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-वर्ष 2012 से नहीं आ रही विटामिन ए की दवा

-रोजाना मायूस होकर घर लौट रहे नवजातों के परिजन

-महंगी दरों में बाजार से खरीदनी पड़ रही है दवा

ROORKEE (JNN) : सरकार को नवजातों की फिक्र नहीं है। यह हम नहीं कह रहे हैं बल्कि सिविल अस्पताल में तीन वर्षो से विटामिन ए की दवा न भेजना इसका उदाहरण है। नवजात के परिजन रोजाना सिविल अस्पताल विटामिन ए की आस में आते हैं लेकिन जवाब हर बार 'ना' में मिलने के कारण मायूस होकर लौटना पड़ रहा है।

तीन साल से नहीं आ रही दवा

उत्तराखंड बनने के बाद सरकार की ओर से नौ महीने से डेढ़ साल तक के बच्चों के लिए योजना शुरू की गई थी। योजना के तहत बच्चों को विटामिन 'ए' की दवा दी जानी थी। इसका उद्देश्य था कि बच्चों को नाइट ब्लाइंडलेंस की बीमारी से बचाया जा सके। शुरुआत में दवा सिविल अस्पताल पहुंची थी, लेकिन वर्ष ख्0क्ख् से दवा आनी बंद हो गई। इससे सिविल अस्पताल में रोजाना विटामिन 'ए' की दवा के बारे में जानकारी लेने के लिए परिजन पहुंच रहे हैं, जहां दवा न होने का जवाब मिलने के बाद परिजनों को बाहर से दवा खरीदनी पड़ रही है। दवा न आने से सर्वाधिक नुकसान गरीब तबके को झेलना पड़ रहा है।

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एक महीने में तीन सौ डिलीवरी

सिविल अस्पताल जिले का सर्वाधिक बेड वाला सरकारी अस्पताल है। यहां रुड़की, भगवानपुर, कलियर, झबरेड़ा, नारसन, मंगलौर, आदि गांवों से करीब तीन सौ मरीज रोजाना नये ओपीडी में आते हैं, जबकि करीब तीन सौ मरीज दवा मिलने के बाद दोबारा जांच को आते हैं। इसके अलावा प्रत्येक महीने में तीन सौ डिलीवरी सिविल अस्पताल में होती है, लेकिन विटामिन ए की दवा नहीं मिलती है। ऐसे में यह बताने के लिए काफी है सरकार समेत स्वास्थ्य महकमा बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर कितना संवेदनशील है।

'तीन साल से सिविल अस्पताल में दवा नहीं आ रही है, इस बाबत हॉस्पिटल मैनेजर से रिपोर्ट मांगी गई है.'

-डा। एके मिश्रा, कार्यवाहक सीएमएस, सिविल अस्पताल