- पॉल्यूशन डिपार्टमेंट और जिला स्वास्थ्य विभाग भी इस मामले को कर रहा है अनदेखा

- प्रॉपर इंसिनेरेट नहीं होता रजिस्टर्ड अस्पतालों और क्लीनिक का बायो मेडिकल वेस्ट

- कंपनी सही तरीके से नहीं उठाती हैं बायो मेडिकल वेस्ट, खत्तों पर डाला दिया जाता है वेस्ट

Meerut: जिला मेरठ में हर रोज बड़े स्तर पर बायो मेडिकल वेस्ट निकलता है। बायो मेडिकल वेस्ट के सही निस्तारण का हर कोई दावा कर रहा है, लेकिन असलियत इससे कोसो दूर है। जिले भर में मौजूद सरकारी और प्राइवेट निजी अस्पताल बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट के नियमों का खुले में उलंघन कर रहे हैं। बायो मेडिकल वेस्ट जहां इंसीनेरेटर में डिस्पोज होना चाहिए वहीं इसको खुले में और खत्तों पर फेंका जा रहा है। खास बात यह है कि इन सभी बातों से जिले का हेल्थ डिपार्टमेंट पूरी तरह अनजान है। वहीं इसकी व्यवस्था को देखने वाला पॉल्यूशन डिपार्टमेंट भी असलियत से बेखबर है।

बड़ी मात्रा में निकलता है वेस्ट

मेरठ में 230 निजी अस्पताल व नर्सिग होम रजिस्टर्ड हैं। इसके साथ ही जिला अस्पताल, महिला जिला अस्पताल, बारह ब्लॉकों में पीएचसी व सीएचसी, एक मेडिकल कॉलेज अस्पताल मौजूद हैं। सभी अस्पतालों व क्लीनिक से प्रतिदिन भारी मात्रा में बायो मेडिकल वेस्ट निकलता है। ढाई सौ बेड जिला अस्पताल में और महिला अस्पताल में 100 बेड हैं। मेडिकल कॉलेज में 500 बेड हैं। जहां रोज करीब दो हजार मरीज आते हैं। महिला जिला अस्पताल की बात करें तो यहां प्रतिदिन 30 से अधिक प्रसव होते हैं। जिला अस्पताल का हाल भी यही है। यहां प्रतिदिन लगभग 60 से 70 ऑपरेशन होते हैं। इनसे निकलने वाला बायो मेडिकल वेस्ट बड़ी मात्रा में निकलता है। मेडिकल कॉलेज में भी बायो मेडिकल वेस्ट बड़ी मात्रा में निकलता है। यहां की स्थिति मैदान में दीवार के पीछे पड़े इस वेस्टेज से साफ जाहिर होती है।

यह है नियम

सभी सरकारी और निजी अस्पतालों को बायो मेडिकल वेस्ट के निस्तारण के लिए उचित इंतजाम करना होता है। इंसीनेरेटर में ही इसे नष्ट करना होता है। मेरठ के पुरुष और महिला अस्पतालों के अलावा बाहर ब्लॉक में मौजूद पीएचसी और चार सीएचसी में बायो मेडिकल वेस्ट उठाने के लिए वर्ष 2003 से निजी कंपनी को काम सौंपा गया है। कंपनी द्वारा कूड़ा उठाने के साथ ही अस्पतालों को वेस्टेज बैग, प्रोटेक्शन यूनिट, मास्क, केमिकल आदि की सप्लाई करने की भी जिम्मेदारी है, लेकिन हालत काफी खराब नजर आ रही है।

दो एजेंसियों के पास जिम्मेदारी

जिले में बायोमेडिकल वेस्ट उठाने का काम दो प्राइवेट एजेंसी कर रही हैं। सिनर्जी कंपनी बायोमेडिकल वेस्ट का डिस्पोजल मेरठ में लगी साइट पर करती है, जबकि दूसरी एजेंसी मेडिकेयर एनवायरमेंटल प्राइवेट लिमिटेड की डिस्पोजल साइट गाजियाबाद में है। यही दोनों एजेंसियां डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल समेत जिले के अन्य अस्पतालों व लैबों से निकलने वाले बायोमेडिकल वेस्ट को रोजाना अलग-अलग रंग वाले डिब्बों में भरकर निस्तारण करने को ले जाती हैं।

