- पैरेंट्स नहीं रखते बच्चों पर नजर

- बच्चों को अंडर ऑब्जर्वेशन में रखना जरुरी

LUCKNOW :

हंसता खेलता, तनाव से दूर, बचपन आज के समय में दूर होता जा रहा है। कुछ समय पहले जो बचपन बाग बगीचे, पार्को, दोस्तों के साथ मौज मस्ती में गुजरता था अब वो बचपन वीडियो गेम, कंप्यूटर, मोबाइल में इंस्टॉल हिंसक गेमों को खेलता नजर आता है। इसका असर उनके शारीरिक और मानसिक स्वभाव में देखने को मिल रहा है। दो दिन पहले अलीगंज के ब्राइट लैंड स्कूल में हुआ हादसा एक बार फिर आधुनिक दौर में बच्चों की बदल रही मानसिक मनोदशा की ओर इशारा कर रहा है। बच्चों की इस मानसिक मनोदशा को कैसे बदला जाए, इसके लिए पैरेंट्स, टीचर्स की क्या भूमिका होनी चाहिये। हमें उनके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिये, इस पर पैरेंट्स, मनोचिकित्सक और समाजसेवियों ने अपने सुझाव दिये।

सोशल नेटवर्किंग गेम्स का ज्यादा असर

मनोचिकित्सक डॉ। देवाशीष ने बताया कि मोबाइल गेम्स और सोशल नेटवर्किंग गेम्स काफी हिंसक होते हैं। आज कल बच्चे आउटडोर गेम्स से दूर हो गये हैं। बच्चों का ज्यादातर समय अब गैजेट्स पर बीतता है। आक्रामक गेम्स से बच्चों के अंदर उत्तेजना ज्यादा आ जाती है। वीडियो गेम्स व मोबाइल से चिपके रहने के कारण बच्चों के अंदर चिड़चिड़ापन व गुस्सा ज्यादा हो जाता है।

एकल परिवार ने बढ़ाई दूरी

आज के समय में संयुक्त परिवार का चलन खत्म हो गया है। उसकी जगह एकल परिवार ने ले ली है। ऐसे में अगर पति पत्‍‌नी दोनों वर्किंग में होते हैं तो बच्चों की देखभाल करने वाला कोई नहीं होता है। जबकि संयुक्त परिवार में माता पिता न होने पर उनकी देखभाल करने वाले घर के अन्य सदस्य मौजूद रहते हैं। इसके अलावा आज के समय में पैरेंट्स के पास बच्चों के लिए समय नहीं है। वो बच्चों की जिद्द पूरी कर देते हैं, लेकिन उनको समय नहीं देते है। जिससे बच्चों को अच्छे बुरे का पता नहीं चलता।

ऑब्जर्वेशन बहुत जरूरी

अगर आपका बच्चा गेम्स खेल रहा है या कोई भी काम कर रहा है तो उसपर आपकी नजर होना बहुत जरुरी है। उसको सही गलत का फर्क बतायें। अगर आप अपने बच्चों पर नजर नहीं रखते तो इससे आपके और बच्चे के बीच काफी डिफरेंस आयेगा। जिसको समय रहते दूर करना जरुरी है। अगर सही समय पर कदम नहीं उठाया गया तो आने वाले समय में आपका बच्चा कोई गलत कदम उठा सकता है।

सोशल मीडिया एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जहां पर अच्छा बुरा सब मौजूद है। ऐसे में बच्चे जब इस प्लेटफॉर्म पर आते हैं तो उनपर नजर रखना चाहिए कि बच्चें क्या देख रहे हैं, क्या खेल रहे हैं। बच्चों को सही गलत का फर्क नहीं पता होता ऐसे में पैरेंट्स का फर्ज होता है कि वो अपने बच्चों को ज्यादा से ज्यादा समय दें। उनके साथ बैठकर उनको सोशल मीडिया पर मौजूद कई गेम्स के बारे में जानकारी दें। उनकी बातों को सुनें। बच्चों के साथ माता पिता को दोस्ताना व्यवहार रखना चाहिए।

डॉ। देवाशीष, मनोचिकित्सक

1. मेरा अपना बिजनेस है। मेरे दो बच्चें हैं। मैंने अपना शेड्यूल बच्चों के हिसाब से बनाया हुआ है। उनके स्कूल जाने के बाद ही मैं ऑफिस जाती हूं उनको दोपहर में वापस लेते हुए घर आ जाती हूं। फिर उनके साथ ही समय बीताती हूं। बच्चे गेम्स खेलते हैं या सोशल नेटवर्किंग पर काम करते हैं, इस दौरान वह मेरे अंडर आब्जर्वेशन में रहते हैं। मेरा मानना है कि इस उम्र में बच्चों को सही गलत बताने के लिए सबसे ज्यादा जरुरी है कि उनके साथ टाइम गुजारा जाये।

वंदना सिंह, बिजनेस वुमेन

2.यह घटना सुनकर डर गया हूं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि बच्चों के अंदर पढ़ाई को लेकर कितना प्रेशर व डर है, जिसके चलते वो इस तरह के कदम उठा रहे हैं। आज के समय में मोबाइल और वीडियो गेम के साथ टेलीविजन पर दिखाई जा रही चीजें बच्चों पर काफी गलत असर डाल रही हैं। पैरेंटस को चाहिए कि बच्चों को इनसे दूर रखें। क्योंकि इस उम्र में बच्चों को यह पता नहीं होता कि वे क्या कर रहे हैं। ऐसे में उनको सही गाइडेंस की जरुरत है। खासकर टीवी, मोबाइल से उनको जितना हो सके दूर रखें।

जीशान हैदर, कांग्रेस प्रवक्ता

4. मैं और मेरी पत्‍‌नी डॉ। मंजू दोनों वर्किंग में हैं। मेरे दो बच्चे स्कूल जाते हैं। आज के समय में एकल परिवार का चलन काफी बढ़ गया है। ऐसे में जब दोनों लोग वर्किंग में होते हैं तो बच्चों में अकेलेपन के कारण विकृति मानसिकता आ जाती है। मेरी तो ज्वाइंट फैमिली है, इसलिए कोई न कोई उनके साथ रहता है। पर, फिर भी अगर कोई नहीं होता है तो हम दोनों में से कोई एक मैनेज करता है ताकि बच्चों के साथ रह सकें। आज कल गैजेट्स आसानी से उपलब्ध हैं, ऐसे में बच्चों पर ज्यादा ध्यान रखना जरुरी है।

डॉ। वेद प्रकाश