छह थाने, दो पुलिस चौकी

शहर में 44 थाने और 114 पुलिस चौकियां है। इनमें से छह थाने फीलखाना, नौबस्ता, महाराजपुर, बाबूपुरवा, बादशाहीनाका और सचेंडी थाना किराए की जमीन पर बने हैं। इसके अलावा दो पुलिस चौकी सीसामऊ की जवाहर नगर चौकी और मूलगंज की चौबेगोला चौकी किराए की जमीन पर है। जिन्हें खाली कराने के लिए कोर्ट में केस चल रहा है।

‘खाकी से किराया वसूलोगे’

शहर में किराए की जमीन पर बने थानों और चौकी का किराया नाम मात्र का है। इसके बाद भी पुलिस ने सालों से किराया जमा नहीं किया है। भले पुलिस के कंट्रोल रूम के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर दिए गए हैं, लेकिन इन थानों और पुलिस चौकी का किराया जमा करने के लिए पुलिस के पास बजट नहीं है।

डीएम की कार कुर्क करो

मूलगंज की चौबेगोला चौकी किराए की जमीन पर बनी है। यह जमीन रामकृष्ण जानकी ट्रस्ट की है। पुलिस ने सालों से इसका किराया जमा नहीं किया है। जिसके चलते ट्रस्ट की ओर से कोर्ट में केस दाखिल किया गया था। जिसमें एक साल पहले कोर्ट ने डीएम की कार को कुर्क करके किराया देने का आदेश दिया था। जिससे पुलिस प्रशासन में हडक़म्प मच गया था। आनन-फानन में डीजीसी ने कोर्ट में अर्जी दी थी। जिस पर कोर्ट ने कुर्की के आदेश को स्थगित कर दिया था।

इनकी जमीन पर हैं थाने-चौकी

डिप्टी पड़ाव में रहने वाली साहू फैमिली का दावा है कि उनकी जमीन पर नौबस्ता थाना बना है। इसी तरह राधेश्याम की जमीन पर बादशाहीनाका, सियाराम की जमीन पर महाराजपुर, ख्वाजा मोईनुद्दीन सिद्दीकी की जमीन पर बाबूपुरवा और शिव गोरखनाथ की जमीन पर  फीलखाना थाना किराये पर है। इसके साथ ही सचेंडी थाना भी किराए की जमीन पर है। इच्छा शंकर की जमीन पर सीसामऊ की जवाहर नगर चौकी बनी है, जबकि रामकृष्ण जानकी ट्रस्ट की जमीन पर मूलगंज की चौबेगोला चौकी किराए पर है।

26 साल से लड़ रहे लड़ाई

डिप्टी पड़ाव में रहने वाले दिलीप साहू, जागेश्वर प्रसाद और प्रदीप साहू की धरी का पुरवा (नौबस्ता)में 13 विसवा जमीन थी। जिसकी मौजूदा कीमत करीब डेढ़ करोड़ रुपए है। इसमें पुलिस ने जबरन चौकी बना ली थी। उनके पिता रामपाल ने अफसरों से शिकायत की, लेकिन कुछ नहीं हुआ। कुछ दिनों बाद वहां पर नौबस्ता थाना बन गया। जिसे खाली कराने के लिए रामपाल ने 1987 को कोर्ट में केस दाखिल किया था। 5 जनवरी 1994 को रामपाल की मौत के बाद उनके बेटे संदीप ने पैरवी की, लेकिन 1998 को उनकी भी मौत हो गई। जिसके बाद तीनों भाई, संदीप की पत्नी अनीता, उनका बेटा गुल्लू और बेटी नवीता व शिवांगी अब हक की लड़ाई लड़ रहे है। जिसमें कोर्ट ने तीन साल पहले थाना खाली करने का आदेश दिया था, लेकिन पुलिस ने अब तक कब्जा नहीं छोड़ा है। यही हाल बादशाहीनाका थानेे के केस का है। इसमें भी पुलिस निचली अदालत से हार चुकी है, लेकिन इसके बाद पुलिस कब्जा नहीं छोड़ रही है। इस मामले में तो पूर्व में डीआईजी को भी नोटिस जारी हो चुका है।

यहां छोडऩा पड़ा कब्जा

बिल्हौर की उत्तरी पूर्वा चौकी किराए की जमीन पर बनी थी। जिसमें कोर्ट के केस हारने के बाद पुलिस ने कब्जा छोड़ दिया है। इस चौकी को दूसरी जगह शिफ्ट किया गया है। सोर्सेज के मुताबिक पुलिस चौकी खाली कराने के लिए जमीन के मालिक को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। आला अधिकारियों के बीच में पडऩे के बाद पुलिस ने चौकी को दूसरी जगह शिफ्ट किया।

खूब हो चुकी है पुलिस की किरकिरी

किराए की जमीन से थानों को खाली कराने के केस सालों से चल रहे है। इसमें लचर पैरवी के चलते पुलिस को मुंह की खानी पड़ी है, लेकिन नए डीजीसी सिविल एडवोकेट धर्मेन्द्र सिंह के आने बाद इन मामलों में तेजी से पैरवी हो रही है। उन्होंने कोर्ट में मजबूती से सरकार का पक्ष रखते हुए कड़ी दलील दी है। जिससे पुलिस का पक्ष मजबूत हुआ है। उन्होंने बताया कि कई केस में तो फाइलें भी पूरी नहीं थीं, लेकिन उन्होंने सारे कागजात का पता लगाकर फाइल पूरी कर ली है।

"न्यायालय में प्रक्रिया लंबित है। प्रकिया में समय लग रहा है। इसलिए मकान मालिकों को पुलिस से जमीन खाली कराने में देरी हो रही है। हाईकोर्ट की नई रूलिंग के तहत वे सर्किल रेट के तहत किराया बढ़वा सकते हैं। "

इंदीवर बाजपेई, पूर्व महामंत्री बार एसोसिएशन

बैैंक भी नहीं करती है फाइनेंस

खाकी के रिकॉर्ड को देखते हुए पुलिस वालों को कोई भी बैैंक फाइनेंस करने में डरती है। बैैंक अधिकारियों के मुताबिक, बिना सिक्योरिटी के पुलिस को फाइनेंस नहीं किया जाता है। कई केस में पुलिसवाले वर्दी की हनक का बेजा इस्तेमाल कर बैंक की रकम डकार गए हैं। जिससे चलते यह नियम बनाया गया है। इसके अलावा वकीलों को भी फाइनेंस करने से पहले बैैंक सिक्योरिटी मांगती है।