मौलाना आजाद कॉलोनी का बच्चा साहिल है रांची का हामिद

पांच भाई-बहनों वाले परिवार का इकलौता सहारा है साहिल

RANCHI:कांटाटोली चौक के पास लगे शनिवार को ईद मेले में चारों ओर उमंग और उत्साह का माहौल है। रंग-बिरंगे पोशाक में सजे बच्चों से लेकर बड़े-बुजुर्ग तक चहक रहे हैं। कोई अम्मी और अब्बू के साथ झूले का आनंद ले रहा है, तो कोई चाट, पानी पुरी और आईसक्रीम खाते हुए इठला रहा है। कुछ बच्चे गुब्बारे खरीद कर उनमें हवा भरने में जुटे हैं। तभी आवाज आई। गुब्बारे ले लो। गुब्बारे ले लो। अरे, यह क्या ये बच्चा तो सबसे अलग है। जहां दूसरे बच्चे गुब्बारे खरीद रहे हैं, वहीं यह बच्चा गुब्बारे बेचने के लिए आवाज लगा रहा है। जी हां, यह प्रेमचंद की कहानी ईदगाह के कैरेक्टर हामिद की तरह ही रांची का हामिद है। जो अपने परिवार के लिए गुब्बारा बेच रहा है, जिससे उसका घर चलता है। पूछने पर पता चला कि मौलाना आजाद कॉलोनी का रहने वाला यह साहिल है, जिसके पांच भाई-बहन हैं। घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। इस कारण साहिल को खेलने-कूदने की उम्र में ही गुब्बारे बेच पड़ रहा है। यह पूछने पर कि आज ईद है ऐसे में तुम्हारा मन नहीं करता कि हम लोग ईद की खुशियां मनाए। अपने परिजनों-दोस्तों के साथ मेला घूमे। साहिल तपाक से बोल पड़ता है-नहीं साहेब, अपने लिए तो गुब्बारे बिक जाए, तभी ईद की खुशी है। क्योंकि मेला घूमने से ज्यादा जरूरी पेट भरना है।

ख्-मेला घूमने से नहीं, फुचका बेचने से घर चलता है

चर्च रोड का बच्चा है रांची का हामिद

कर्बला चौक पर ईदगाह के पास लगे मेले में बेच रहा है फुचका

कर्बला चौक पर भी ईदगाह के पास मेला लगा है। कुर्ता-पायजामा, चश्मा और टोपी लगाए बच्चे खूब चहचहा रहे हैं। बड़े-बुजुर्ग भी उत्साहित हैं। कोई झूला झूल रहा है, तो कोई दनादन फुचका खाए जा रहा है। अरे, यह क्या। फुचका भी तो बच्चा ही बेच रहा है। नाम पूछने पर उसने बिना मुझे देखे ही बताया, सोनू। बोलिए सर, फुचका दूं या छोला। अरे यह क्या। ये लड़का तो ऐसे बोल रहा है जैसे काफी व्यस्त है। थोड़ी देर बाद जब भीड़ छंटती है। तब फिर मैंने उससे सवाल दागने का साहस किया। हाथ को एक पुराने कपड़े में पोंछते हुए सोनू बताने लगा। क्या कीजिएगा, सर। ईद और मेला तो पैसे वालों के लिए ही होता है। अपने लिए तो खाना जुटाना ही पहाड़ है। फुचका बिक गए। कमाई अच्छी हो गई। तभी पेट भरने वाला है। ऐसे में हमारे लिए तो अच्छी कमाई हो जाए, तभी ईद है। चर्च रोड में रहने वाले इस सोनू का कहना है कि अपनी तो रोज की यही कहानी है। कभी इस चौक पर, तो कभी उस चौक पर फुचका ही बेचना है। क्या करें पापी पेट का सवाल जो है। मेला-त्योहार में तो स्कूल छोड़ना ही पड़ता है, ताकि परिवार को खुशी दे सकूं।