आखिरकार लिया बड़ा फैसला

जीवन के 20 बसंत लड़का बनकर गुजार चुके वैभव (काल्पनिक नाम) के लिए अब आगे का जीवन एक नई चुनौती होगा। इसकी वजह यह है कि अब उसका जेंडर चेंज हो गया है। वह लड़के से लड़की बन गया है। यहीं से उसकी दु:श्वारियां भी शुरू हो गई हैं। एचबीटीआई में बीते सेशन में लैटरल एंट्री में उसने सेकेंड इयर मे एडमिशन लिया था। एडमिशन के बाद उसे हार्मोनल डिस्बैलेंस की समस्या जूझना पड़ा। उसे लगने लगा कि वो लड़की है। एक दिन ऐसा आया कि उसे लगा कि लड़का बन कर वो जिंदा नहीं रह पाएगा। आखिरकार उसने बड़ा फैसला किया। उसने ऑपरेशन कराके अपना जेंडर चेज करा लिया। इस दौरान वो छुट्टी पर रहा। एचबीटीआई में हड़कम्प तब मच गया जब उसकी एक ई मेल कॉलेज प्रशासन को मिली। एचबीटीआई के न्यू एकेडमिक सेशन में उसने ईमेल करके री एडमिशन के साथ-साथ ग‌र्ल्स हॉस्टल मे रूम मांगा है। उसने बाकायदा सुप्रीम कोर्ट के वकील की राय लेकर सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग्स का हवाला देते हुए अपना हक मांगा है। इस मेल से संस्थान प्रशासन के होश उड़ गए हैं। इंस्टीट्यूट एडमिनिस्ट्रेशन ने इस महत्वपूर्ण प्रकरण पर गवर्नमेंट के साथ यूपीटीयू से भी राय मांगी है।

आगे की राह आसान नहीं

वेस्टर्न यूपी गाजियाबाद के इंडस्ट्रियल एरिया के रहने वाला वैभव जब इस दुनिया मे आया था तो वह लड़का था। बचपन से लेकर यूजी की शिक्षा उसने लड़के के रूप में ग्रहण की, लेकिन पीजी की डिग्री लेने के टाइम उसके शरीर में परिवर्तन होने लगे। लड़का से लड़की बनने के प्रॉसेस में उसे एक साल का वक्त लग गया। जिसने एचबीटीआई में लड़के के तौर पर एडमिशन लिया था वो अब लड़की बन कर पढ़ना चाहता है और लड़कियों के हॉस्टल में रहना चाहता है।

एक साल पहले एडमिशन लिया था

एचबीटीआई सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इयर 2014-15 के एकेडमिक सेशन में वैभव ने लैटरल एंट्री योजना के तहत एडमिशन लिया था। उसनें पीजी की पढ़ाई के लिए एडमिशन लिया था। स्नातक की डिग्री उसने पूर्वोत्तर राज्य की एक यूनिवर्सिटी से हासिल की थी। एचबीटीआई में एडमिशन के बाद उसे कुछ हार्मोनल प्रॉब्लम हुई तो वह कैंपस से बिना एग्जामनेशन फार्म भरे वापस घर चला गया। हम उसका असली नाम और कोर्स का नाम इसलिए नहीं बता रहे ताकि उसके काम में कोई बाधा न पड़े।

मेडिकल बोर्ड ने प्रमाणपत्र दिया

घर पहुंच कर मेडिकल फील्ड के एक्सपर्ट से उसने अपना चेकअप कराया। आल इंडिया मेडिकल साइंस इंस्टीट्यूट के एक्सपर्ट डॉक्टर्स ने उसका ट्रीटमेंट किया और करीब म् महीने में उसे लड़का से लड़की बना दिया। इसके बाद मेडिकल बोर्ड ने उसका मेडिकल चेकअप किया और उसे जेंडर चेंज हो जाने का सार्टिफिकेट दे दिया।

20 मार्च को ईमेल किया

मेडिकली फिट होने के बाद वैभव ने 20 मार्च को एचबीटीआई के डायरेक्टर प्रो। एके नागपाल को एक ईमेल भेजा। जिसमें उसने अपना जेंडर होने का डिटेल दिया। इस मेल के माध्यम से वैभव ने डायरेक्टर से मांग की कि उसे थर्ड सेमेस्टर में री एडमिशन दिया जाए। साथ ही साथ ग‌र्ल्स हास्टल में रूम एलाट किया जाए, ताकि वह अपनी पढ़ाई पूरी कर सके।

