- यूपीपीडिकॉन के आखिरी दिन बच्चों में किडनी, बीपी और हाइट से जुड़े कुपोषण पर एक्सप‌र्ट्स ने की चर्चा

- यूनीसेफ की टीम ने किया बाल रोग हॉस्पिटल और एनआईसीयू का निरीक्षण, एनपीसी को बतौर सेंटर ऑफ ट्रेनिंग विकसित करने की पहल

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KANPUR: आमतौर पर तीन साल तक के बच्चों को जब प्रॉब्लम होती है तो उनका बीपी नहीं चेक किया जाता। ऐसे में कई बार बच्चों में बीपी, हाईपर टेंशन और हार्ट से जुड़ी कई बीमारियों के पैदा होने का खतरा बढ़ जाता है। अगर बच्चे की आखों में सूजन व पेशाब ठीक से नहीं होने की प्रॉब्लम है तो उनका बीपी जरूर चेक कराना चाहिए। मेडिकल कॉलेज में चल रहे यूपीपीडिकॉन के आखिरी दिन संडे को छोटे बच्चों को होने वाली गंभीर बीमारियों पर चर्चा करते हुए सीनियर डॉक्टर्स ने ये जानकारी दी। इस दौरान यूनीसेफ, मेदांता मेडिसिटी, केजीएमयू समेत कई बड़े हॉस्पिटल्स के एक्सप‌र्ट्स ने लेक्चर दिए।

जल्दी पैदा होने वाले बच्चो में होती है बीपी की ज्यादा प्रॉब्लम

बच्चों में बीपी, इंफैक्शन, कुपोषण से जुड़े बीमारियों पर गंभीर चर्चा हुई। वहीं यूनीसेफ की तरफ से आई डॉ। रिचा पांडे ने बच्चों बच्चों में कुपोषण के साथ लंबाई की बढ़ती प्रॉब्लम को लेकर खास चिंता जाहिर की। प्री-मेच्योर डिलीवरी में आगे चल कर आने वाली प्रॉब्लम्स के बारे में मेदांता मेडिसिटी के पीडियाट्रिशियन डॉ। सिद्धार्थ सेठी ने विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि आमतौर पर छोटे बच्चों को स्वास्थ्य संबंधी तकलीफ होने पर बीपी नहीं चेक किया जाता। जिससे बीपी, हाईपर टेंशन और हार्ट से जुड़ी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। अगर बच्चे में आखों में सूजन व पेशाब ठीक से नहीं होने की प्रॉब्लम है तो उनका बीपी जरूर चेक कराना चाहिए।

लोहे की कढ़ाई में खाना बनाएं

वहीं बच्चों में एनीमिया की प्रॉब्लम को लेकर सर गंगाराम हॉस्पिटल दिल्ली से एचओडी डॉ। सचदेव ने बताया कि जो आटा हम खाते हैं उसमें कोई न्यूट्रिशियन वैल्यू नहीं होती है। जबकि विदेशों में जो आटा मिलता है उसमें अलग से न्यूट्रिशियन मिलाया जाता है। अमेरिका और यूरोप में उस न्यूट्रिशियन को गुजरात की ही एक कंपनी सप्लाई करती है लेकिन इंडिया में इसको लेकर कोई भी अवेयरनेस नहीं है। क्योंकि रोटी हर कोई खाता है ऐसे में उसे न्यूट्रिशियन का सबसे बड़ा सोर्स होना चाहिए। उन्होंने बताया कि मार्केट में कई कंपनियां आटे में मिलाए जाने वाले न्यूट्रिशियन पैकेट बेचती हैं। वहीं उन्होंने आयरन की कमी को पूरा करने के लिए लोहे की कढ़ाही को यूज करने को प्राथमिकता दी। साथ ही अंकुरित दालें, नींबू व गुड़ के आयरन के अबजॉर्ब करने की अच्छी क्षमता का भी जिक्र किया।

बच्चों में स्टटिंग की प्रॉब्लम बड़ा खतरा

यूनीसेफ की तरफ से आई डॉ। रिचा पांडेय ने कुपोषण पर चर्चा की। इस दौरान कुपोषण के साथ बौनेपन अर्थात स्टटिंग की प्रॉब्लम के बढ़ते केसेस पर उन्होंने चिंता जाहिर की। इस दौरान बच्चों में दुबलेपन के साथ लंबाई बढ़ने की रुकावट को बड़ी समस्या माना गया। क्योंकि ख् से फ् साल में अगर उसे डायग्नोस करके इसका इलाज शुरू नहीं किया जाता तो बच्चे की लंबाई बढ़ना बिल्कुल रुक जाता है। वहीं डॉ। रिचा के साथ आए यूनिसेफ की टीम ने बाल रोग अस्पताल समेत एनआईसीयू का भी निरीक्षण किया। इस दौरान बालरोग अस्पताल में बने पोषण केंद्र को बतौर ट्रेनिंग सेंटर डेवलप करने को लेकर भी उन्होंने पहल की है।