--BHU में 'अनुसंधान पद्धति एवं ज्ञान मीमांसा' पर तीन दिवसीय सेमिनार का हुआ उद्घाटन

-प्रो। राधा वल्लभ त्रिपाठी ने कहा, भारतीय ज्ञान परंपरा में चुनौतियों के साथ संभावनाएं भी

VARANASI

भारतीय सनातन ज्ञान परंपरा के सामने वर्तमान समय में जहां चुनौतियां हैं वहीं इसमें विश्व के मार्गदर्शन के संदर्भ में युग की सबसे बड़ी संभावनाएं भी छिपी हैं। यह विचार मंगलवार को राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के पूर्व वीसी प्रो। राधा वल्लभ त्रिपाठी ने बीएचयू में व्यक्त किये। वह भारत अध्ययन केंद्र, बीएचयू की ओर से तीन दिवसीय नेशनल सेमिनार के उद्घाटन समारोह में बतौर चीफ गेस्ट बोल रहे थे। परंपरा में प्रयुक्त अनुसंधान पद्धति एवं ज्ञान मीमांसा : भारत अध्ययन के विशेष संदर्भ में आयोजित सेमिनार में उन्होंने कहा कि हमें भारतीय ज्ञान उपासना की अखंड विश्व दृष्टि को नई पीढ़ी के सामने प्रस्तुत करना है। तभी हमारी विश्व गुरु की संकल्पना साकार हो पायेगी।

ग्रंथ का हुआ लोकार्पण

सेमिनार की अध्यक्षता करते हुए वीसी प्रो। गिरीश चंद्र त्रिपाठी ने कहा कि हमें लोकजीवन में व्याप्त ज्ञान को अकादमिक संदर्भो में संग्रहित करने की जरूरत है। विषय प्रस्तावना भारत अध्ययन केंद्र के शताब्दी चेयर प्रोफेसर डॉ। कमलेश दत्त त्रिपाठी ने दिया। इस अवसर पर प्रो। राधा वल्लभ त्रिपाठी द्वारा लिखित और भारत अध्ययन केंद्र द्वारा प्रकाशित संवादोपनिषद नामक ग्रंथ का लोकार्पण हुआ। सोशल साइंस फैकल्टी के डीन प्रो। मंजीत चतुर्वेदी ने भी अपने विचार व्यक्त किये। स्वागत भारत अध्ययन केंद्र के कोऑर्डिनेटर प्रो। सदाशिव कुमार द्विवेदी ने किया और धन्यवाद ज्ञापन प्रो। युगुल किशोर मिश्र ने किया। इस अवसर पर प्रो। वीएम शुक्ल, प्रो। वागीश शास्त्री, प्रो। रेवा प्रसाद द्विवेदी, प्रो। रामयत्‍‌न शुक्ल, प्रो। गोपबंधु मिश्र आदि उपस्थित थे।