आगरा। नवरात्रि के पहले दिन से हमने सिटी की लड़कियों के साथ होने वाली छेड़छाड़ पर लाइव सीन देना शुरू किए। इन दिनों जब हमारे घर में देवियों की पूजा की जाती है तब इतनी इन्हें जिल्लत झेलनी पड़ी तो अंदाजा लगा सकते हैं कि बाकी दिन इनके साथ किस हद दर्जे का व्यवहार किया जाता होगा? इन सभी सवालों के साथ आई नेक्स्ट द्वारा नवरात्रि के आठवें दिन एक ग्रुप डिस्कशन रखा गया। जिसमें कई ज्वलंत सवाल उभर कर सामने आए। इन सब पर जब गंभीरता से चर्चा हुई तो इसका निष्कर्ष भी निकला।

आखिर बेटी पर ही पहरा क्यों

हमारी बेटी को स्कूल कॉलेज से अगर पांच मिनट भी लेट हो जाए हजारों सवाल खड़े कर दिए जाते हैं। उस पर पूरा घर हावी हो जाता है। दूसरी ओर अगर बेटा देर रात को घर लौटे या रात भर गायब रहे तो भी उससे सवाल नहीं किया जाता है। यह कहां का इंसाफ है? यह वही बेटा है जो बाहर कहीं न कहीं गलत कर रहा है। अगर हम बेटी की बजाय अपने बेटे से सवाल करें तो शायद इस सिस्टम में सुधार ला सकते हैं। कुछ इसी तरह से अगर बेटे की गर्लफ्रेंड है तो उसके लिए हम या तो हंसी में बात को लेते हैं या फिर अनदेखा कर देते हैं, अगर बेटी का कोई ब्यायफ्रेंड की बारी आती है तो तुरंत हम भारतीय सभ्यता की दुहाई देने लगते हैं। क्यों? क्या बेटे की गर्लफे्रंड किसी बेटी नहीं किसी की बहन नहीं?

बेटे से भी करें सवाल

जिस तरह बेटी से सवाल किए जाते हैं। उस पर नजर रखी जाती है उसी प्रकार बेटे पर भी नजर रखें। उससे भी उसी तरह के सवाल करें ताकि वह कुछ गलत न करें।

घर में सिखाएं नैतिकता का पाठ

घर में हमें नैतिकता का पाठ सिखाना होगा। बच्चों को धर्म से जोड़ें। उन्हें ऊपरवाले का डर दिखाएं तभी वह गलत करने से डरेंगे.आपको भी अपनी आदतें सुधारनी होंगी। लेट नाइट पार्टी अगर आप खुद कर रहें हैं तो बेटे को नहीं सुधार सकते हैं।

नैटवर्किंग पर रखें नजर

बच्चे नैट पर क्या सर्च कर रहे हैं क्या नहीं इन सबके लिए जरूरी है कि उनपर नजर रखी जाए। सिस्टम में ऐसे स्थान पर रखें जहां पर आप उसपर नजर रख सकें। कम उम्र में ही इस तरह के मोबाइल न दें ताकि वह कुछ गलत प्रयोग करें। जब आप 250 रुपये की टिकट खरीद सकते हैं तो क्या आप एक 50 रुपये की नैतिक शिक्षा की बुक नहीं खरीद कर दे सकते हैं बच्चों को।

यहां जुल्म सहने वाले की होती है बदनामी

जब भी कोई लड़की के साथ अनहोनी होती है तो वह अगर हिम्मत कर पुलिस के पास जाती भी है तो पुलिस के रवैए से वैसे ही हताश हो जाती है। अगर वह किसी राजनैतिक, या किसी प्रतिष्ठित से न जुड़ी हो तो उसकी तो तुरंत सुनवाई हो जाती है लेकिन अगर वह एक निम्न वर्ग से है तो उसे दिन भर थाने में सिवाय बैठाए रखने के और कुछ नहीं किया जाता। माता-पिता भी फिर डरकर बेटी को घर ही ले आते हैं कि आज हमें पता हैं शाम होते-होते पूरे मोहल्ले में और कल अखबार के जरिए पूरे सिटी में बदनामी हो जाएगी। दूसरी ओर गुनहगार सीना ठोककर खुलेआम सिटी में घूमता फिरता है और सबसे कहता है कि कर ले मेरा जो कर सकें

पुलिस को सुधरना होगा

जब तक इसके लिए तुरंत एक्शन नहीं लिया जाएगा तब तक यह शोहदे नहीं सुधरेंगे। पुलिस को भी लचीला और संवेदनशीलता दिखानी होगी। लड़की से इस तरह के उलटे सीधे सवाल की बजाय उसकी पीड़ा को समझना होगा। सिस्टम से जो भरोसा उठ गया है उसे पुलिस अपने रवैए से वापस लाएं तभी इस तरह की वारदातों पर अंकुश लग सकता है।

लड़कियों को होना होगा बोल्ड

जब तक लड़कियां खुद हिम्मत नहीं दिखाएंगी तबतक कुछ नहीं हो सकता। लड़का अगर कुछ कहता है तो सबसे पहले उसे ही उसके खिलाफ आवाज उठानी होगी। पुलिस में शिकायत करें तुरंत एक्शन न लिया जाए तो किसी संगठन का सहयोग ले पर चुप बिल्कुल न बैठे तभी इस तरह की वारदातें कम होगी। जब अगले दिन इन लक्ष्मीबाई की कहानी और लड़कियां पढ़ेगी तब ही और लक्ष्मीबाई जन्म लेंगी।

महिला सुरक्षा पर महिला पुलिस ही नदारद

महिला सुरक्षा पर जब भी आई नेक्स्ट द्वारा परिचर्चा की गई तब ही पुलिस हर बार ही अपना मुंह छिपाती नजर आई। इस बार भी सिटी की पुलिस का इस तरह से मुंह छिपाना इस बात की गवाही है कि सिटी की महिलाएं कहीं भी किसी भी एंगल से सुरक्षित नहीं हैं। इस परिचर्चा में महिला थानाध्यक्ष तेजस्वनी सिंह को व एसपी सिटी को बुलाया गया पर उन्होंने इस परिचर्चा में आना तो दूर फोन तक उठाना उचित नहीं समझा।