- बायोएथिक्स लागू करने वाला देश का दूसरा संस्थान बनेगा केजीएमयू

LUCKNOW: किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में मेडिकोज इस सेशन से जैव नैतिकता का पाठ पढ़ेंगे। जिस में वह मरीजों से व्यवहार और बातचीत करने का तरीका और अपनी नैतिक जिम्मेदारी को निभाना सीखेंगे। मुंबई के बाद केजीएमयू देश का दूसरा मेडिकल यूनिवर्सिटी है, जहां जैव-नैतिकता (बायो-एथिक्स)को अपने कोर्स में शामिल किया जा रहा है। यह जानकारी यूनेस्को के एशिया पेसिफिक हेड प्रो। रसैल डिसूजा ने बायोएथिक्स पर कलाम सेंटर में आयोजित चार दिवसीय वर्कशाप में दी।

खत्म हो रही है नैतिकता

डॉ। डिसूजा ने बताया कि मेडिकल क्षेत्र में आये दिन मरीजों और तीमारदारों को यह शिकायत होती है कि डॉक्टर उनकी बात नहीं सुन रहे हैं, या उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं कर रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है कि हमारे मेडिकल क्षेत्र से नैतिकता धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है। जिसकी वजह से आये दिन मरीजों और डॉक्टरों के बीच संवादहीनता हो रही है, जिसका असर मरीजों पर पड़ता है।

अब भारत भी शामिल

बायोएथिक्स विश्व के 198 देशों में लागू किया जा चुका है, जिस में भारत भी शामिल है। बायोएथिक्स के 15 नियमों का अनुवाद करके उसे मेकिडल कोर्स में डाला गया है। उन्होंने बताया कि इन नियमों को सबसे पहले महाराष्ट्र के मेडिकल कालेज में लागू किया गया है। इसके बाद प्रदेश में केजीएमयू पहला मेकिडल संस्थान है जो कि बायोएथिक्स को अपने कोर्स में शामिल करेगा।

किसी को नुकसान न पहुंचाना

बैंगलूरु की डॉ। प्रिंसी लोइस ने बताया कि बायोएथिक्स के चार मूलभूत नियम हैं-किसी को नुकसान न पहुंचाना- जानबूझकर या अंजाने में भी किसी मरीज को नुकसान न पहुंचा, स्वायत्ता-मरीज को लाभ पहुंचाने के लिए सही निर्णय लेना और उसके बारे में मरीज को सूचित करना, लाभ पहुंचाना-मरीज को इलाज के फायदे और नुकसान बताना यहां तक कि छुपे हुए चार्ज भी बताना, इंसाफ करना-मरीज का सही तरीके से इलाज करना चाहे वह उसकी आर्थिक स्थिति कैसी भी हो।

पढ़ना चाहिए नैतिकता का पाठ

नैतिकता के पाठ को केवल एमबीबीएस करने तक ही अनिवार्य नहीं है बल्कि इसे ह में प्रेक्टिस करने के बाद भी आचरण में लाना चाहिए। इसलिए आईएम में डॉक्टरों की नैतिकता की क्लास ली जाएगी, जिससे यह सभी डॉक्टरों की आदत में शामिल हो जाए। हमारे प्राचीन वेद और चरक के साहित्य में भी मरीजों से नैतिक आचरण करने की बात कही गई है, लेकिन समय के साथ यह सभी चीजें धीरे-धीरे खत्म हो रही हैं। इस कोर्स को सभी मेडिकल कोर्स में अनिवार्य करना जरूरी है, जिससे छात्रों को पढ़ाई के बाद भी मरीजों से सही आचरण करने की प्रेरणा मिले। डॉ.लोइस न बताया कि चार यूनेस्को की ओर से आयोजित चार दिवसीय प्रशिक्षण में नौ लोगों की टीम भाग ले रही है, शिक्षकों के प्रशिक्षण के बाद से अगले सेशन से शामिल कर लिया जाएगा।