-नूतन को पहली लड़ाई अपने परिवार से ही लड़नी पड़ी

PATNA: एक तरफ चाइना भारत की ओर आंख तरेरे हुए है, वहीं दूसरी ओर बिहार की बेटी चाइनीज गेम में सबको लोहा मनवा रही हैं। घरवालों को बचपन से उसकी फिक्र है कि कहीं चोट न लग जाए, लेकिन वह है कि हर चोट को चोट देकर आगे बढ़ रही हैं। पिछले माह ही शिलांग, मेघालय में खेले गए ख्म्वीं नेशनल सीनियर वुशू चैम्पियनशिप में उसने शान्सू फाइटिंग में सिल्वर जीती। चूंकि बिहार में खेल और खिलाड़ी को कभी तरजीह नहीं दी गई ऐसे में वुशू की यह नायिका भी पर्दे के पीछे ही रह गई। उसकी यह जीत न तो किसी को पता चली और न किसी ने जानने की कोशिश की। आज डीजे आई नेक्स्ट वह कहानी बताने जा रहा है जिसे जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे।

जीत का दूसरा नाम है नूतन

मध्यमवर्गीय परिवार की नूतन बचपन से ही खिलाड़ी बनना चाहती थीं। लेकिन घर में किसी का भी खेल से दूर-दूर तक नाता नहीं था। ऐसे में सबसे पहली लड़ाई अपने परिवार से ही लड़नी पड़ी। मां कुंती देवी हमेशा चाइनीज गेम के लिए मना करती, क्योंकि उन्हें हमेशा डर लगता कि कहीं बेटी को चोट न लग जाए। क्0वीं के बाद घर का पूरा दबाव था कि वह यह खेल छोड़ दे। लेकिन, नूतन ने ठान लिया था कि इसी खेल में बिहार का नाम रोशन करना है। वह कराटे और ताइक्वांडो के हर दांव-पेंच को सीखने लगी। ख्00म् में नेशनल स्कूल गेम्स में गोल्ड पर कब्जा जमाया। फिर घरवालों को लगा कि नूतन जीतने के लिए बनी है। प्रशिक्षक राकेश ठाकुर ने दमदार पंचिंग को देख वुशू के प्रति मोटिवेट किया।

संसाधनों की कमी से गई एमपी

बिहार में संसाधनों की कमी के कारण नूतन ने मध्य प्रदेश में वुशू मार्शल आर्ट एकेडमी जाने का निर्णय लिया। पंचिंग स्टाइल को देख उसका चयन हो गया। इसके बाद नूतन ने जूनियर नेशलन वुशू चैम्पियशिप में गोल्ड पर क?जा जमाया। इसके बाद कई नेशनल गेम्स में गोल्ड और सिल्वर जीतीं।

खेल और नौकरी एक साथ

नूतन का नाम जैसे-जैसे बढ़ता गया उसके सामने चुनौतियां भी उतनी तेजी बढ़ी। बिहार में खिलाडि़यों के आर्थिक संघर्ष को देखते हुए नूतन यह समझ गई कि आगे खेलने के लिए पहले अपने पैरों पर खड़ा होना पड़ेगा। उसने जॉब करने का निर्णय लिया। खेल कोटे से वर्ष ख्0क्ख् में डीएम ऑफिस में क्लर्क की नौकरी हासिल की। नौकरी के बाद भी सपना भूली नहीं। नूतन आज भी जॉब करने के बाद भ् घंटे वुशू की प्रैक्टिस करती हैं।

तैयार कर रही नई नूतन

नूतन ने जो संघर्ष किया वह किसी और को न करना पड़े इसके लिए अपनी जैसी लड़कियों को चाइनिज गेम सीखा रही हैं। डीएम ऑफिस में काम करने के बाद रोज पाटलिपुत्रा स्पो‌र्ट्स कॉम्पलेक्स पहुंचती हैं। जहां नई नूतन तैयार करने में जुटी हैं। नूतन को एक ही अफसोस है कि अगर बिहार सरकार खिलाडि़यों पर ध्यान दे तो यहां की लड़कियां ओलंपिक में भी नाम रोशन कर सकती हैं।

छोटी बहन बनीं तीरंदाज

बचपन से बड़ी बहन को संघर्ष करते देख नूतन की छोटी बहन सपना ने भी खिलाड़ी बनने का निर्णय लिया। उसने तीरंदाजी जैसे खेल का चयन किया। जहां नूतन अपने पंच से विपक्षी को ढेर करतीं है वहीं सपना अपने निशाने से सभी का दिल जीत लेती हैं। घर की स्थिति को देखते हुए सपना ने भी बीएसएफ ज्वॉइन की हैं।

वुशू भारत सरकार की प्रायोरिटी गेम है और साथ ही इसमें हाल के दिनों में मेडल भी खूब जीते जा रहे हैं। लेकिन राज्य स्तर पर बेहतर प्रयास की जरूरत है।

-दिनेश कुमार मिश्रा, जनरल सेक्रेटरी, बिहार वुशू एसोसिएशन