ऐसे आगे बढ़ा जीवन का सफर  
फाहरुख़ अपने परिवार में पांच भाइयों में सबसे बड़े थे. इनकी स्कूंलिंग मुंबई के सेंट मैरी स्कूल से हुई और कॉलेजिंग सेंट जेवियर्स कॉलेज से. इसके बाद इन्होंने मुंबई के लॉ कॉलेज से लॉ की पढ़ाई भी पूरी की. दरअसल फाहरुख़ के पिता भी पेशे से वकील थे. उनसे प्रेरित हो इन्होंने भी लॉ की पढ़ाई की. अपने कॉलेज के दिनों में वह रूपा से मिले. ये वो दिन थे जब वह थिएटर को लेकर भी काफी एक्टिव रहा करते थे. इसके बाद रूपा से ही इन्होंने शादी भी कर ली. शादी के बाद इनकी तीन बेटियां हुईं. सना, शाहिस्ता और रूबीना. इनकी बेटी सना आज बांद्रा में एक NGO के साथ मिलकर समाज सेवा से जुड़कर काम करती है. अपने कॅरियर के शुरुआती दिनों में फाहरुख़ ने थिएटर से ही शुरुआत की थी. थिएटर के माध्यम से इन्होंने IPTA से जुड़कर कई नाटकों का मंचन भी किया.

कुछ ऐसा रहा बड़े पर्दे का खास सफर
यूं तो फाहरुख़ शेख का फिल्मी कॅरियर शुरू हुआ 1973 में फिल्म 'गरम हवा' से. फिल्म में वे एक्टर बलराज साहनी के साथ सपोर्टिंग एक्टर के किरदार में थे. इस फिल्म से उनकी तनख्वा की शुरुआत महज 750 रुपये से हुई. इसके बाद इन्होंने बीच में कई फिल्में कीं, लेकिन जो अगली फिल्म दर्शकों को पसंद आई वह थी 1977 में रिलीज हुई फिल्म 'शतरंज के ख्रिलाड़ी'. इनकी ये फिल्म आधारित थी एक उपन्यास पर. इसके बाद 1979 में आई इनकी फिल्म 'नूरी' और फिर वक्त आया 1981 में इनकी फिल्म 'चश्मेबद्दूर' का. इस फिल्म ने इनके कॅरियर के ग्राफ को काफी ऊपर पहुंचा दिया. फिल्म में इनकी जबरदस्त एक्टिंग को देखने के बाद इनके पास लाइन लग गई फिल्मों की. फिर क्या था, 'उमराव जान', 'बाजार', 'साथ-साथ', 'रंग-बिरंगी' सरीखी इनकी फिल्मों ने धमाल मचाना शुरू कर दिया. इस बीच 1988 में रिलीज हुई इनकी फिल्म 'बीवी हो तो ऐसी' को भला हम कैसे भूल सकते हैं. फिल्म में एक्ट्रेस दीप्ति नवल के साथ इनके काम को दर्शकों ने जमकर सराहा.

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फिल्मों का आखिरी दौर
1990 के दौर में ये कुछ ही फिल्मों में नजर आए. उसके बाद 2008 में फिल्म 'सास बहु और सेंसेक्स' में और 2009 में फिल्म 'लाहौर' में इन्होंने काम किया. इस फिल्म के लिए इन्हें 2010 में बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर के नेशनल फिल्म अवॉर्ड से नवाजा गया. लीड रोल में इनकी आखिरी फिल्म 2013 में आई. फिल्म्ा का नाम था 'क्लब 60'.

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कुछ इस तरह से हैं इनकी 10 प्रमुख फिल्में

फिल्म 'लोरी' (1984)
फिल्म 'एक पल' (1986)
फिल्म 'राज लक्ष्मी' (1987)
फिल्म 'पीछा करो' (1987)
फिल्म 'दूसरा कौन' (1989)
फिल्म 'जान-ए-वफा' (1990)
फिल्म 'चश्मेबद्दूर' (1981)
फिल्म 'बीवी हो तो ऐसी' (1988)
फिल्म 'उमराव जान' (1981)
फिल्म 'फासले' (1985)

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