साथ ही यूरोज़ोन का कर्ज़ संकट इटली और स्पेन में भी पसरने की आशंका के बीच एशिया के शेयर बाज़ार में गिरावट दर्ज की गई है।

इस बीच भारत के औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में भारी गिरावट दखने को मिली है।

वर्ष 2010 के मई महीने में जहाँ औद्योगिक उत्पादन सूचकांक 8.5% पर था, तो साल 2011 के मई महीने में ये दर गिर कर 5.6% पर पहुँच चुकी है।

तो क्या इन सबके चलते ये मान लिया जाए कि भारत में भी आर्थिक मंदी अपने पांव पसार रही है?

आर्थिक मामलों के जानकार और फ़ाइनेन्शियल एक्सप्रेस अख़बार के प्रबंध निदेशक एमके वेणु की मानें, तो भारत, चीन और ब्राज़ील को भले ही आर्थिक मंदी ने छुआ हो, लेकिन अगले तीन से पांच सालों में इन्हीं अर्थव्यवस्थाओं में सबसे ज़्यादा आर्थिक विकास देखने को मिलेगा।

बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, “अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल और दूसरी चीज़ों के दाम बढ़ने की वजह से चीन, भारत और ब्राज़ील में महंगाई दर काफ़ी बढ़ गई। लेकिन अब कच्चे तेल की क़ीमत में कमी आई है। जैसे ही इन देशों में महंगाई दर में गिरावट आएगी, वैसे ही आर्थिक विकास में बढ़ोतरी देखने को मिल जाएगी। हाल ही में प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार ने कहा है कि इस साल के अंत तक महंगाई दर 6.5 प्रतिशत तक पहुंच जाएगी, जिससे स्थिति में बहुत सुधार होगा.”

उनका कहना था कि मंदी के बावजूद भी भारत की अर्थव्यवस्था में क़रीब आठ प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जिसका मतलब है कि ज़्यादा चिंता की बात नहीं।

सरकारी कटौती

भारत में आर्थिक मंदी से निपटने की जहां तक बात है, तो इसके लिए प्रशासन सरकारी ख़र्च में कटौती के दिशानिर्देश देता रहा है।

हाल ही में वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने मंत्रियों और अफ़सरों को नए दिशा-निर्देश जारी करते हुए कहा है कि बेवजह विदेश यात्राओं, गैर ज़रूरी पदों पर नियुक्तियों, नए सरकारी वाहनों की ख़रीद-फ़रोख्त और गोष्ठियों-सम्मेलनों पर कम से कम ख़र्च या रोक लगाए जाने की ज़रूरत है।

तो क्या इसका मतलब ये समझा जाए कि अर्थव्यवस्था में सुधार की अपेक्षा के बीच भारत में अनिश्चितता की लहर पनप रही है?

इस पर एमके वेणु का कहना था, “सरकार ने जीडीपी के अनुमान में संशोधन कर उसे कम कर दिया था। तो इसका मतलब है कि अनुमान से कम हो रहे आर्थिक विकास की वजह से सरकार अपने ख़र्च में कटौती करना चाह रही है। अपने लक्ष्य को पाने के लिए सरकार ऐसा क़दम एहतियाती तौर पर उठा रही है.”

उनका कहना था कि भारत, ब्राज़ील और चीन की अर्थव्यवस्था की गति औरों के मुक़ाबले तेज़ है क्योंकि इन देशों में हर क्षेत्र में बाज़ार का विस्तार हो रहा है जबकि अमरीका जैसी अर्थव्यवस्था के बाज़ारों में एक ठहराव सा आ गया है।

 

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