-विश्वबैंक के एच ब्लॉक में रहता था, पत्नी और पांच बेटियां बेसहारा हुई

-गुटखा खाने की लत से हुआ था कैंसर, एक साल से चल रहा था इलाज

-इलाज में प्रॉपर्टी, जेवर समेत बर्तन तक बिक गए, कर्ज में लदा था मृतक

-एसओ और सीओ ने आर्थिक मदद की, एसीएम ने सरकारी मदद का आश्वासन दिया

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KANPUR : गुटखा समेत अन्य तम्बाकू उत्पाद और सिगरेट का कश लगाने वालों के लिए यह खबर नहीं, बल्कि चेतावनी है। कैंसर रोगी की जान ही नहीं लेता है, बल्कि पूरे परिवार को खोखला कर देता है। बर्रा में पांच बेटियों का पिता गुटखा की लत से कैंसर रोगी हो गया। शनिवार को उसकी अचानक हालत बिगड़ गई। उसको तिल-तिल मरता देख बुजुर्ग मां को इतना गहरा आघात हुआ कि उनकी भी जान चली गई। परिजन उनकी मौत का मातम मना रहे थे कि कैंसर रोगी की भी मौत हो गई। दो मौतों से घर में कोहराम मच गया। पत्नी और बच्चियां शव से लिपट-लिपट कर रो रही थीं।

अंतिम संस्कार के लिए भ्ाी पैसे नहीं

घर के हालात इस घर कदर खराब हो चुके थे कि घर में खाने को भी लाले थे। पत्नी रोते हुए बोल रही थी कि अब मेरी बेटियों का क्या होगा? उसके पास तो पति और सास का अंतिम संस्कार करने के लिए पैसे भी नहीं हैं। उनकी दयनीय हालत को देख हर किसी की आंख भर आई। सूचना पर बर्रा एसओ ने मौके पर जाकर अंतिम संस्कार करने के लिए आर्थिक मदद की। सीओ और व्यापार मण्डल के पदाधिकारी ने उनकी आर्थिक मदद की। वहीं, एसीएम ने शासन ने आर्थिक मदद दिलाने का भरोसा दिलाया।

मुंह का कैंसर हो गया था

बर्रा के विश्वबैंक एच ब्लॉक में रहने वाले मनोज दीक्षित (38) मूलरूप से बिल्हौर के मखनपुर निवासी थे। उसके परिवार में मां गायत्री देवी, पत्नी अराधना और पांच बेटियां मानसी, प्रियांशी, चंचल, छोटी और आदित्या है। मनोज को गुटखा खाने की लत थी, जिससे उसको मुंह का कैंसर हो गया था। करीब डेढ़ साल पहले उसको इसका पता चला तो उसके होश उड़ गए। वो डॉ। विशाल से इलाज करवा रहा था। शनिवार की शाम को उसकी अचानक तबियत बिगड़ गई। उसके खून की उल्टियां होने लगी, जिसे देख अराधना के हाथ-पांव फूल गए। उसने डॉ। विशाल को फोन किया, लेकिन उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया।

मां नहीं सहन कर पाई बेटे का दर्द

अराधना को कुछ समझ में नहीं आया तो वो मनोज को हैलट ले गई। डॉक्टर्स ने मेडिसिन तो दे दी, लेकिन उन्होंने उसको एडमिट करने से मना कर दिया। इसके बाद वो उसको जेके कैंसर ले गए, लेकिन वहां पर भी उसको एडमिट करने से मना कर दिया गया। मजबूरी में अराधना को उसको घर ले जाना पड़ा। वो कुछ देर तक आराम से लेटा रहा, लेकिन उसको फिर से खून की उल्टी होने लगी। मां गायत्री उसके पीठ पर हाथ फेर रही थी, ताकि उसको आराम मिल जाए, लेकिन वो दर्द से तड़प रहा था। उसको तड़प को गायत्री सहन नहीं कर पाई और उनकी जान चली गई। उनकी मौत से घर में मातम पसर गया। इसी बीच अराधना मनोज को दवा देने गई तो पता चला कि मनोज की भी मौत हो चुकी है।