अमिताभ ने अपने ब्लॉग पर लिखा है, पश्चिमी सिनेमा और उसके नीति निर्माता अक्सर भारतीय सिनेमा की आलोचना करते हैं, खास तौर पर इसमें शामिल बहुत ज्यादा फंतासियों की। ऐसे में मेरे मन में एक सवाल उठता है कि क्या हमें वैश्विक मानकों के पालन के उद्देश्य से अपने सिनेमा को बदलना चाहिए ?

अमिताभ ने लिखा, मेरा जवाब निश्चित तौर पर ना है। अमिताभ ने लिखा, नहीं जनाब, भले ही हमारे रास्ते में कितनी भी नकारात्मक चीजें आएं, हम पश्चिम की तुलना में कम संसाधनों से काम चलाएं, पर सिनेमा का हमारा उद्देश्य पश्चिम से बहुत जुदा है। उन्होंने लिखा है कि, ऐसे देश में, जहां हर 100 मील की दूरी पर भाषा और संस्कृति बदलती है, यह आश्चर्य की बात है कि केवल सिनेमा ही ऐसा माध्यम है, जो देश के हर नागरिक को एक छत के नीचे ले आता है।

अमिताभ के मुताबिक, आमिर, शाहरुख या सलमान की फिल्म में सिनेमा हॉल की लाइन में आपके आगे कौन खड़ा है, इस बारे में आप जानने की कोशिश नहीं करते। आपको ये जानने में भी कोई रुचि नहीं होती कि हॉल के भीतर आपके पीछे हिंदू बैठा है या मुस्लिम।

अमिताभ ने लिखा है, सिनेमा हॉल में मैं सिर्फ इतना जानता हूं किफिल्म के शुरू होने पर वहां बैठा हर व्यक्ति एक ही जोक पर हंसता है, एक ही भावुक दृश्य पर रोता है और एक सा गाना गाता है। अमिताभ के मुताबिक, सिनेमा पूरे देश को एक सूत्र में पिरोने वाला सबसे बड़ा माध्यम है। उन्होंने लिखा, मुझे इस माध्यम पर गर्व है और इस बात पर भी कि मैं इसका प्रतिनिधित्व करता हूं। मैं इसमें कोई बदलाव नहीं चाहता।

बिग बी ने इसके बदले में हॉलीवुड से भी सवाल किया है कि क्या वे अपनी आलोचनाएं किए जाने पर खुद को बदलेंगे।

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