- एकेडमी के पास नहीं है कई महत्वपूर्ण किताबें

- जयंती-पुण्यतिथि तक नहीं मनाती है एकेडमी

- एकेडमी में होने लगी है असाहित्यिक लोगों की अप्वाइंटमेंट

PATNA : बात अगर सीधी-सीधी की जाय तो यह कहा जा सकता है कि जिन उद्देश्यों से भोजपुरी एकेडमी की स्थापना हुई थी उसकी पूर्ति वर्षो से नहीं हो रही है। एक साल पहले तक की बात की जाय तो यह अपने कार्यो की वजह से कम और विवादों की वजह से ज्यादा चर्चे में रहा है। गठन के कुछ सालों बाद तक एकेडमी ने कई महत्वपूर्ण काम किये लेकिन अब यहां के स्टाफ सिर्फ पैसे के आभाव का रोना रोते हैं।

एकेडमी का रहा है समृद्ध इतिहास

जानकार बताते हैं कि अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन ने लंबे समय तक अभियान चलाया था कि गवर्नमेंट लेवल पर भोजपुरी भाषा की स्वीकृति मिले। यह बात क्97भ् की है। इसके बाद केदार पांडेय के मुख्यमंत्रीत्व काल में भोजपुरी एकेडमी का गठन किया गया। पहले निदेशक हवलदार त्रिपाठी सहृदय हुए। उन दिनों कई उल्लेखनीय काम हुए। रामेश्वर सिंह कश्यप के समय में भी एकेडमी ने कई महत्वपूर्ण काम किये। शुरुआती दौर में भोजपुरी एकेडमी पत्रिका का प्रकाशन भी शुरू हुआ। साथ ही उन्हीं दिनों कई महत्वपूर्ण पुस्तकों का प्रकाशन भी हुआ।

किताबें व पत्रिका वर्षो से नहीं छपी

मालूम हो कि पहले पत्रिका का प्रकाशन अनियमित हुआ और बाद में तो प्रकाशन ही बंद हो गया। किताबें कई वर्षो से प्रकाशित नहीं हुई हैं। भोजपुरी के कई जानकारों ने बताया कि एकेडमी के पास कई लेखकों की पांडुलिपियां थीं जिसे नहीं प्रकाशित होते देख लोगों ने वापस ले ली, कई लेखकों की पांडुलिपियां वहीं सड़ गयी। फिलहाल चंद्र भूषण राय इसके अध्यक्ष हैं। उनसे पहले रविकांत दूबे अध्यक्ष थे। अपने तीन साल के कार्यकाल में उन्होंने एक पत्रिका का प्रकाशन करवाया था।

एकेडमी के पास नहीं हैं किताबें

एकेडमी में पुस्तकों के रख-रखाव की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है और न ही पर्याप्त किताबें हैं। एकेडमी के स्टाफ बताते हैं कि अब वे लोग स्कॉलर तक को किताब मुहैया नहीं करवा पाते हैं। जितनी किताबें हैं उसे भी दीमक चाट रहे हैं। कृष्णदेव उपाध्याय के लोकगीतों का संकलन तीन खंडों में है। लेकिन अकादमी के पास ही मात्र तीसरा खंड है। स्थिति यह है कि अब वो इसे री-प्रिंट तक नहीं करवा सकती है। अभी भी धरोहर के रूप में एकेडमी के पास कई किताबें बची हुई हैं। जरूरत है एकेडमी उसे सहेजे।

वर्षो से नहीं हुआ है मेन वर्क

कई वर्षो से एकेडमी की ओर से शोध, प्रकाशन व संगोष्ठी समेत अन्य आवश्यक गतिविधियां बंद है। जबकि प्रकाशन और शोध इसके मेन वर्क माने जाते हैं। एकेडमी अगर हाल के दिनों में चर्चे में रहा भी तो गीत-नृत्य के आयोजन को लेकर, जो इसका एक मात्र काम नहीं है। एक्सपर्ट की मानें तो जब एकेडमी में असाहित्यिक लोगों की अप्वाइंटमेंट होने लगी तब रचनाकारों ने इसका विरोध किया था। जिसका कोई असर नहीं होने पर लोग खुद इससे कटते चले गये।

कुछ वर्क तो कर ही सकती है एकेडमी

एकेडमी के स्टाफ्स एवं ऑफिसर्स अक्सर पैसे का रोना रोते हैं। कहा जाता है कि हमें फंड ही कहां मिलता है। जितना मिलता है उससे कर्मियों का वेतन भी नहीं जुट पाता है। लेकिन कुछ वर्क है जिसके लिये एकेडमी को पैसे की जरूरत नहीं है। भोजपुरी के बड़े हस्ताक्षरों जैसे उदय नारायण तिवारी, महेंद्र मिसिर, मोती बीए, दुर्गा शंकर प्रसाद आदि लोगों की पुण्य तिथि व जयंती तो मना ही सकती है। पुरवी गीतों के बादशाह कहे जाने वाले महेंद्र मिसिर की पुण्य तिथि इसी महीने गुजरी है लेकिन एकेडमी की ओर से एक प्रेस रिलीज तक जारी नहीं की गई। भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल क्यों किया जाय, केंद्र में जब यूपीए की गवर्नमेंट थी तभी बिहार गवर्नमेंट से यह जवाब मांगा था। एकेडमी की जिम्मेवारी बनती है कि वो गवर्नमेंट को भोजपुरी के महत्वपूर्ण कार्यो की प्रगति रिपोर्ट सौंपे और उसे केंद्र तक भिजवाये।

शुरू होगा पत्रिका का प्रकाशन

पिछले दिनों एकेडमी के अध्यक्ष चंद्रभूषण राय ने भोजपुरी के रचनाकारों के साथ मीटिंग की थी। जिसमें पत्रिका का प्रकाशन फिर से शुरू करने का निर्णय लिया गया। इस दिशा में एकेडमी कई कदम आगे भी बढ़ चुकी है जिससे भोजपुरी के रचनाकारों में एक उम्मीद दिख रही है।

लंबे समय से भोजपुरी एकेडमी में ठहराव की स्थिति है। ऐसा लगता है जैसे एकेडमी अपने उद्देश्य से भटक गयी है। वर्तमान अध्यक्ष धन्यवाद के पात्र हैं कि वे फिर से पत्रिका का प्रकाशन करने जा रहे हैं। एकेडमी को भोजपुरी गीतों और फिल्मों में बढ़ रही अश्लीलता के खिलाफ भी कदम उठाने की जरूरत है। - भगवती प्रसाद द्विवेदी, लेखक

बिहार गवर्नमेंट नालंदा में भुलायी हुई है और उसकी धरोहर नष्ट हो रही है। नालंदा पर गर्व करने से पहले वो अपने भाषाई अकादमियों, भाषा परिषद की परवाह तो करे। एकेडमी कम से कम भोजपुरी के अन्य संस्थानों और लोगों जैसे पांडेय कपिल, ब्रजकिशोर आदि ने जो काम किये है उसे सहेज तो ले।

- निराला, संस्थापक, लोकराग

फिलहाल एकेडमी की गतिविधि शून्य है। अध्यक्ष ने तो फोन नहीं किया लेकिन कहीं से पता चला है कि पत्रिका निकाल रहे हैं। यह स्वागत योग्य है। तीन-चार साल पहले भाषा विज्ञान, व्याकरण समेत हाई लेवल की किताबें आदि प्रकाशन की योजना बनी थी, आज तक कहां अमल हुआ है।

- राजेंद्र प्रसाद सिंह, लेखक