आखिर उसे कहां रखा जाए

एचीबीटीआई प्रशासन इस बात को लेकर परेशान है कि उसे कहां रखा जाए। बीते सेशन में उसका एडमिशन मेल केटेगिरी में हुआ था। अब उसका एडमिशन फीमेल केटेगिरी में बदले नाम के साथ कैसे किया जाए। लड़कों के हास्टल में उसे रखा नहीं जा सकता। ग‌र्ल्स हॉस्टल में रूम देना संभव नहीं है। एक दो हॉस्टल वार्डेन ने ग‌र्ल्स हॉस्टल में न रखने की बात कही है।

ईमेल में अपना बदला नाम भी लिखा

वैभव ने जेंडर चेंज होने के साथ अपना नया नाम भी संस्थान प्रशासन को सजेस्ट करने के साथ कहा है कि उसे अब इसी नाम से जाना जाए। (दोनों नाम पब्लिश नहीं किए जा रहे हैं ताकि उसकी गोपनीयता बरकरार बनी रहे) इस ईमेल के बाद संस्थान प्रशासन लीगल प्वाइंट्स को लेकर काफी परेशान है। इसकी मुख्य वजह सभी सार्टिफिकेट में उसका नाम वैभव लिखा हुआ है।

अधिवक्ता से बात कर मेल किया

वैभव सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता से इस पूरे मामले पर राय लेकर संस्थान को मेल किया है। मेल में लिखा है कि एचबीटीआई की ड्यूटी है कि वो उसकी हर संभव मदद करे। ट्रांस जेंडर पर सुप्रीम कोर्ट के नाल्सा जजमेंट का जिक्र भी इस ईमेल में वैभव ने किया है। वैभव ने मेल में लिखा है कि वह सोसाइटी में चेंज्ड जेंडर के साथ आराम से जिंदगी गुजारेगा। उसकी दिली ख्वाहिश है कि अब एचबीटीआई से पीजी की पढ़ाई पूरी करे।

फैमिली मेंबर्स को साथ में रखे

संस्थान प्रशासन ने मामले पर अब शासन के साथ उत्तर प्रदेश टेक्निकल यूनिवर्सिटी से भी राय मांगी है। हालांकि डायरेक्टर इस मामले को लेकर काफी सतर्कता बरत रहे हैं। उनका प्रयास है कि फैमिली मेंबर्स में कोई एक उसके साथ रहे। इसके अलावा उसे टीचर्स के किसी क्वार्टर में रखा दिया जाए। ग‌र्ल्स या ब्वॉयज हॉस्टल में जगह देना संभव नहीं है।

'इंस्टीट्यूट में एक साल पहले एडमिशन ले चुके स्टूडेंट ने ईमेल करके री एडमिशन के साथ ग‌र्ल्स हॉस्टल में रूम की डिमांड की है। उसका जेंडर चेंज हो गया है। उसने मेल में अपने दो फीमेल नाम भी लिख कर भेजे हैं। उसे एडमिशन तो मिलेगा लेकिन हॉस्टल में रखने की समस्या है। इस मामले पर शासन और यूपीटीयू से राय मांगी गई है। संस्थान के सामने यह मामला गंभीर है किसी बच्चे के फ्यूचर का सवाल है।

-प्रो। एके नागपाल, डायरेक्टर एचबीटीआई

साइकोलॉजिकल प्राब्लम नहीं होगी

इस तरह के लोगों की सोच शुरू से थोड़ा बहुत लड़कियों वाली होती है। लेकिन लड़का से लड़की बनने में सब कुछ चेंज हो गया है। अब नई पहचान से वो कितना तालमेल बैठा पाएगा यह बड़ी बात है। जब वह खुद को अच्छी तरह से समझ लेगा तो समस्या नही आएगी। लेकिन सोसाइटी मे उसे दिक्कत होगी। उसे मेंटल शॉक लग सकता है वह डिप्रेशन में जा सकता है। अगर मेंटली स्ट्रांग होगा तो फिर समस्या से पार पा लेगा।

-डॉ। विहान सान्याल, साइकोलॉजिस्ट

'जीवन का इतिहास नहीं छोडे़गा पीछा'

