- 76 परसेंट ब्लड डोनर इमरजेंसी पर ही देते हैं ब्लड

- स्टेट में प्रतिवर्ष दस लाख यूनिट ब्लड की जरूरत, केवल दस परसेंट ही होता है डोनेट

PATNA: जब तक इमरजेंसी नहीं हो जान बचाने में भी लोग कोताही बरतते हैं। बिहार में हर साल दस लाख यूनिट ब्लड की जरूरत पड़ती है लेकिन मात्र दस परसेंट ही ब्लड मिलता है। ये बातें थैलीसिमिया वेलफेयर एसोसिएशन, बिहार के अध्यक्ष डॉ सुनील कुमार ने कही। उन्होंने बताया कि बिहार में वर्ष में 90 हजार से एक लाख दस हजार यूनिट ब्लड कलेक्ट होता है। जबकि वार्षिक मांग दस लाख यूनिट है। उन्होंने कहा कि कई स्तर पर अवेयरनेश प्रोग्राम सरकार और स्वंय सेवी संस्थाओं की ओर से चलाए जाते हैं। लेकिन अभी तक स्थिति नहीं बदली है।

थैलीसिमिया के पेशेंट की मुसीबत

थैलीसिमिया के पेशेंट को हर माह ब्लड चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। अगर इन्हें रेयर ब्लड की जरूरत हो जैसे ए निगेटिव, एबी निगेटिव आदि की तो ब्लड बैंक से भी इन्हें ब्लड नहीं मिल पाता है। मां वैष्णो देवी सेवा समिति के मेंबर मुकेश हिसारिया ने बताया कि यह तो विडंबना है। आम तौर पर ऐसे केसेज में ब्लड बैंक पेशेंट से निगेटिव ब्लड ग्रुप के बदले दो पॉजिटिव ब्लड ग्रुप की मांग की करते हैं। जबकि यह नियम कहीं नहीं है।

नियमित ब्लड डोनेशन फायदेमंद

डॉ सुनील कुमार ने बताया कि नियमित ब्लड डोनेट से कई फायदे हैं। क्8 से म्0 साल तक के स्वस्थ्य व्यक्ति नियमित ब्लड डोनेट कर सकते हैं। इससे कोई कमजोरी नहीं होती है। ख्ब् घंटे में ही यह रिकवर हो जाता है। एक ब्लड सेल की लाइफ क्ख्0 दिनों की होती है। इसके बाद न्यू ब्लड सेल शरीर में डेवलप होता है। हार्ट, किडनी, लीवर और ब्रेन में करीब चार लीटर ब्लड रिजर्व रहता है। उन्होंने कहा कि इसमें हिमोग्लोबिन की मात्रा क्0 ग्राम होना चाहिए।

थैलीसिमिया पेशेंट की हुई जांच

थैलीसिमिया वेलफेयर एसोसिएशन, बिहार की ओर से कंकड़बाग स्थित सरोज हॉस्पीटल में फ्री हेल्थ कैंप में बिहार, झारखंड और नेपाल के थैलीसिमिया पेशेंट्स की जांच की गई। डॉ सुनील कुमार सहित अन्य डॉक्टरों ने इसमें थैलीसिमिया की जांच और विभिन्न प्रकार के पैथोलॉजिकल टेस्ट के बारे में जानकारी दी। उन्होंने हिमोग्लोबिन दस ग्राम रखने की बात कही। मौके पर चीफ गेस्ट पटना हाई कोर्ट के पब्लिक प्रासीक्यूटर और स्टेट बार काउंसिल के सदस्य जय प्रकाश सिंह, एसोसिएशन के सेक्रेटरी एनएन विद्यार्थी व अन्य मौजूद थे।