सरकार ने इन्हें ठेंगा दिखा दिया
क्या दिल्ली सरकार का खजाना सचमुच बिल्कुल खाली हो गया है? क्या सूबे की हुकूमत की तिजोरी में इतनी भी रकम नहीं बची है कि वह पैसे के लिए बिलबिला रही राजधानी के तीनों नगर निगमों की फौरी सहायता कर सके? यह सच नहीं है. सच तो यह है कि सरकार की तिजोरी में गैर योजना मद के लगभग 1800 करोड़ रुपये सरप्लस पड़े हैं और खर्च नहीं हो पाने के कारण 31 मार्च को समाप्त हो रहे चालू वित्त वर्ष के मद्देनजर यह रकम सरकारी खजाने में जमा हो जाएगी. यदि सरकार चाहती तो इसमें से कुछ रकम निश्चित रूप से नगर निगमों को दे सकती थी लेकिन सरकार ने इन्हें ठेंगा दिखा दिया. इस सरकारी आंकड़े से साफ है कि दिल्ली सरकार द्वारा निगमों को आर्थिक सहायता नहीं दिए जाने की बाकी जो भी वजह हो, कम से कम आर्थिक तंगी इसकी वजह नहीं है.

आक्रोशित हैं निगम कर्मचारी
आपको बता दें कि राजधानी के तीनों नगर निगमों के सफाई कर्मचारियों को बीते तीन महीनों से वेतन नहीं मिल रहा है. आर्थिक तंगी से परेशान ये कर्मचारी अब सड़कों पर उतर आए हैं. वे कूड़ा सड़कों पर फेंक कर प्रदर्शन कर रहे हैं, सड़क जाम कर रहे हैं, पुतले फूंक रहे हैं. सोमवार को भी इन कर्मचारियों के विरोध प्रदर्शनों के कारण राजधानी में घंटों जाम की स्थिति बनी रही. पूर्वी दिल्ली में हालत कुछ ज्यादा ही खराब रही. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से लेकर सरकार के अन्य मंत्री तक यही कह रहे हैं कि नगर निगमों के लिए केंद्र सरकार से करीब 600 करोड़ रुपये की रकम मिलनी थी. चूंकि केंद्र से वह पैसा दिल्ली सरकार को नहीं मिला, इसीलिए निगमों को पैसा नहीं दिया गया. दिल्ली मुख्यमंत्री ने दिल्ली विधानसभा में विपक्ष से भी कहा कि वह खुद अपनी सरकार के मंत्रियों व विधायकों के साथ केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के पास चलने को तैयार हैं. केजरीवाल सरकार कहती रही है कि उसके पास नगर निगमों को देने के लिए जो कुछ था, वह दे चुकी है. अब उसके पास अतिरिक्त रकम नहीं बची है. उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने भी कहा है कि सरकार 4500 करोड़ रुपये के भारी-भरकम घाटे ें है.

कब्जा जमाने की सियासत अभी से शुरू
दो साल बाद होने हैं निगम चुनाव दो साल बाद तीनों निगमों के चुनाव होने वाले हैं और ऐसा माना जा रहा है कि भाजपा और आप के बीच चुनाव में इन निगमों पर कब्जा जमाने की सियासत अभी से शुरू हो गई है. शायद यही वजह है कि दिल्ली की आप सरकार, नगर निगमों की हालत का ठीकरा केंद्र की भाजपा सरकार के सिर पर फोड़ रही है जबकि भाजपा शासित नगर निगम दिल्ली सरकार पर दबाव बना रहे हैं भाजपा व आप की लड़ाई में प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय माकन भी कूद पड़े हैं. उन्होंने कहा कि वित्त वर्ष 2012-13 में जब केंद्र में कांग्रेस की सत्ता थी तो तीनों निगमों के लिए 3,128 करोड़ रुपये की राशि जारी की गई थी लेकिन दिल्ली में राष्ट्रपति शासन के दौरान केंद्र की भाजपा सरकार ने वित्त वर्ष 2014-2015 के बजट में इस रकम में 651 करोड़ रुपये की कटौती कर दी और महज 2,477 करोड़ रुपये ही निगमों को दिए गए. आप की सरकार ने इस रकम में 62 करोड़ की कटौती और कर दी है.

