स्टार्ट टू फिनिश इस बार प्रकाश झा ना सिर्फ सब्जेक्ट से डाइवर्ट नहीं हुए बल्कि नक्सलाइट के इश्यू् पर उनकी रिसर्च और सेंसिटिविटी साफ दिखाई पड़ी। यह एक ऐसा टॉपिक रहा है जिस पर गवरमेंट का स्टैंड भी साफ समझना मुश्किल है ऐसे में आप किस को सही कहें और किस को गलत यह कहना काफी कठिन और अनजस्टिफाइड भी लगता है। लेकिन प्रकाश ने कहीं कोई डिसीजन नहीं दिया है बल्कि हर किसी के वर्जन को उसी के इमोशंस के साथ सामने रख कर फैसला आप पर छोड़ दिया है लेकिन भटकाया नहीं है।

 

दो फ्रेंड पुलिस ऑफिसर आदिल खान (अर्जुन रामपाल) और पुलिस इंफार्मर कबीर (अभय देओल) नक्सल मूवमेंट को अपने आइडियलिज्म के चश्में से देखते और साल्व करना चाहते हैं। मगर जब खूंखार नक्सलाइट राजन (मनोज बाजपेयी) उनके सामने आता है तो किस तरह उनकी दोस्ती, उनके आर्दश और फैक्ट्स चेंज होते हें यही चक्रव्यूह है जिसमें करेक्टर के साथ हम भी उलझते हैं और अपने अपने रास्ते तलाशते हैं।

 

अभय देओल और मनोज बाजपेयी ने बेशक अपने करेक्टर्स के साथ पूरा जस्टिस किया है। अर्जुन का काम कुछ सतही लगता है पर वो ज्यादा खटकते नहीं हैं क्योंकि उनके रोल की रूडनेस इस सपाट एक्सेप्रेशन से इन्हैंस होती लगती है। कहीं कहीं लगता है कि प्रकाश फैक्टस के साथ बेहद क्रूर हो गये हैं जिससे फिल्म जैसे मीडियम की साफ्टनेस खत्म होती लगती है। बहरहाल यह एक नाजुक सब्जेक्ट पर बनी ऑनेस्ट फिल्म है।

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