यहाँ इन दिनों आम चुनाव की तैयारी में युवा पीढ़ी भी भाग लेती नज़र आ रही है. शायद इसका मुख्य कारण ये है कि आईटी सेक्टर के दो बड़े नाम नंदन निलेकनी और वी बालाकृष्णन बंगलौर के दो चुनावी क्षेत्रों से अलग-अलग पार्टियों के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं.

नंदन कांग्रेस की तरफ से बंगलौर दक्षिण की सीट से खड़े हैं जबकि बालाकृष्णन बंगलौर मध्य से  आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार हैं.

नंदन निलेकनी के चुनावी क्षेत्र में रौनक देर रात तक रहती है. रात का समय है एक कैफ़े में एक जोड़ा बैठा चाय पी रहा है.

नया चेहरा

दोनों इसी कोरामंगालम इलाक़े में पैदा हुए और पले बढे. दोनों इस बात से ख़ुश हैं कि इस बार चुनाव में नए चेहरे नज़र आ रहे हैं. तथ्वानाथ कहते हैं, “इस बार हम नए चेहरे को वोट देंगे."

उनकी गर्लफ्रेंड ज्योति भी ख़ुश हैं कि आईटी सेक्टर के दो होनहारों ने सियासत में प्रवेश किया है.

वो कहती हैं उनका वोट नंदन के नाम होगा, “मैंने नंदन के बारे में जो सुना है और उनका जो रिकॉर्ड है इसके लिए मैं उनको वोट दूँगी. मैं पार्टी देख कर नहीं बल्कि चेहरा देखकर वोट डालूंगी”

चुनावी रंग में डूबा बंगलौर का आईटी सेक्टर

ज्योति कहती हैं कि तथ्वानाथ से उन्हें सहमत होना ज़रूरी नहीं.

तथ्वानाथ कहते हैं कि वह नंदन के ख़िलाफ़ नहीं हैं लेकिन उनका वोट नया चेहरा होने के बावजूद नंदन को नहीं जाएगा.

अफ़सोस

उन्होंने कहा, “वह नया चेहरा हैं लेकिन वह  कांग्रेस में चले गए. अगर वो एक आज़ाद उम्मीदवार की तरह से खड़े होते तो मैं नंदन को ही वोट देता.”

नंदन के प्रति इस तरह के विचार वाले स्थानीय लोगों की कमी नहीं. उनसे सभी ख़ुश हैं लेकिन उनके कांग्रेस में प्रवेश करने पर उनके कई समर्थक अफ़सोस जता रहे हैं.

नंदन निलेकनी का सामना है अनंत कुमार से, जो पिछले पांच बार से यहाँ से बीजेपी की टिकेट पर चुनाव जीत रहे है. ये बात और है कि पिछली बार जीत मुश्किल से हासिल हुई थी.

नंदन निलेकनी इनफ़ोसिस कंपनी की स्थापना करने वालों में से एक हैं. आधार कार्ड बनाने का सिलसिला उन्हीं के नेतृत्व में शुरू हुआ. आईटी की दुनिया के वो बेताज़ बादशाह रह चुके हैं.

प्रोफ़ेशनल लोग

प्रोफ़ेशनल और नए चेहरे के सियासत में प्रवेश पर आमतौर से यहाँ की युवा पीढ़ी बहुत ख़ुश है. हर्षिता वेंकटेश केवल 22 साल की हैं लेकिन राजनीति में बदलाव लाने के प्रयास में अपना योगदान देना चाहती हैं और इसीलिए वो नंदन निलेकनी की चुनाव प्रचार टीम में शामिल हो गयी हैं

हर्षिता कहती हैं, “हम परिवर्तन लाने के हक़ में हैं और राजनीति को क्लीन करने में अपना योगदान देना चाहते हैं.”

उन्हीं की आयु के कई लोग आम आदमी पार्टी की बंगलौर शाखा में नज़र आए. एक ने कहा वह मई तक बंगलौर मध्य लोक सभा सीट से आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार वी बालाकृष्णन के साथ हैं.

चुनावी रंग में डूबा बंगलौर का आईटी सेक्टर

वह बालाकृष्णन की टीम में शामिल होने का कारण बताते हुई कहती हैं, “हमें नए और ईमानदार लोगों की ज़रुरत है और बालाकृष्णन और नंदन इसमें पूरे खरे उतरते हैं."

