खेल विरासत में मिला:

भारतीय क्रिकेट टीम में नवाब पटौदी ने एक खिलाड़ी की भूमिका के साथ ही एक कप्तान की भी अहम भूमिका निभाई है। मध्य प्रदेश के भोपाल में एक नवाब परिवार में जन्में पटौदी के पिता इफ्तिखार अली ख़ान भी क्रिकेट के मशहूर खिलाड़ी थी। वह भी भारतीय कप्तान के रूप में पहचाने गए। इससे साफ है कि नवाब पटौदी को खेलने की कला विरासत में मिली हैं।

आंख की रोशनी गई:

हालांकि नवाब पटौदी के पिता का निधन जब नवाब पटौदी 11 साल के थे तभी हो गया था। जिससे इसके बाद नवाब पटौदी को इस दुनिया में अपनी पहचान बनाने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी। जिसके बाद वह इग्लैंड चले गए। यहां पर अंरराष्ट्रीय क्रिकेट से करियर शुरू करने वाले पटौदी एक कार दुघर्टना का शिकार हो गए। 20 साल की उम्र में उनकी एक आंख की रोशनी चली गई।

पद्मश्री पुरस्कार पाया:

नवाब पटौदी अपने लक्ष्य और पिता के देखे सपने के प्रति काफी सतर्क थे। इतनी मुसींबतों को झेलने के बाद भी वह हिम्मत नहीं हारे। शायद यही वजह रही कि वह एक कप्तान के रूप में उभरे थे। उन्होंने अपने करियर में भारत, दिल्ली, हैदराबाद, आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और ससेक्स टीमों के लिए खेला था। उन्हें 1964 में अर्जुन पुरस्कार और 1967 में पद्मश्री से अंलकृत किया गया।

एक साहसिक बल्लेबाज़:

नवाब पटौदी भारतीय क्रिकेट में एक साहसिक बल्लेबाज़ और फील्डरों के ऊपर से शाट खेलने के लिए जाने जाते थे। उन्होंने अपने करियर में कई बड़े सम्मान पाए थे। 2007 से बीसीसीआई के सलाहकार तथा आईपीएल गवर्निंग काउंसिल के सदस्य रूप में चुने गए। इसके आलवा टीवी कॉमेंट्रेटर की भूमिका भी निभाई थी। वह खेल पत्रिका स्पोट्र्स वल्र्ड के लगातार कई वर्षों तक संपादक रहे थे।

बॉलीवुड से गहरा नाता:

खेल के अलावा नवाब पटौदी का बॉलीवुड से भी गहरा नाता रहा। उन्होंने अभिनेत्री शर्मिला टैगोर से शादी रचाई थी। उनके तीन बच्चो में आज उनका बेटा सैफ अलीखान बॉलीवुड अभिनेता है तो एक बेटी सोहा अली भी एक अभिनेत्री के रूप में उभरी। वहीं उनकी एक बेटी सबा अली ने ज्वैलरी डिजाइनर हैं। पटौदी को 70 वर्ष की उम्र में फेफडों में संक्रमण हो गया। जिससे वह वह 22 सितंबर 2011 को दुनिया को अलविदा कह गए थे।

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