-सुबह 7 बजे से शाम 7 बजे तक मां-बाप क्रेच और क्रेच में छोड़ रहे अपने बच्चों को

<द्गठ्ठद्द>क्चन्क्त्रश्वढ्ढरुरुङ्घ :

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केस:1

-कर्मचारी नगर निवासी महिला सितारगंज की एक बैंक में इम्प्लाई हैं उनके पति सीबीगंज की निजी फैक्ट्री में जॉब करते हैं। नौकरी की मजबूरी में वह दो वर्ष के बेटे को सुबह क्रेच में छोड़ देते हैं। जबकि केजी में पढ़ने वाली बेटी स्कूल जाती है और बाद में वह भी क्रेच में आ जाती है। शाम को सात बजे जब दोनों डयूटी से लौटते हैं तो अपने बच्चों को घर ले आते हैं।

केस:2

-शाहजहांपुर निवासी महिला शहर में किराए पर रहती हैं वह टीचर हैं। जबकि उनके पति डॉक्टर हैं। वह शहर से बाहर तैनात हैं। 7 वर्ष की एक बेटी घर पर अकेले होने के चलते स्कूल के बाद क्रेच में आती है। शाम को जब महिला और पति शहर पहुंचते हैं तो बेटी को क्रेच से लेकर घर जाते हैं। माता-पिता के आने तक वह क्रेच में ही रहती है।

केस:3

-आवास विकास निवासी महिला टीचर है तो पति निजी बैंक में इम्प्लाई हैं। महिला सुबह को स्कूल तो पति बैंक ड्यूटी के लिए निकल जाते हैं। ऐसे में, उन्होंने चार वर्ष के बेटे को क्रेच में रख दिया है। शाम को पत्नी-पत्नी जब लौटते हैं, तो क्रेच से बेटे को लेकर घर जाते हैं।

केस:4

-आवास विकास निवासी महिला शहर में ही अपना ब्यूटीशियन का काम करती है। पति मेडिकल संचालक है। घर पर 5 वर्ष का एक बेटा है लेकिन उसे देखने वाला कोई नहीं है। महिला भी बेटे की पढ़ाई के चलते उसे साथ नहीं रख सकती है। ऐसे में, वह भी अपने बेटे को सुबह से शाम तक क्रेच में रखते हैं।

केस:5

-आवास विकास निवासी महिला रेलवे में अफसर हैं तो पति इंश्योरेंस सेक्टर में जॉब करते हैं। एक बेटी कक्षा 3 में पढ़ाई करती है। जबकि 3 वर्ष का बेटा क्रेच में रहता है। बेटी सुबह तो स्कूल जाती है, लेकिन बाद में वह भी क्रेच में जाती है। शाम सात बजे के बाद मां-बाप लेने के पास पहुंचते हैं।

केस:6

-पिता यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर है तो महिला उसी यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रही हैं। ऐसे में, दो वर्ष के बेटे को सुबह सात क्रेच में छोड़ने के लिए जाते हैं और शाम को जब फ्री होते हैं तो उसे लेने के बाद घर लाैटते हैं।

बच्चे टीवी और मोबाइल पर बिता रहे समय

जॉब करने वाले अधिकांश दंपत्ति की मजबूरी है कि वह अपने बच्चों को समय नहीं दे पा रहे हैं, जिससे बच्चे अपना समय कभी टीवी से तो कभी मोबाइल से चिपक कर काट रहे हैं। कई बार बच्चे हिंसक गेम और कार्टून या फिर नाटक देखकर हिंसा करने में आगे बढ़ने लगते हैं। कई बार तो बच्चे हिंसा कर बैठते हैं तो उसके बाद ही मां-बाप को जानकारी मिलती है। जबकि बच्चों को हिंसात्मक रवैया से दूर रखने के लिए सोशियोलॉजिस्ट भी कहते हैं कि मां-बाप अपने बच्चों को अधिक समय दें और उनके साथ फ्रेंडली व्यवहार रखें। उनकी भावनाओं को समझे।

एकल परिवार भी एक कारण

आज के आधुनिक युग में अधिकांश परिवार ऐसे हैं जो एकल परिवार हैं। वह अपने मां-बाप या फिर संयुक्त परिवार में जीवन यापन करना पसंद नहीं हैं। ऐसे में एकल परिवार में बच्चों को सबसे अधिक समस्या हो जाती है। मां-बाप यदि जॉब के लिए बाहर जाते हैं तो उनके बच्चों को अकेले में रहना पड़ता है या छोटे बच्चों को क्रेच में रहना पड़ता है। एकल परिवारों में दंपत्ति कई बार तो बच्चों को घर पर नौकर के सहारे छोड़कर चले जाते हैं और नौकर बच्चों की भावनाओं को समझ नहीं पाते है और बच्चे उल्टे सीधे काम करने में लगे जाते हैं।