बायो मेडिकल वेस्ट के नियम

- हॉस्पिटल मैनेजमेंट को हॉस्पिटल से निकलने वाला वेस्ट 3 हिस्सों में बांटना होता है

- ब्लड, मानव अंग जैसी चीजों को रेड डिब्बे में डालना होता है

- कॉटन, सिरिंज, दवाइयों को पीले डिब्बे में डाला जाता है

- मरीजों के खाने की बची चीजों को ग्रीन डिब्बे में डाला जाता है

- इन डिब्बे में लगी पॉलिथीन के आधे भरने के बाद इसे पैक करके अलग रख दिया जाता है, जहां इंनफेक्शन के चांस न हो।

फैक्ट फाइल

- जिला अस्पताल में 250 बेड

- जिला महिला अस्पताल में 100 बेड

- मेडिकल कॉलेज में 500 बेड

सीएमओ ऑफिस

सीएमओ ऑफिस में रजिस्टर्ड निजी अस्पताल - 230

सीएमओ ऑफिस में रजिस्टर्ड क्लीनिक व लैब - 2200 के करीब

पॉल्यूशन डिपार्टमेंट के अनुसार निकले वाला बायो वेस्ट

- रजिस्टर्ड 31 पैथोलॉजी लैब में निकले वाला वेस्ट - 622.2 केजी/मंथ

- 50 बेड से कम संख्या वाले रजिस्टर्ड 179 अस्पतालों से निकले वाला बायो मेडिकल वेस्ट - 6805.9 केजी/मंथ

- 50-200 बेड वाले रजिस्टर्ड 16 हॉस्पिटल से निकले वाला बायो मेडिकल वेस्ट - 2585.9 केजी/मंथ

- 200-500 बेड वाले रजिस्टर्ड एक हॉस्पिटल से निकलने वाला बायो मेडिकल वेस्ट - 687 केजी/मंथ

- 500 से अधिक बेड वाले दो रजिस्टर्ड हॉस्पिटल से निकलने वाला बायो मेडिकल वेस्ट - 1576 केजी/मंथ

- मेरठ की कंपनी का काम संतोषजनक नहीं था। इसलिए उससे काम नहीं कराया जा रहा है। बायो वेस्ट का ठेका गाजियाबाद की कंपनी को दे रखा है।

- डॉ। जेवी चिकारा, आईएमए

- बायो मेडिकल वेस्ट के डिस्पोज का जिम्मा गाजियाबाद की कंपनी को दे रखा है। उसकी गाडि़यां आती हैं और वे ही यहां से सारा वेस्ट ले जाती हैं।

- डॉ। केके गुप्ता, प्रिंसिपल मेडिकल कॉलेज

गाजियाबाद और मेरठ की दो कंपनियां बायो मेडिकल वेस्ट के डिस्पोजल का काम कर रही हैं। जो हमारे यहां रजिस्टर्ड हैं। कुछ अस्पताल नॉन रजिस्टर्ड हैं, जिनको नोटिस दिया गया है। जिले में सीएचसी और पीएचसी को भी अभी रजिस्टर्ड नहीं कराया गया है। जिनके लिए लिखा गया है।

- बीबी अवस्थी, रीजनल पॉल्यूशन अधिकारी मेरठ

हमारे यहां सिनर्जी कंपनी को ठेका दिया हुआ है। वहीं बायो मेडिकल वेस्ट को उठाती है। प्राइवेट निजी हॉस्पिटल खुद ठेका दे सकते हैं। केवल ऑथराइज्ड कंपनी को ही ठेका दिया जाता है। कहां क्या व्यवस्था है इसको देखने का काम पॉल्यूशन डिपार्टमेंट का है।

