-सिर्फ ऑकेजन पर होती है पूछ

-झालरों की चकाचौंध और इनवर्टर के कारोबार से गिरा बिजनेस का ग्राफ

-कुछ घरों में ही तो कुछ फैक्ट्री में बनाते हैं मोमबत्ती

GORAKHPUR: दिवाली के मौके पर दीयों और झालरों की चकाचौंध में अगर किसी तीसरी चीज की पूछ होती है, तो वह है मोमबत्ती। अब तक शहर में अंधेरे घरों को रोशन करने वाली यह मोमबत्तियां अब सिर्फ फेस्टिव सीजन में ही नजर आती हैं। एक बार फिर इनका दौर आ चुका है, मगर मार्केट में इनकी रौनक और पूछ दोनों हद से ज्यादा कम हो चुकी है। कारोबारी भी अब साल भर दूसरा बिजनेस करते हैं और जब दिवाली करीब आती है, तो 20-25 दिन मोमबत्ती का काम करने में जुट जाते हैं।

40 फीसद तक गिर गई सेल

मोमबत्ती की सेल की बात करें तो अब यह सिर्फ त्योहारों में ही पूछी जाती है। वह भी उनके घर, जिनकी पहुंच से दीये भी दूर हैं। एक दीये पर कम से कम तीन से पांच रुपए न खर्च कर पाने वाले लोग मोमबत्ती से ही घरों को रोशन करते हैं। यही वजह है कि कारोबारियों के बाद भी डिमांड में काफी कमी आई है। मोमबत्ती करोबारी सूरज की मानें तो पांच सालों में मोमबत्ती की सेल काफी प्रभावित हुई है। पहले जहां 10 हजार रुपए कमा लेते थे, वह सेल सिमटकर 5-6 हजार पर आ पहुंची है। इस तरह करीब 40 फीसद मोमबत्ती की डिमांड में कमी आई है।

झालर की रोशनी में धुंधला हुआ बिजनेस

दिवाली में इन दिनों चाइनीज लाइट्स की फिर से चकाचौंध है। जहां देखो इससे ही बाजार गुलजार हैं। सस्ते दामों में ज्यादा दिनों तक चलने की वजह से लोग इन्हें हाथों-हाथ ले रहे हैं। इससे मोमबत्ती के बिजनेस पर काफी असर पड़ा है। कुछ घंटों में जलकर खत्म हो जाने वाली मोमबत्ती को लेने के बजाए, लोग झालर और लाइट्स को लेने में लगे हैं। वहीं रही सही कसर इनवर्टर ने पूरी कर दी है, जिससे बिजली जाने के बाद भी कोई मोमबत्ती को पूछ नहीं रहा है और इनका बिजनेस दिन ब दिन नीचे चला जा रहा है।

गीडा में फैक्ट्री, घरों में भ्ाी मोमबत्ती

मोमबत्ती मेकिंग इतनी आसान है कि कोई भी यह कारोबार आसानी से शुरू कर सकता है। इसमें ज्यादा इनवेस्ट भी नहीं करना पड़ेगा। यही वजह है कि कुछ इलाकों में घर-घर यह करोबार हो रहा है, तो वहीं गीडा में इसकी कई फैक्ट्रियां भी चल रही हैं। इलाहीबाग, लालडिग्गी, साहबगंज के साथ ही बहरामपुर, हुमायूंपुर जैसे कुछ इलाके हैं, जहां लोग अपने घरों में ही मोमबत्ती बनाते हैं। इसमें घरों में बनने वाली मोमबत्ती ज्यादातर ऑकेजनल ही बनती है।