरे भवनों से चल रहे हैं। इनमें मवाना स्थित एक प्राइमरी स्कूल अपने बराबर के ही उच्च प्राथमिक विद्यालय की बिल्डिंग में चल रहा है। वहीं आम का बाग मोरीपाड़ा स्थित प्राइमरी स्कूल अपने बराबर के विद्यालय की बिल्डिंग में चलाया जा रहा है। इसके अलावा सात स्कूल शिक्षक न होने की कारण बंद हैं। इनमें खैर नगर स्थित प्राइमरी स्कूल, खरखौदा स्थित प्राइमरी स्कूल सहित अन्य स्कूल हैं।

एक बच्चे पर 17 हजार

सरकारी स्कूलों की बदहाली की वजह पैसा नहीं है। सरकार इनके लिए हजारों करोड़ का बजट जारी करती है। इस साल 1.98 करोड़ बच्चों की बेसिक शिक्षा के लिए 33.8 हजार करोड़ का बजट है। यानि सरकार एक बच्चे के 17 हजार का बजट जारी कर रही है।

मेरठ में हैं ऐसे हालात

अगर हम मेरठ जनपद में बेसिक स्कूलों की बात करें तो मेरठ में 1350 से अधिक स्कूल हैं। इनमें केवल 4 हजार के आसपास ही टीचर्स पढ़ाते हैं। वहीं अगर हम पढ़ने वाले बच्चों की संख्या की बात करें तो मेरठ में डेढ़ लाख से अधिक बच्चे बेसिक स्कूलों में पढ़ रहे हैं। यह आंकड़ें साफ बताते हैं कि बेसिक स्कूलों में शिक्षकों की संख्या का कितना बड़ी संख्या में टोटा है।

मैनें भी जीआईसी स्कूल में पढ़ाई की है। स्कूल घर से काफी किलोमीटर पर था, पैदल ही जाते थे। बचपन में स्कूल में अनुशासन व समर्पण सिखाया जाता था। लेकिन अब पढ़ाई नहीं होती जैसी पहले हुआ करती थी।

-पीके मिश्रा, एडीआईओएस

मैं भी प्राइमरी स्कूल से पढ़ा हूं, मेरा स्कूल घर से चार किलोमीटर दूर हुआ करता था। उस समय हमारे टीचर बहुत ट्रेंड हुआ करते थे। अब तो जुगाड़ से शिक्षामित्र भर्ती किए जाने लगे हैं।

-मांगे राम चौहान, एमडीए तहसीलदार

सरकारी स्कूलों में सिर्फ व्यवस्था सुधारने की जरुरत है। स्कूलों में योग्य शिक्षकों की तो आज भी कमी नहीं है, लेकिन वह सिस्टम में खराबी है।

-डॉ। वीर पाल, रीडर फिजिक्स, सीसीएसयू

मैंने भी सरकारी स्कूल से ही पढ़ाई की है। हमारे समय में स्कूलों में बच्चों को अनुशासन का पाठ पढ़ाया जाता था। साथ ही बेहतर शिक्षा भी दी जाती थी। लेकिन अब न तो वो अनुशासन बचे हैं न ही बेहतर शिक्षा।

-शबीह हैदर, अधीक्षण अभियंता एमडीए

हमारे समय में स्कूलों में बच्चों को नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाने के साथ ही बेहतर शिक्षा भी दी जाती थी। उस समय बच्चों में भी पढ़ाई को लेकर अलग रुचि हुआ करती थी। लेकिन आज सरकारी स्कूलों में न तो शिक्षकों में वो सेवा भाव है न ही बच्चों में वो रुचि रही है।

-डॉ.प्रेम सिंह, नगर स्वास्थ्य अधिकारी