वैभव के जीवन का इतिहास उसका पीछा कभी नहीं छोडे़गा। वह जहां भी जाएगा उसके मन में आशंका बनी रहेगी। समाज में उसे विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा। उसको सामाजिक मान्यता नहीं मिलेगी। इंडियन जुडीशियली सिस्टम तो उसे मान्यता देगा लेकिन इससे उसके सामाजिक जीवन में कोई बदलाव नहीं आएगा। वह अपनी पहचान बनाने की जद्दोजहद में ही परेशान रहेगा। उसका बीता जीवन ही उसके लिए सबसे बड़ी समस्या होगी। लेकिन अगर वो मेंटली स्ट्रांग होगा तो फिर उसे उतनी समस्या नहीं आएगी। उसको सामाजिक जीवन जीने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। लेकिन उसे मानसिक दृढ़ता दिखानी होगी।

-प्रो। जयशंकर पांडेय, समाजशास्त्री

बचपन की अनदेखी पड़ती है भारी

जो बच्चे बचपन में ही जेनेटेलिया से पीडि़त होते हैं। उन्हें इस तरह की समस्याओं से जूझना पड़ता है। परिवार के लोग बेटा समझकर पालन पोषण करते रहते हैं लेकिन जब वो 16 की उम्र पार करते हैं तो हार्मोनल डिस्बैलेंस होता है और तब पता चलता है कि वह तो लड़का नहीं लड़की है। सबसे खास बात ये है कि इस टाइम ब्रेस्ट का डेवलपमेंट तेजी से होने लगता है। पेरेंट्स बच्चा पैदा होने के बाद बालरोग एक्सपर्ट से चेकअप कराएं जोकि चेकअप करके बताए कि बेटा है या बेटी तो स्थिति बदल सकती है। मेल से फीमेल में बदलना बहुत आसान है लेकिन फीमेल से मेल ट्रांसजेंडर बहुत कठिन होता है। जेंडर चेंज करने में 8 से 10 घंटे की सर्जरी होती है। जिसमें कि यूरो सर्जन के साथ साथ प्लास्टिक सर्जन की भूमिका अहम होती है। मेल से फीमेल बनाने में करीब 3 से 4 लाख रुपये का खर्च आता है।

-डॉ। अनिल जैन, सीनियर यूरोलॉजिस्ट

मिस्टर मल्होत्रा को मत छोड़ना

करीब 8 साल पहले सिटी के एक मेरीटोयिस स्टूडेंट ने आईआईएमटी मेरठ में बीटेक में एडमिशन लिया था। हार्मोनल डिस्बैलेंस होने की वजह से इस मेधावी ने भी सर्जरी कराई थी लेकिन अटेंडेंस शार्ट होने की नोटिस कॉलेज प्रशासन ने घर में भेज दी थी। मेधावी मेडिकल सार्टिफि केट लेकर कॉलेज गया। जहां पर डायरेक्टर मिस्टर मल्होत्रा से मिला और पूरी जानकारी दी। डायरेक्टर ने स्टूडेंट की भावना नहीं समझी और बदसलूकी करते हुए सर्जरी दिखाने को कहा। यह जानकारी हॉस्टल में रहने वाले स्टूडेंट्स को मिली तो उसका मजाक उड़ाया। जिससे परेशान होकर हास्टल में उसने सुसाइड कर लिया था। सुसाइड के पहले उसने अपने हाथ पर लिखा था कि डायरेक्टर मिस्टर मल्होत्रा को न छोड़ना। इस घटना को याद कर एचबीटीआई प्रशासन फूंक फूंक कर कदम उठा रहा है।

थॉमस ने पहला जेंडर चेंज कराया था

दुनिया का पहला ट्रांस जेडर चेंज अमेरिकी नागरिक थॉमस वीटी ने कराया था। करीब सात साल पहले इयर 2007-08 में थॉमस ने 34 साल की एज में मेल से फीमेल बनकर एक सुंदर बेटी को जन्म दिया था। आज वह दुनिया में पहले ट्रांस जेंडर कराने वाले शख्सियत बने हुए हैं। इसके पहले वह फ्फ् साल तक मेल रहकर दुनिया में घूमे।

Report by: Pradeep Tripathi

pradeep.tripathi@inext.co.in