- डॉ। रमेश चंद्रा, सीएमओ

इलीगल प्रोसेस अपना रहे अस्पताल

एक शहर से दूसरे शहर में बायो मेडिकल वेस्ट डिस्पोजल नियम विरुद्ध है। जो कैरी वैन हैं वे भी नॉ‌र्म्स के अनुरूप नहीं हैं। जो इंसीनेरेटर लगे हैं वह इलीगल हैं। बड़े हॉस्पिटल में खुद ही इसकी जिम्मेदारी होती है कि वे बायो मेडिकल वेस्ट को डिस्पोज करें और इसके लिए इंसीनेरेटर लगाएं, लेकिन सब जगह से बाहर कंपनी को ठेका दे रखा है। इसमें कार्रवाई का जिम्मा सीएमओ का है। वही इनको लाइसेंस देते हैं और बायो मेडिकल वेस्ट संबंधी कार्रवाई करते हैं।

- डॉ। प्रेम सिंह, जिला स्वास्थ्य अधिकारी

तीन चरणों में होता है डिस्पोजल

बायोमेडिकल वेस्ट उठाने वाली एजेंसियों ने हॉस्पिटल, नर्सिग होम समेत मेडिकल संस्थानों में तीन रंग वाले बिन (डब्बे) रखे हैं। लाल रंग वाले बिन में मेडिकल के प्लास्टिक वेस्ट रखे जाते हैं। पीले रंग के बिन में इनसिनिरेट (जलाने वाले) वेस्ट को रखा जाता है। ब्लड बैग, मांस के हिस्से, सर्जरी के दौरान निकलने वाले वेस्ट को इनमें रखा जाता है। कांच आदि वेस्ट को नीले रंग के बिन में रखा जाता है। प्लास्टिक वेस्ट को ऑटो क्लेव कर छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़कर री-साइकिलिंग के लिए भेजा जाता है। पीले रंग वाले सर्जरी वेस्ट को इनसिनिरेटर (बगैर हवा के जलाना) किया जाता है।

खुले में डालते हैं

शहर में कुछ ऐसे अस्पताल भी हैं जिनका बायो मेडिकल वेस्ट कंपनी को नहीं जाता। ये सभी अस्पताल अपना वेस्ट खुले में और खत्तों पर डालते हैं। यही नहीं प्लास्टिक सिरिंज और कांच का वेस्टेज कबाडि़यों को बेच दिया जाता है। पॉलीथिन उठाने वाले लोग भी इस वेस्ट को कबाडि़यों के पास बेच देते हैं। वहीं वेटनरी (जानवरों का इलाज करने वाले) क्लिनिक वेस्ट का ऑथराइजेशन नहीं लेते। इसके अलावा काफी संख्या में बगैर ऑथराइजेशन के चल रहे क्लिनिक और नर्सिंग होम अवैध रूप से वेस्ट को खुले कचरे में डाल रहे हैं।

प्रदूषण विभाग का कहना है

जिले के सरकारी और प्राइवेट, सभी प्रकार के अस्पताल में बॉयो मेडिकल वेस्ट के प्रबंधन की प्रदूषण विभाग रेगुलर जांच करने का दावा कर रहा है। इन अस्पतालों में बॉयो मेडिकल के निस्तारण के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं, इस पर खास जोर होता है। बॉयो मेडिकल वेस्ट (मैनेजमेंट एंड हैंडलिंग) रूल्स-1998 के मानकों के तहत प्रबंधन व्यवस्था है या नहीं। अगर इसमें किसी तरह की लापरवाही बरते जाने का मामला सामने आता है, तब कड़ी कार्रवाई की जा सकती है। खास बात ये कि जिला स्वास्थ्य केंद्र के सीएचसी और पीएचसी आजतक पॉल्यूशन डिपार्टमेंट में रजिस्टर्ड नहीं है।