- उत्तरायणी मेले में देव वंदना से हुई सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शुरुआत, बिखरे कई रंग

- देवभूमि के कलाकारों ने मचाई धूम, स्थानीय टीमों की हुई परफॉर्मेस

BAREILLY: 'जै जै हो बदरीनाथ, जै हो केदारा', 'ओ नंदा सुनंदा तू दैण है जये', जैसे लोकगीतों से देव वंदना कर फ्राइडे को उत्तरायणी मेले का शुभारंभ हुआ। कलाकारों ने देवभूमि की अद्भुत संस्कृति का प्रदर्शन किया। मंच पर उत्तराखंड और स्थानीय टीमों की परफार्मेस से मेले शुरू हुआ। पारंपरिक लोकगीतों और मनमोहक नृत्य ने समा बांध दिया। इसी तरह एक बार फिर पर्वतीय संस्कृति के कई रंगों से रूबरू होने का मौका शहर को मिला। उत्तरायणी जनकल्याण समिति द्वारा रंगयात्रा से मेले का शुभारंभ हुआ।

पहाड़ की बिखरी छटा

सुबह 10 बजे रंगयात्रा शुरू हुई। जो अंबेडकर पार्क, कोतवाली, पटेल चौक, चौकी चौराहा, सर्किट हाउस से बरेली क्लब ग्राउंड पहुंची। फिर मेले का विधिवत शुभारंभ हुआ। रंगयात्रा की शुरूआत गोलू देवता के आशीर्वाद और तिलक लगाकर हुई। जिसमें मां नंदादेवी के पीछे छोलिया की टीम ने जोश भरा। मशकबीन और रणसिंघा की गगनभेदी तान, लोकगीतों, लोक नृत्यों संग रंगयात्रा मेला स्थल पहुंची। स्कूलों का बैंड, छात्राओं का स्त्री सशक्तिकरण और बेटी बचाओ अवेयरनेस प्रोग्राम और सभ्य नागरिक बनने की अपील आकर्षण के केंद्र रहे। शोका समाज और ट्रेडिशनल ड्रेस पिछौड़ा में सजी ग‌र्ल्स ने कुमांऊंनी संस्कृति की झटा बिखेरी।

बिखरी पहाड़ की छटा

रंगयात्रा के रंगारंग आगाज और मेला शुभारंभ के बाद मंच पर कई परफार्मेस हुई। गढ़वाल और कुमायुं का लोकनृत्य, लोकगीतों ने धूम मचा दी। झोड़ा, चांचरी, छपेली गीतों ने मन मोह लिया। मेले में 140 स्टॉल्स पर पहुंचकर शहरवासियों ने कपड़े, ज्वैलरी और घर की डेकोरेशन के सामान खरीदे। मेले में खाद्य पदार्थ के आइटम्स की भी भरमार है। यहां कुमाऊं का आचार, सिंगौड़ी, बाल मिठाई, गढ़वाल की दाल और मसालों के स्टॉल सजे हैं। इसके अलावा मेले में जयपुर के चूरन, कोलकाता का काथा वर्क, देहरादून की खादी, चमकौर की सूखी डंाग, रुद्रपुर के मसाले खास हैं। साथ ही उत्तराखंड कुटीर उद्योग के स्टॉल भी लगाए गए हैं।