ALLAHABAD: धूल और धुएं के प्रकोप से शहर की आबो-हवा खराब होती जा रही है। हालात यह है कि शहर की सड़कों पर चलना मुश्किल होता जा रहा है। जगह-जगह चल रहा कंस्ट्रक्शन वर्क सेहत को नुकसान पहुंचा रहा है। डॉक्टर्स का कहना है कि पिछले कुछ साल में सीओपीडी के मरीजों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। यह जानलेवा बीमारी हर साल लाखों लोगों को अपनी चपेट में ले लेती है।

 

पांच साल में दोगुने हो गए मरीज

डॉक्टरों का कहना है कि पिछले पांच सालों में शहर में सीओपीडी यानी क्रॉनिकल ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज के मरीजों की संख्या दोगुनी हो गई है। इसकी मुख्य वजह लगातार बढ़ता पॉल्यूशन लेवल है। सड़कों से उड़ती धूल और गाडि़यों के धुएं ने लोगों को बीमार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। गौरतलब है कि सीओपीडी से इस बीमारी से हर साल देश में पांच लाख लोगों की मौत हो जाती है। साथ ही ढाई करोड़ इससे पीडि़त हैं।

 

ढाई गुना हो गया है प्रदूषण

बीमारी बढ़ने का सबसे बड़ा कारण पॉल्यूशन लेवल है। आंकड़े बताते हैं कि नवंबर के पहले सप्ताह में शहर का पॉल्यूशन लेवल ढाई गुना तक पहुंच गया। कुछ इलाकों में पीएम टेन 262 तो कुछ जगहों पर यह 155 तक नापा गया। जबकि, सामान्यता पीएम टेन का तय मानक 100 माना गया है। इससे अधिक होने पर पॉल्यूशन की अधिकता को दर्शाता है। फिलहाल इलाहाबाद के लिए यह आंकड़े अलार्मिग सिचुएशन को बयां कर रहे हैं।

 

क्या होती है सीओपीडी

शहर का पॉल्यूशन लेवल कई गुना तक पहुंच गया है। हवा में जहरीले तत्व खतरनाक रोग फैला रहे हैं। ऑक्सीजन के साथ जहरीले तत्व व कार्बन के कण सांस नली में जमा हो जाते हैं। इससे वहां पर सूजन और अवरोध उत्पन्न हो जाता है। इस कारण मरीज को सांस लेने में तकलीफ होती है। यहीं से सीओपीडी की शुरुआत हो जाती है। लगातार ऑक्सीजन की कमी रहने से शरीर के बाकी अंग भी कार्य करना बंद कर देते हैं।

 

फैक्ट फाइल

-सीओपीडी से संबंधित लगभग 90 फीसदी मामले निर्धन और विकासशील देशों में सामने आते हैं।

-भारत में करीब ढाई करोड़ से अधिक लोग इस बीमारी से पीडि़त हैं।

-डब्लूएचओ के अनुसार सीओपीडी दुनिया में मृत्यु का चौथा कारण है और वर्ष 2020 तक यह रोग तीसरा मुख्य कारण बन जाएगा।

- धूम्रपान के अलावा चूल्हे से निकलने वाला धुआं, प्रदूषित वातावरण, फैक्ट्री का धुआं और टीबी की पुरानी बीमारी भी सीओपीडी के प्रमुख कारण हैं।

 

बीस में से दस शहर हैं भारत में

व‌र्ल्ड सीओपीडी डे के मौके पर चेस्ट फिजीशियन डॉ। आशीष टंडन ने एक प्रेसवार्ता के दौरान कहा कि दुनिया के बीस सबसे प्रदूषित शहरों में दस भारत में हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सर्वे के अनुसार नियंत्रित समूह के 20.1 की तुलना में दिल्ली में 40.3 फीसदी लोगों के फेफड़े की वर्किंग प्रभावित हुई है। कहाकि पचास साल से अधिक उम्र के लोगों की मौत में सीओपीडी दूसरा बड़ा कारण माना जाता है। कुल मरीजों में एक चौथाई सीओपीडी से ग्रस्त हैं, जिन्होंने कभी धूम्रपान नहीं किया।

 

सीओपीडी के लक्षण

- खांसी के साथ बलगम आना।

- दिन और रात में सांस लेने में दिक्कत होना।

- सर्दंी, जुकाम या छाती के इंफेक्शन दूर होने में समय लगना।

- चलने-फिरने या सीढि़या चढ़ने में सांस फूलना।

- हल्का काम करने के बाद थकान महसूस करना।

आज हम जिस हवा में सांस ले रहे हैं वह विषैली हो गई है। हवा में मौजूद सूक्ष्म कण हमारे फेफड़ों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। शहरी क्षेत्रों में बढ़ते सांस के मरीजों की संख्या चिंता का कारण बनी हुई है।

-डॉ। आशीष टंडन,

चेस्ट फिजीशियन