RANCHI: रांची से करीब 80 किमी दूर बुंडू के सोनाहातू से सटे चोकाहातू के मेगालिथ साइट पर शोध की प्रक्रिया तेज होगी। शोध से लगभग 2500 साल पुराने इस रहस्य से पर्दा उठेगा। रांची में मेगालिथिक हिस्ट्री पर होनेवाले इंटरनेशनल सेमिनार में इसपर चर्चा होगी। सेमिनार दस से 12 दिसंबर तक चलेगा। आरयू के टीआरएल डिपार्टमेंट में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ हरि उरांव ने बताया कि चोकाहातू के मेगालिथ साइट पर फॉरेन विजिटर्स न सिर्फ जाएंगे, बल्कि उसपर चर्चा भी होगी। उन्होंने बताया कि चोकाहातू मुंडाओं का हड़गड़ी स्थल है। शोध से इसके रहस्यों से पर्दा उठाने की कोशिश होगी।

शुभाशीष दास ने चलाया है कैंपेन

चोकाहातू के मेगालिथ साइट पर रिसर्च करनेवाले रिसर्चर शुभाशीष दास ने बताया कि जिनके नाम पर रांची में पीपी कंपाउंड है, उन्होंने इस मेगालिथिक साइट को सबसे पहले देखा और इटी डाल्टन को इसकी जानकारी दी। कर्नल इटी डाल्टन ने इस मेगालिथिक साइट पर एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल में एक लेख लिखा था। 1873 में लिखे गए इस लेख में चोकाहातू मेगालिथिक साइट का क्षेत्रफल उन्होंने करीब सात एकड़ में फैला बताया था। वहीं, इसमें 7300 पत्थर गड़े बताए थे। श्री दास ने बताया कि जब मैं वहां गया तो इस मेगालिथिक साइट को देखकर दंग रह गया। मैंने झारखंड में इतने विस्तृत क्षेत्र में मेगालिथिक साइट नहीं देखा था। यहां जो विशाल पत्थर रखे गए हैं वो अधिकांश लाइम स्टोन और ग्रेनाइट के हैं। जहां यह स्थल है वहां कुछ दूरी पर पहाड़ भी हैं। संभवत: यह पत्थर वहीं से लाए जाते रहे होंगे

व‌र्ल्ड हेरिटेज घोषित करने की ये है शर्त (बॉक्स)

यूनेस्को की ओर से व‌र्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित किए जाने की जो शर्ते हैं उसमें साइट का कंटीन्यूड हेरिटेज होना चाहिए। इस शर्त पर भी चोकाहातू का साइट खरा उतरता है। यह असल में मुंडा जाति का हड़गड़ी स्थल है। इसमें आज भी मुंडा जाति के लोग हड़गड़ी करते हैं और यह परंपरा लंबे समय से चली आ रही है। जियोलॉजिस्ट डॉ नितिश प्रियदर्शी ने बताया कि मेगालिथ की परंपरा झारखंड में बहुत पुरानी है। इसे जनजातीय समाज के लोग अपने पूर्वजों की याद में लगाते थे। जब इन स्थलों की खुदाई होगी तो इसका महत्व समझ में आएगा। कार्बन डेटिंग से इसके काल का भी पता चल पाएगा।

बॉक्स का मैटर

मेगालिथ पर उपले सुखाते हैं स्थानीय लोग

चोकाहातू के मेगालिथ साइट को व‌र्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित करने की मांग भले ही रिसर्चर उठा रहे हों, पर स्थानीय लोग इसके महत्व से अनजान हैं। यहां लगे पत्थरों का इस्तेमाल स्थानीय लोग गोबर के उपले सुखाने के लिए करते हैं। इस संबंध में पूछे जाने पर स्थानीय लोगों ने बताया कि यह बहुत पुराना हड़गड़ी स्थल है, हम इतना ही जानते हैं।

वर्जन

चोकाहातू के मेगालिथ साइट की खोज कर्नल इटी डाल्टन ने की थी। उन्होंने इसपर एक लेख एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल में लिखा था। यह मुंडाओं का हड़गड़ी स्थल है। यहां मैं गया था। इतनी विशाल मेगालिथिक साइट पूरे झारखंड में दूसरी नहीं है।

-शुभाशीष दास, मेगालिथिक रिसर्चर

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चोकाहातू के मेगालिथ पर रांची में होनेवाले इंटरनेशनल सेमिनार में चर्चा होगी। फॉरेन से आनेवाले विजिटर्स यहां जायेंगे और इसपर शोध भी होगा।

-डॉ हरि उरांव, असिस्टेंट प्रोफेसर, टीआरएल डिपार्टमेंट, आरयू

चोकाहातू के मेगालिथ प्राचीन काल के हैं। ये कितने पुराने हैं यह कहना मुश्किल है पर रिसर्चरों का कहना है कि ये 2500 साल पुराने हो सकते हैं। यह मुंडा जाति के सांडिल गोत्र का हड़गड़ी स्थल है। जब इस समाज में कोई मर जाता था तो उसकी जलती चिता से एक हड्डी निकाली जाती थी और उसे गाड़कर पत्थर रखा जाता था। यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। आज भी यहां हड़गड़ी की जाती है।

-निरंजन सांडिल, स्थानीय व स्कूल टीचर