पिछले डेढ़ साल में शादी के लिए एड्स पीडि़त 10 युवकों के आए आवेदन

सिर्फ एक की हो सकी शादी, एक भी महिला मरीज का शादी का आवेदन नहीं

BAREILLY:

जाति, मजहब, पैसा और सबसे अहम वर्जिनिटी इंडियन सोसाइटी में शादी के लिए बुनियादी शर्तो में से एक है। शादी के सामान्य मामलों में ये शर्ते सामान्य बात हैं। लेकिन एड्स से पीडि़त लोग भी शादी कर घर बसाने की जरूरत में इन शर्तो से कदम पीछे नहीं कर पा रहे हैं, इसका गवाह बरेली का एआरटी सेंटर भी बन गया है। एंटी रेट्रोवायरल थेरेपी सेंटर नी एड्स पीडि़त 10 मरीजों ने शादी की ख्वाहिश जताते हुए इनरोलमेंट कराया है, जिनमें सभी मरीज पुरुष हैं।

डेढ़ साल से नहीं फीमेल

नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन 'नाको' और उत्तर प्रदेश स्टेट एड्स कंट्रोल सोसाइटी 'यूपीसैक्स' ने तमाम एआरटी सेंटर्स में एड्स मरीजों की शादी कराना शुरू कराया। मार्च 2015 में शुरू हुई इस मुहिम के तहत एड्स पीडि़त मरीज जो समाज में सामान्य लोगों से शादी नहीं कर सकते, उन्हें अपना घर बसाने के लिए एड्स पीडि़त मरीजों में से ही जीवनसाथी तलाशने की कवायद हुई। पिछले डेढ़ साल में 10 पुरुष मरीजों ने बायोडाटा देकर शादी के लिए आवेदन किया। इनमें से एक की शादी देहरादून एआरटी में रजिस्टर्ड युवती से हुई। लेकिन पिछले डेढ़ साल में एक भी महिला मरीज ने शादी के लिए एआरटी बरेली में आवेदन नहीं किया।

वर्जिनिटी-कास्ट की मांग

शादी के ख्वाहिशमंद बचे हुए 9 पुरुष मरीज बरेली मंडल से ही हैं। शादी के लिए दिए गए अपने बायोडाटा में इन 9 मरीजों में से 6 जहां कास्ट के मामले में ओपन माइंडेड हैं और किसी भी जाति की महिला मरीज से शादी करने को इंट्रेस्टेड हैं। वहीं 3 मौत के मुहाने पर खड़े होने के बावजूद जाति की दीवार को लांघ न सके। इन 3 मरीजों ने अपने ही कास्ट की महिला मरीज के लिए आवेदन किया है। वहीं वर्जिनिटी का इश्यू भी यहां काफी हद तक हावी है। इन 9 मरीजों में से 4 ने दुल्हन के तौर पर वर्जिन महिला मरीज की ही मांग की है। वहीं बाकी के 5 मरीजों ने विधवा और तलाकशुदा महिला मरीज से भी शादी के लिए हामी भ्ारी है।

फैमिली का दबाव हावी

कुछ मामलों में काउंसलिंग के दौरान विधवा व तलाकशुदा महिला मरीजों ने भी शादी के लिए दिलचस्पी दिखाई थी। लेकिन इसके बाद बात आगे बढ़ न सकी। वजह, एक बार फिर परिवारों ने ही जाति और मजहब की खाई का हवाला देकर महिला मरीजों के कदम दुल्हन बनकर ससुराल तक पहुंचने से रोक दिए। ज्यादातर मामलों में मायके वालों पर ही पूरी तरह डिपेंडेड इन महिलाओं ने परिवार की मर्जी के चलते भी शादी के लिए आवेदन नहीं किए। वहीं कुछ महिलाओं ने इस डर से आवेदन न किया कि कहीं इससे उनके रहने-खाने का मौजूदा ठौर भी न छिन जाए।

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चस्पा हुई नोटिस, मांगे आवेदन

पिछले डेढ़ साल से शादी के लिए एक भी महिला मरीज के आवेदन न आने से एआरटी सेंटर बरेली पर भी दबाव बढ़ गया है। लगातार पुरुष मरीजों के आवेदन बढ़ने के साथ ही महिला मरीजों के आवेदन का सूखा बने रहने से एआरटी सेंटर भी हायर अथॉरिटी को प्रोग्रेस रिपोर्ट नहीं दिखा पा रहा है। ऐसे में एआरटी बरेली सेंटर ने पहली बार खुलकर शादी के लिए ख्वाहिशमंद एड्स पीडि़तों से आवेदन मांग लिए है। इसके लिए एआरटी सेंटर की दीवारों व नोटिस बोर्ड में भी मंडे को चस्पा कर दिए गए। जिसमें शादी के लिए अपना रजिस्ट्रेशन कराने को मोटिवेट किया जा रहा है।

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डेढ़ साल से शादी के लिए एक भी महिला मरीज का आवेदन नहीं मिला है। शादी के लिए अवेयर करने को एआरटी सेंटर में जगह जगह मेसेज चस्पा कर दिए गए हैं। जिससे मरीज रजिस्ट्रेशन के लिए मोटिवेट हो। - मनोज वर्मा, डाटा मैनेजर, एआरटी सेंटर बरेली