खर्च चलाना मुश्किल

रामलीला के कलाकारों को इससे जुड़ा काम काफी कम मिल पाता है। इस कारण साल में अधिकतर दिन वे बेरोजगार होते हैं। कई बार हालत ऐसी होती है कि भूखे पेट सोने की नौबत आ जाए। तब इन्हें जो भी काम मिलता है, वह एक्सेप्ट करते हैं। यहां तक कि खेतों में मजदूरी तक करनी पड़ती है।

 

40 साल बाद भी नहीं बदले हालात

दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने आर्यनगर रामलीला मंडली के सदस्यों से बात की। इस मंडली में 21 सदस्य हैं। अधिकतर सदस्य 40 साल से रामलीला का प्रर्दशन कर रहे हैं। इस दौरान सैकड़ों जगह पर रामलीला का प्रदर्शन किया। देश के कई हिस्सों में गए लेकिन अब भी खुद को वहीं पाते हैं, जहां वर्षो पहले थे। किसी की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। जब रामलीला होती है, तब तक रोजगार, नहीं तो बेरोजगार।

 

सिर्फ एक मंच पर सहायता

कलाकार बताते हैं कि अयोध्या में स्थित तुलसी स्मारक मानस शोद्य संस्थान की ओर से पूरे साल रामलीला होती है। प्रत्येक 16 दिन पर कलाकारों की नई मंडली मंच संभालती है। इस मंच पर सरकार की ओर से प्रोत्साहन राशि और मदद भी दी जाती है। लेकिन, अन्य जगहों पर रामलीला का प्रदर्शन करने वालों को कोई सहायता नहीं मिल पाती।

 

गाइड तो कभी पुजारी बनते हैं

आर्य नगर में चल रही रामलीला में अयोध्या से आए कलाकारों ने बताया कि वे विदेशों तक में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं लेकिन इसके बाद भी आज के समय में इस हुनर से जीवन यापन करना बेहद मुश्किल है। ज्यादातर कलाकार तो खाली समय में अयोध्या स्थित मंदिरों में पुजारी व गाइड बनकर अपना जीवन यापन करते हैं लेकिन कई को इससे भी बुरे दिन देखने पड़ते हैं।

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कॉलिंग

मैं 40 साल से रावण बनता हूं लेकिन मेरी कमाई से दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल हो जाता है। इस अवस्था में कोई और काम भी नहीं कर सकता। बहुत मुश्किल है।

- स्वरुप तिवारी, रावण की भूमिका

 

मैं छह साल से रामलीला में मंचन कर रहा हूं। कभी राम तो कभी किसी का किरदार निभाता रहता हूं। आज के दौर में ढूंढने से भी रामलीला के नए कलाकार नहीं मिलेंगे लेकिन हमारी कद्र नहीं है। कोई प्रोत्साहन नहीं।

- रोशन, राम की भूमिका

 

मैं इस मंडली में पिछले चार साल से लक्ष्मण आदि का रोल निभाता हूं। हम कितना भी अच्छा प्रदर्शन करें, जो हमारे मालिक देते हैं, वहीं हमारे लिए सबकुछ है। कोई सहायता नहीं मिलती।

- दीपक, लक्ष्मण की भूमिका

 

मैं पांच से रामलीला में जुड़ा हूं। गुरुजी के साथ रहकर ही मैंने सबकुछ सिखा। लोगों की तालियों से खुशी मिलती है लेकिन ऐसा तो नहीं कि कलाकार का पेट नहीं होता, परिवार नहीं होता? उसे पैसे की जरूरत नहीं होती?

- दिलीप, सीता की भूमिका