स्लग: आधा दर्जन रिसर्चरों की टीम पहुंची बुंडू के बुरुडीह स्थित मेगालिथिक साइट

- टीम में थे एएसआई दिल्ली के डिप्टी डायरे1टर और जहांगीर यूनिवर्सिटी के विद्वान

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RANCHI (11 Dec): रांची से लगभग 60 किमी दूर बुंडू के बुरुडीह में जब शाम का सूरज ढलने को था, तब अंतरराष्ट्रीय ख्याति के रिसर्चरों की टीम झारखंड के मेगालिथिक इतिहास की कडि़यां जोड़ने में व्यस्त थीं। टीम में शामिल बांग्लादेश की जहांगीर यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर जयंत सिंह राय एक-एक मेगालिथिक पत्थर की बारीकियां परख रहे थे। बुरुडीह के मेगालिथिक साइट की परख करने के बाद उन्होंने बताया कि बुरुडीह की मेगालिथिक साइट की खासियत यह है कि ये डोलमेन अर्थात टेबल स्टोन हैं। यह लाइव मेगालिथिक कल्चर है, क्योंकि आज भी लोग इस ट्रेडिशन को फॉलो कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि मेगालिथिक कल्चर पूरे विश्व में एक जैसा है। झारखंड के मेगालिथ की खासियत है। झारखंड और बांग्लादेश के मेगालिथिक कल्चर में डिफरेंस बस रिचुअल्स के तरीके में है।

परंपरा में कैसे आया शोध का विषय

अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के ऑर्गनाइजिंग सेक्रेटरी डॉ मथुरा राम उस्ताद ने बताया कि मुंडा और असुर जनजातियां मेगालिथिक परंपरा का निर्वहन करती आई हैं पर मुंडा परंपरा में मेगालिथिक कल्चर कैसे आया, यह शोध का विषय है। वहीं आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया दिल्ली के डिप्टी सुपरिटेंडेंट शुभो मजुमदार ने बताया कि झारखंड में जो मेगालिथिक साइट स्थित हैं, उनकी खुदाई नहीं हुई है। इनकी खुदाई हो तो पुरातात्विक इतिहास की कई कडि़यां जुड़ सकती हैं। टीम में शामिल व‌र्द्धमान पश्चिम बंगाल के विद्वान रिसर्चर डॉ सुरोजित राउत ने बताया कि बुरुडीह के मेगालिथिक साइट पर रिसर्च होना चाहिए। इसकी खासियत सामने आएगी। वहीं इतिहासकार और पीपीके कॉलेज बुंडू के डॉ सुभाष चंद्र मुंडा ने बताया कि बुरुडीह का मेगालिथिक स्थल मुंडा परंपरा का हिस्सा है। यहां जो विशालकाय पत्थर हैं, वो कैसे लाये गये, यह भी रिसर्च का विषय है। बुरुडीह अध्ययन के लिए गई रिसर्चरों की टीम में जीवाजी यूनिवर्सिटी ग्वालियर के डॉ आरपी पांडेय, डॉ मथुरा राम उस्ताद, गुसकारा कॉलेज व‌र्द्धमान के डॉ सुरोजित राउत, आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया दिल्ली के डिप्टी डायरेक्टर शुभो मजुमदार, डॉ शाहनवाज कुरैशी, हरेंद्र सिन्हा और त्रिवेंद्रम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ अजीत कुमार शामिल थे।

बॉक्स का मैटर

गड्ढे में मिली मिट्टी की हांडी

बुरुडीह मेगालिथिक साइट पर रिसर्चरों की टीम ने जब एक गड्ढे का अवलोकन किया तो उन्हें मेगालिथिक परंपरा की कुछ झलकियां मिलीं। गड्ढे में दो मिट्टी के घड़े मिले, जिनमें अस्थियों के अवशेष थे। डॉ मथुरा राम उस्ताद ने बताया कि इनमें तांबे के सिक्के और अन्य वस्तुएं मिली हैं। इससे पता चलता है कि मृतकों के साथ उनकी प्रिय वस्तुएं भी दफना दी जाती थीं और उसके ऊपर पत्थर रख दिया जाता था।

बुरुडीह के मेगालिथिक साइट की विशेषताएं

- बुरुडीह साइट रांची से 60 किमी दूर बुंडू में है

- यह लगभग 13 एकड़ में फैला हुआ है

- यहां हजारों की संख्या में विशालकाय पत्थर लगे हुए हैं

- यहां लगे एक-एक पत्थर दो से तीन क्विंटल से भी ज्यादा भारी हैं

- यहां लगाए गए महापाषाण डोलमेन और मेनहील अर्थात लिटाये हुए और लंबवत हैं।

- इस मेगालिथिक साइट के अगल-बगल खेती होती है

- देखरेख के अभाव में यह सिमट रहे हैं।

वर्जन-

चोकाहातू के मेगालिथ बहुत विस्तृत आकार में फैले हैं। झारखंड में इनके ऊपर शोध होने से पता चलेगा कि इनकी शुरुआत कैसे हुई और इनपर विदेशी प्रभाव है या नहीं।

-डाॅ टीएन साहू, एचओडी, टीआरएल डिपार्टमेंट आरयू

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मेगालिथिक परंपरा झारखंड में पाई जाती है पर मुंडा परंपरा में यह कैसे आई यह शोध का विषय है। बुरुहातू की मेगालिथिक साइट लगभग 13 एकड़ में फैली है और इसकी चहारदीवारी के लिए हमने सरकार को प्रस्ताव दिया है।

-डॉ मथुरा राम उस्ताद, आर्गनाइजिंग सेक्रेटरी, अंतरराष्ट्रीय सेमिनार

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मेगालिथ की परंपरा पूरे विश्व में पाई जाती है। झारखंड के मेगालिथ और बांग्लादेश की खासी जनजाति के मेगालिथ में भी समानता है। इनमें असमानता सिर्फ दफन करते समय रीति-रिवाजों और अनुष्ठान में है।

-जयंत सिंह राय, एसोसिएट प्रोफेसर, जहांगीर यूनिवर्सिटी, बांग्लादेश

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मेगालिथिक परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। मुंडा समुदाय के लोग आज भी इस परंपरा का पालन कर रहे हैं, इसलिए यह एक जागृत परंपरा है। इनपर शोध से कई राज खुलेंगे।

-डॉ सुभाष्ा चंद्र मुंडा, एचओडी इतिहास, पीपीके कॉलेज बुंडू