विश्व बैंक को उम्मीद है कि अर्थव्यवस्था में सुधार आएगा और विश्व विकास दर 2.5 फीसदी रहेगी। लेकिन इसमें भी विकसित और विकासशील देशों में अंतर साफ़ है। जहां विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में 5.3 फीसदी विकास का पूर्वानुमान है, वहीं विकसित अर्थव्यवस्थाओं में विकास दर केवल 1.4 फीसदी रहेगी।

ऐसे में अर्थशास्त्री हालात में सुधार के लिए दुनिया की किन अर्थव्यवस्थाओं की ओर देखें? चलिए दुनिया की मुख्य अर्थव्यवस्थाओं के हालात और उनकी संभावनाओं पर डालते हैं एक नज़र।

इस साल जनवरी से मार्च के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था 5.3 फीसदी की सालाना दर से बढ़ी जो कि पिछले नौ सालों में सबसे धीमी बढ़ोत्तरी थी। पिछले दो सालों में बढ़ती महंगाई भारतीय नीतिनिर्धारकों की सबसे बड़ी चिंताओं में से एक रही है। बढ़ती कीमतों से निपटने के लिए रिज़र्व बैंक ने कई कदम भी उठाए। इनमें से एक कदम मार्च 2010 के बाद से 13 बार ब्याज दरें बढ़ाना था।

इससे हाल के महीनों में मंहगाई दर कुछ कम तो हुई है लेकिन ये अब भी बाकी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में कहीं ज़्यादा है। पिछले हफ़्ते जारी हुए आंकड़ों के मुताबिक पिछले वर्ष मई की तुलना में इस वर्ष मई में थोक मूल्य सूचकांक बढ़कर 7.55 फीसदी हो गया जो कि ब्रिक समूह के देशों में सबसे ज़्यादा है। थोक मूल्य सूचकांक मंहगाई मापने का मुख्य पैमाना है।

विशेषज्ञों का मानना है कि ऊंची महंगाई दर और धीमी होती अर्थव्यवस्था की वजह से रिज़र्व बैंक के लिए अपनी नीतियां बनाना मुश्किल हो गया है क्योंकि ब्याज़ दर घटाने से विकास तो बढ़ेगा लेकिन साथ ही इससे महंगाई और भी बढ़ सकती है।

एशियन डेवलपमेंट बैंक के मुताबिक इस वर्ष भारत का सकल घरेलू उत्पाद के 6.5 फीसदी की दर से बढ़ने की उम्मीद है। भारतीय सरकार की कोशिश ज़्यादा विदेशी निवेश जुटाने, बुनियादी ढाँचे और बिजली परियोजनाओं में तेज़ी लाने की है।

 

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