हैवानियत की सारी हदें पार
दिल्ली में हुए बर्बर निर्भया कांड के बाद आईपीसी की धारा 376 एक के तहत दी एक संशोधन कर इस सजा का प्रावधान किया गया है। जस्टिस भूषण गावी और जस्टिस प्रसन्ना वराले की पीठ ने सजा की पुष्टि की। यवतमाल के सत्र न्यायालय ने इस मामले में शत्रुघ्न को दोहरी फांसी और दो बार उम्रकैद की सजा सुनाई थी। हाईकोर्ट ने सजा को बरकरार रखा। दोषी ने हाईकोर्ट में अपील की थी कि उसकी कम उम्र को देखते हुए सजा सुनाने में नरमी की जाए। हालांकि, अदालत ने उसकी याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि ऐसे जघन्य अपराध में दया की कोई गुंजाइश नहीं हो सकती। कोर्ट ने इस मामले को रेयरेस्ट ऑफ रेयर अपराध की श्रेणी में रखा।

दांत से खा गया था मांस
यवतमाल के घटांजी शहर में गरीब परिवार की दो साल की बच्ची को शत्रुघ्न ने पास के एक निर्माण स्थल ले जाकर हवस का शिकार बनाया। उसने दांत से बच्ची के शरीर का मांस जगह-जगह काट दिया था। बच्ची के पूरे शरीर पर काटने के निशान थे। उसके साथ बहुत क्रूरता की गई थी। बच्ची के माता-पिता आंध्र प्रदेश के श्रमिक थे। घटना से चार महीने पहले वे काम की तलाश में घंटाजी आए थे। हादसे के दिन पीड़िता के माता-पिता उसे अपने एक रिश्तेदार के यहां छोड़कर स्थानीय मंदिर में आयोजित कार्यक्रम में शामिल होने गए थे।

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