- बिहार में इंडस्ट्री का बुरा हाल, राशि मिली पर खर्च न हो सका

- उद्योग निदेशालय के अंतर्गत चलने वाली योजनाओं का हाल जर्जर

- बंटवारे के बाद बिहार में सीमित संख्या में रह गए बिग, मिडियम और स्मॉल इंडस्ट्री

PATNA : बिहार में पलायन रोकने और उद्योगों को आगे बढ़ाने पर नीतीश और जीतन राम मांझी की सरकार लगातार जोर देती रही। इस डिपार्टमेंट को बड़ा बजट भी मिला, लेकिन सच ये है कि ये डिपार्टमेंट राशि खर्च करने में ही फिसड्डी रहा। बिहार का बंटवारा नवंबर, ख्000 में हुआ। इसके बाद औद्योगिक इकाइयों का क्7.9 परसेंट भाग जिसमें सिर्फ सीमित संख्या में बिग, मिडियम और स्मॉल इंडस्ट्री शामिल थे, बिहार में रह गए। यह भी हुआ कि राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी की वजह से सूबे में इन्वेस्टर्स को आकर्षित करने के लिए नई औद्योगिक प्रोत्साहन नीति, ख्00म् बनाने और उसकी घोषणा करने में पांच साल लग गए।

कैसा विकास जब राशि ही खर्च न हो

यह क् अप्रैल ख्00म् से प्रभावी हुआ। इधर उद्योग निदेशालय ने शिवप्रकाश राय को आरटीआई से जो जानकारी दी है वह कई सवाल खड़े करती है। अचरज की बात ये है कि औद्योगिक प्रोत्साहन नीति के लिए जो रुपए स्वीकृत हुए वही पूरी तरह खर्च नहीं हुए। ख्0क्ब्-क्भ् में तो ट्रेनिंग के लिए दी गई राशि में से कुछ भी खर्च नहीं किया गया। आधारभूत सुविधा पर लगातार बात होती रही पर इस मद की राशि भी खर्च नहीं हुई। साल ख्0क्फ्-क्ब् में भी कमोबेश यही स्थिति रही। उद्योग मित्र योजना, उपेन्द्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान, बिहार उत्सव, राज्य स्तरीय मेला व प्रदर्शनी सहित हस्तकरघा व हस्तशिल्प विपणन योजना में पूरी राशि खर्च ही नहीं हुई।

साल ख्0क्ब्-क्भ् की स्थिति

- औद्योगिक प्रोत्साहन नीति के लिए सामान्य प्रक्षेत्र में फ्9000.00 लाख रुपए स्वीकृत किए गए। इसमें से फ्फ्भ्00.00 लाख रुपए आवंटित किए गए। हद है इसमें शून्य राशि की निकासी हुई और जब निकासी ही नहीं हुई तो खर्च क्या होगा।

- ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए क्77ख्.ख्क् रुपए स्वीकृत किए गए। इतनी ही राशि आवंटित हुई, लेकिन खर्च शून्य हुआ।

- आधारभूत सुविधा उपलब्ध कराने के लिए फ्फ्.ख्8 लाख रुपए स्वीकृत हुए। इसमें शून्य राशि का आवंटन हुआ और निकासी व व्यय भी शून्य ही रहा।

- निजी औद्योगिक क्षेत्र में सामान्य प्रक्षेत्र के लिए क्700.00 लाख और एससी प्रक्षेत्र के लिए फ्00.00 लाख रुपए योजना उद्व्यय में दिखाए गए हैं जबकि राशि स्वीकृत हुई शून्य। आवंटन भी शून्य और निकासी-व्यय भी शून्य रहा।

- कुल राशि स्वीकृत हुई क्ब्क्क्भ्7.79 लाख रुपए। आवंटित हुई क्फ्भ्ब्79.ख्9 लाख रुपए। इसमें निकासी और शून्य खर्च रहा।

साल ख्0क्फ्-क्ब् की स्थिति

- उद्योग मित्र योजना के लिए क्ख्0.00 लाख रुपए का आवंटन हुआ। पूरी राशि की निकासी की गई, लेकिन व्यय हुआ महज क्0क्.क्फ् लाख रुपए। क्8.87 लाख रुपए बच गए।

- उपेन्द्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान, पटना के लिए क्9ब्.फ्0 लाख रुपए स्वीकृत हुए जिसमें से क्म्ब्.80 लाख रुपए आवंटित किए गए। इतनी ही राशि की निकासी भी की गई, लेकिन खर्च हो पाया महज 9क्.9ख् लाख रुपए। फ्म्.म्8 लाख रुपए बचे रह गए।

- बिहार उत्सव के लिए क्ब्9 लाख राशि स्वीकृत की गई। इतने ही रुपए आवंटित और इतनी ही निकासी हुई, लेकिन खर्च हुआ भ्क्.फ्7 लाख रुपए। यानी 97.म्फ् लाख रुपए बच गए।

- राज्य स्तरीय मेला और प्रदर्शनी के लिए म्0.00 लाख रुपए स्वीकृत हुए। इतनी ही राशि आवंटित और निकासी हुई, लेकिन खर्च हुआ क्8.ख्ख् लाख रुपए। यानी ब्क्.78 लाख रुपए बचे रह गए।

- प्रचार व प्रकाशन के लिए फ्0.00 लाख रुपए स्वीकृत किए गए। यही राशि आवंटित और निकासी की गई, लेकिन म्.09 लाख रुपए ही खर्च हो पाए। ख्फ्.9क् लाख रुपए बच गए।

- हस्तकरघा एवं हस्तशिल्प विपणन की योजना में ख्00.00 लाख रुपए स्वीकृत हुए। यही राशि आवंटित व निकासी की गई, लेकिन महज ख्8.7ख् लाख रुपए ही खर्च हो पाए। क्7क्.ख्8 लाख रुपए बच गए।

इंडस्ट्री डिपार्टमेंट का बजट ही कम है। पांच साल से लगभग एक ही एमाउंट रहता है। इसके बावजूद खर्च नहीं होता है तो राशि लैप्स कर जाती है। इससे इंडस्ट्री को लॉस होता है। राज्य सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए कि राशि समय से मिले और पूरी खर्च हो।

- पीके अग्रवाल, प्रेसीडेंट, चैम्बर ऑफ कॉमर्स