-अब तक केजीएमयू का टेंडर नही हो सका फाइनल

-पिछले दो साल से अब तक नहीं मिल सके 201 सिलेंडर

LUCKNOW:

ऑक्सीजन सप्लाई का बिजनेस बड़े फायदे का है। जिसमें कमीशन से लेकर घटतौली का खेल बड़े पैमाने पर चलता है। शायद यही कारण है कि पिछले पांच वर्षो से केजीएमयू के ऑक्सीजन प्लांट को चलाने का टेंडर फाइनल नहीं हो सका है। केजीएमयू ने ऑक्सीजन की किल्लत, घटतौली से निपटने के लिए दो साल पहले ही ऑक्सीजन प्लांट लगाए थे, लेकिन अब तक इनके संचालन का टेंडर फाइनल नहीं हो सका है।

केजीएमयू में लगभग 4000 बेड से अधिक पर मरीज भर्ती होते हैं। जिनमें से लगभग 540 बेड पर ऑक्सीजन की आपूर्ति की जाती है। इसके लिए केजीएमयू में 12 प्लांट लगे हैं। लिक्विड ऑक्सीजन प्लांट से आने वाली ऑक्सीजन को इन्हीं के जरिये सप्लाई किया जाता है। इन प्लांट्स को चलाने के लिए 2012 में जिम्मेदारी जीटी इंटरप्राइजेज को दी गई थी, लेकिन 2014 में निकाले गये टेंडर में कोई कंपनी आगे नहीं आयी। इसके बाद एक के बाद एक छह टेंडर निकाले गए। 2017 में भी एक टेंडर फरवरी में निकाला गया, लेकिन अब तक यह फाइनल नहीं किया जा सका है।

केजीएमयू ने कराई जांच

केजीएमयू प्रशासन ने शुक्रवार और शनिवार को सभी प्लांट और सप्लाई लाइनों की जांच कराई। सीएमएस, एमएस और ऑक्सीजन के इंचार्ज ने कर्मचारियों को लगाकर पूरा सिस्टम चेक कराया। बैकअप के लिए रखे गए सिलेंडर की संख्या को भी बढ़ा दिया गया है।

अब तक नहीं मिले 201 सिलेंडर

केजीएमयू में अधिकारियों की मिली भगत से मरीजों को जीवन देने वाले ऑक्सीजन सिलेंडर की लूट की जाती है। ऑक्सीजन सिलेंडर भी इसी के तहत गायब कर दिए जाते हैं। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने पिछले हफ्ते ही 61 ऑक्सीजन सिलेंडर गायब होने की खबर प्रमुखता से प्रकाशित की थी। जबकि दो वर्ष पूर्व गायब हुए 140 जंबो ऑक्सीजन सिलेंडर अब तक खोजे नहीं जा सके हैं।

बिना सप्लाई के भेजा बिल

केजीएमयू में वर्ष 2012-13 में ऑक्सीजन सप्लाई का ठेका आशा गैस सर्विस के पास था। उसके मालिक एसपी सिंह ने 37 लाख का बिल पेमेंट के लिए केजीएमयू के अधिकारियों के पास भेज दिया। पता चला यह बिल उन विभागों में ऑक्सीजन सप्लाई का है जहां पर मरीज उस समय तक भर्ती ही नहीं होते थे। कई माह तक अधिकारियों पर लगातार शासन की ओर से दबाव डाला गया कि पेमेंट कर दिया जाए, लेकिन अपनी गर्दन फंसती देख केजीएमयू के डॉक्टर्स ने पेमेंट नहीं किया। इस दौरान डॉक्टर्स ने यह व्यवस्था कर ली कि टेंडर में एल1, एल2 और एल3 वालों को भी 25-25 परसेंट काम सौंप दिया। जिससे इस कंपनी के लापरवाही करने पर मरीजों को ऑक्सीजन का संकट का सामना नही करना पड़ा।

जब सिलेंडर पकड़ बैठे थे तीमारदार

कुछ वर्ष पहले सरोजनी नगर ट्रांसमिशन के बैठ जाने से नादरगंज में लगे ऑक्सीजन प्लांट कंपनी के यहां से सप्लाई बंद हो जाने के बाद भी मरीजों के लिए ऑक्सीजन कम नहीं पड़ी। दूसरी कंपनियों के समय से आक्सीजन सप्लाई होने से मरीजों को ऑक्सीजन दी जा सकी। उस समय ऑक्सीजन की कमी का खौफ इतना अधिक हो गया था कि तीमारदार अपने मरीजों के लिए सिलेंडर पकड़े बैठे रहते थे कि कोई सिलेंडर न गायब कर दे।