बालाकृष्णन का चुनावी दफ़्तर एक साधारण कॉर्पोरेट ऑफिस की तरह है. चारों तरफ छोटे कमरे हैं और बीच में एक हॉल है. इन कमरों में से एक में बालाकृष्णन बैठते हैं.

ट्रेडमार्क टोपी

वह काफ़ी इत्मीनान में नज़र आ रहे थे. उनका हावभाव और लोगों से मिलने और बातें करने का अंदाज़ अरविंद केजरीवाल जैसा ही बिल्कुल साधारण है. वह साधारण कपड़ों में और पार्टी की ट्रेडमार्क टोपी पहने कार्यकर्ताओं से आराम से मिल रहे थे.

आईटी कंपनी इनफ़ोसिस में काफ़ी सफलता प्राप्त करने के बाद इसके सीएफ़ओ के पद से इस्तीफ़ा देकर सियासत में प्रवेश करने वाले बालाकृष्णन कहते हैं ये फ़ैसला आसान नहीं था. उन्होंने कहा, “अगर आम आदमी पार्टी नहीं होती तो मैं आज सियासत में नहीं होता.”

वो बहुत कुछ बदलना चाहते हैं. “हम एक साफ-सुथरे प्रशासन के पक्ष में हैं जो आम आदमी से जुड़े”

नंदन और बाला दोनों कहते हैं कि उनकी तरह प्रोफ़ेशनल लोगों की जीत हुई तो संसद के माहौल में भी परिवर्तन आएगा.

नंदन कहते हैं, “हमने 200 रुपए से अपने करियर की शुरुआत की. हमने इनफ़ोसिस को एक छोटी कंपनी से एक विशाल कंपनी बनाने में सफल नेटवर्क का इस्तेमाल किया. हमारे पास तजुर्बा है प्रशासन का, नौकरियां पैदा करने का. हमें विश्वास हैं कि हम जीतेगे तो ये तजुर्बा काम आएगा”

नज़रिया

चुनावी रंग में डूबा बंगलौर का आईटी सेक्टरयुवा पीढ़ी ने कहा कि नए चेहरे जीत भी जाएँ तो कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता.

बालाकृष्णन भी इसी तरह की बातें करते हैं लेकिन फिर दोनों ने अलग अलग पार्टियाँ क्यों चुनी?

बाला कहते हैं कि वह आम आदमी पार्टी की नीतियों से सहमत हैं जबकि नंदन का कहना था कि उनका नज़रिया कांग्रेस पार्टी के नज़रिए से मिलता जुलता है इसलिए उन्हें कांग्रेस पार्टी में शामिल होने में कोई दिक्कत नहीं हुई.

नंदन ने कहा, “आम आदमी पार्टी केवल विरोध की राजनीति करती है. हम समस्या का हल निकालने में विश्वास रखते हैं.”

बालाकृष्णन के चुनावी क्षेत्र में भी युवाओं की बड़ी संख्या है. प्रसिद्ध चर्च स्ट्रीट में कई कैफ़े हैं जो युवाओं से भरे पड़े हैं. उनमें से कुछ ने कहा कि नए चेहरे जीत भी जाएँ तो कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता.

'कुछ नहीं बदलेगा'

एक 21 वर्ष के युवा ने कहा, “चुनाव के दिन पार्टी वाले आते हैं, वोट लेने के लिए पूरे परिवार वालों को पैसे देते हैं. इस बार भी वो आएंगे और जो पार्टी अधिक पैसे देगी उनका वोट उसी को जाएगा."

उनके दूसरे साथी उनसे सहमत हैं. उनका कहना है, “कुछ नहीं बदलेगा. चुनाव के दिन जो अधिक पैसे खर्च करेगा वोट उसी को अधिक पड़ेंगे”

नंदन और बालाकृष्णन के सामने इन युवाओं की सियासत में ज़्यादा दिलचस्पी न होना बड़ी चुनौती होगी. बालाकृष्णन कहते हैं कि इस मानसिकता को बदलने में समय लगेगा क्योंकि अब तक वही होता आया है जिसकी शिकायत युवा पीढ़ी करती है.

इसीलिए आईटी सेक्टर के ये दोनों बड़े नाम एक दूसरे के प्रति सहानुभूति रखते हैं. इसीलिए दोनों ने एक दूसरे को ‘बेस्ट ऑफ लक’ कहा है.

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