यह ऐलान गैस पीड़ितों के बीच काम करने वाले पांच संगठनों ने मिलकर किया है.

ये संगठन गुरुवार से गैस पीड़ित बस्तियों में जाकर पीड़ित, उनके आश्रित और उनकी अगली पीढ़ी के मतदाताओं को समझाएंगे कि किस तरह भाजपा और कांग्रेस ने उनके साथ विश्वासघात किया है.

'भोपाल ग्रुप फॉर इन्फ़ॉर्मेशन एंड एक्शन' की रचना ढींगरा कहती हैं, "दोनों पार्टियों ने गैस पीड़ितों के हितों को नुक़सान पहुंचाया है. इसके दस्तावेज़ी सबूत देखते हुए गैस पीड़ित मतदाताओं के लिए नोटा बटन ही सही चयन होगा."

यूनियन कार्बाइड के भोपाल स्थित प्लांट से दो और तीन दिसंबर 1984 की दरम्यानी रात रिसी जहरीली गैस ने हज़ारों लोगों की जान ले ली थी.

गैस ने भोपाल शहर के पुराने हिस्से की एक बड़ी आबादी को प्रभावित किया था, जिसके ज़ख़्म आज भी लाखों लोगों के जिस्म पर अलग-अलग बीमारियों के रूप में देखे जा सकते हैं. गैस का दुष्प्रभाव दूसरी और तीसरी पीढ़ी तक देखने में आ रहा है.

सुप्रीम कोर्ट के हालिया फ़ैसले के बाद चुनाव आयोग ने मतदाताओं को किसी भी उम्मीदवार को वोट न देने का विकल्प दिया है, जिसे नोटा यानी नॉट ऑफ़ द अबव (उपरोक्त में से कोई नहीं) कहा जाता है. ईवीएम पर यह बटन होगा.

पीड़ितों में ग़ुस्सा

नोटा बटन दबाने की अपील जिन पांच संगठनों ने भोपाल में एक पत्रकार वार्ता में बताया कि वे बस्ती बस्ती जाकर गैस पीड़ित परिवारो को चार्ट के ज़रिए समझाएंगे कि मुआवज़ा, इलाज, रोज़गार, ज़हरीले रसायनों की सफ़ाई जैसे मसलों पर भाजपा और कांग्रेस का पिछल 29 सालों में क्या दृष्टिकोण रहा.

"तीनों विधानसभा क्षेत्रों में कुल मिलाकर लगभग पांच लाख गैस पीड़ित या उनसे जुड़े मतदाता रहते हैं."

-रचना ढींगरा, भोपाल ग्रुप फ़ॉर इन्फ़ॉर्मेशन एंड एक्शन

इसके लिए पर्चे बाटे जाएंगे, सार्वजनिक सभाएं होंगी और लोगों को नोटा बटन की जानकारी भी दी जाएगी.

भोपाल में कुल सात विधानसभा सीटें हैं, जिनमें तीन पर गैस पीड़ितों और उनकी अगली पीढ़ी का असर है. वर्तमान में तीन में दो सीटें भाजपा के पास और एक कांग्रेस के पास है.

रचना ढींगरा बताती हैं, "तीनों विधानसभा क्षेत्रों में कुल मिलाकर लगभग पांच लाख गैस पीड़ित या उनसे जुड़े मतदाता रहते हैं."

पिछले चुनाव में जब तक विधानसभा क्षेत्रों का परीसिमन नहीं हुआ था, तब तक ज़्यादातर गैस पीड़ित भोपाल उत्तर विधानसभा क्षेत्र में थे.

गैस पीडित संगठन 'डाउ कार्बाइड के ख़िलाफ़ बच्चे' की साफरीन ख़ान का कहना है कि पीड़ितों की दूसरी पीढ़ी में इस बात को लेकर भारी ग़ुस्सा है कि दोनों पार्टियों की सरकारों ने उनके परिवारों के साथ बहुत लापरवाही बरती है.

साफ़रीन कहती हैं, "यह बहुत दुखदायी सच है कि लोकतंत्र में प्रवेश करने का हमारा पहला कदम नोटा बटन का इस्तेमाल होगा."

International News inextlive from World News Desk