निगम की खराब आर्थिक स्थिति
उत्तरी दिल्ली नगर निगम की स्थायी समिति की बैठक में नगर निगम की माली हालत का मुद्दा छाया रहा निगम में विपक्ष के नेता मुकेश गोयल ने इसके लिए केंद्र व राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि केंद्र सरकार द्वारा स्वच्छ भारत अभियान में दिल्ली के नगर निगमों को पांच सौ करोड़ रुपये उपलब्ध कराए जाने थे लेकिन पांच माह बाद भी यह राशि अवमुक्त नहीं की जा सकी है.इसी तरह दिल्ली सरकार द्वारा भी नगर निगमों के बजट में काफी कटौती की गई है. उन्होंने कहा कि इस कारण ही नगर निगमों की माली हालत बदतर हो गई है. उत्तरी दिल्ली नगर निगम को नालों की सफाई के लिए वित्तीय वर्ष 2012-13 के 35 करोड़ की तुलना में 2014-15 में महज एक करोड़ रुपये जारी किए गए हैं. गोयल ने कहा कि ऐसे में व्यवस्था खराब होना लाजिमी है.
सरकार ने इन्हें ठेंगा दिखा दिया
क्या दिल्ली सरकार का खजाना सचमुच बिल्कुल खाली हो गया है? क्या सूबे की हुकूमत की तिजोरी में इतनी भी रकम नहीं बची है कि वह पैसे के लिए बिलबिला रही राजधानी के तीनों नगर निगमों की फौरी सहायता कर सके? यह सच नहीं है. सच तो यह है कि सरकार की तिजोरी में गैर योजना मद के लगभग 1800 करोड़ रुपये सरप्लस पड़े हैं और खर्च नहीं हो पाने के कारण 31 मार्च को समाप्त हो रहे चालू वित्त वर्ष के मद्देनजर यह रकम सरकारी खजाने में जमा हो जाएगी. यदि सरकार चाहती तो इसमें से कुछ रकम निश्चित रूप से नगर निगमों को दे सकती थी लेकिन सरकार ने इन्हें ठेंगा दिखा दिया. इस सरकारी आंकड़े से साफ है कि दिल्ली सरकार द्वारा निगमों को आर्थिक सहायता नहीं दिए जाने की बाकी जो भी वजह हो, कम से कम आर्थिक तंगी इसकी वजह नहीं है.


आक्रोशित हैं निगम कर्मचारी
आपको बता दें कि राजधानी के तीनों नगर निगमों के सफाई कर्मचारियों को बीते तीन महीनों से वेतन नहीं मिल रहा है. आर्थिक तंगी से परेशान ये कर्मचारी अब सड़कों पर उतर आए हैं. वे कूड़ा सड़कों पर फेंक कर प्रदर्शन कर रहे हैं, सड़क जाम कर रहे हैं, पुतले फूंक रहे हैं. सोमवार को भी इन कर्मचारियों के विरोध प्रदर्शनों के कारण राजधानी में घंटों जाम की स्थिति बनी रही. पूर्वी दिल्ली में हालत कुछ ज्यादा ही खराब रही. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से लेकर सरकार के अन्य मंत्री तक यही कह रहे हैं कि नगर निगमों के लिए केंद्र सरकार से करीब 600 करोड़ रुपये की रकम मिलनी थी. चूंकि केंद्र से वह पैसा दिल्ली सरकार को नहीं मिला, इसीलिए निगमों को पैसा नहीं दिया गया. दिल्ली मुख्यमंत्री ने दिल्ली विधानसभा में विपक्ष से भी कहा कि वह खुद अपनी सरकार के मंत्रियों व विधायकों के साथ केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के पास चलने को तैयार हैं. केजरीवाल सरकार कहती रही है कि उसके पास नगर निगमों को देने के लिए जो कुछ था, वह दे चुकी है. अब उसके पास अतिरिक्त रकम नहीं बची है. उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने भी कहा है कि सरकार 4500 करोड़ रुपये के भारी-भरकम घाटे ें है.


कब्जा जमाने की सियासत अभी से शुरू
दो साल बाद होने हैं निगम चुनाव दो साल बाद तीनों निगमों के चुनाव होने वाले हैं और ऐसा माना जा रहा है कि भाजपा और आप के बीच चुनाव में इन निगमों पर कब्जा जमाने की सियासत अभी से शुरू हो गई है. शायद यही वजह है कि दिल्ली की आप सरकार, नगर निगमों की हालत का ठीकरा केंद्र की भाजपा सरकार के सिर पर फोड़ रही है जबकि भाजपा शासित नगर निगम दिल्ली सरकार पर दबाव बना रहे हैं भाजपा व आप की लड़ाई में प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय माकन भी कूद पड़े हैं. उन्होंने कहा कि वित्त वर्ष 2012-13 में जब केंद्र में कांग्रेस की सत्ता थी तो तीनों निगमों के लिए 3,128 करोड़ रुपये की राशि जारी की गई थी लेकिन दिल्ली में राष्ट्रपति शासन के दौरान केंद्र की भाजपा सरकार ने वित्त वर्ष 2014-2015 के बजट में इस रकम में 651 करोड़ रुपये की कटौती कर दी और महज 2,477 करोड़ रुपये ही निगमों को दिए गए. आप की सरकार ने इस रकम में 62 करोड़ की कटौती और कर दी है.


निगम की खराब आर्थिक स्थिति
उत्तरी दिल्ली नगर निगम की स्थायी समिति की बैठक में नगर निगम की माली हालत का मुद्दा छाया रहा निगम में विपक्ष के नेता मुकेश गोयल ने इसके लिए केंद्र व राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि केंद्र सरकार द्वारा स्वच्छ भारत अभियान में दिल्ली के नगर निगमों को पांच सौ करोड़ रुपये उपलब्ध कराए जाने थे लेकिन पांच माह बाद भी यह राशि अवमुक्त नहीं की जा सकी है.इसी तरह दिल्ली सरकार द्वारा भी नगर निगमों के बजट में काफी कटौती की गई है. उन्होंने कहा कि इस कारण ही नगर निगमों की माली हालत बदतर हो गई है. उत्तरी दिल्ली नगर निगम को नालों की सफाई के लिए वित्तीय वर्ष 2012-13 के 35 करोड़ की तुलना में 2014-15 में महज एक करोड़ रुपये जारी किए गए हैं. गोयल ने कहा कि ऐसे में व्यवस्था खराब होना लाजिमी है.

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