-संतो और बटुकों पर बर्बर लाठीचार्ज से हर कोई था नाराज

-अन्याय प्रतिकार यात्रा में आक्रोश दिखाने का मिल गया मौका

VARANASI : अन्याय प्रतिकार यात्रा के दौरान हुआ बवाल अचानक से नहीं हुआ। यह पिछले दिनों हुए साधु-संतों और बटुकों को पुलिस के बर्बर लाठीचार्ज से उपजा आक्रोश था। पूरा शहर लाठीचार्ज के लिए पुलिस और प्रशासन को दोषी बताता रहा। जिन पुलिसकर्मियों ने बटुकों और शांतिपूर्ण धरना दे रहे संतों को निर्ममता से पीटा था उनके खिलाफ कोई कार्रवाई न होने से आक्रोश बढ़ता गया।

हर वर्ग था नाराज

गणेश प्रतिमा विसर्जन रोके जाने के खिलाफ शांतिपूर्ण धरना दे रहे साधु-संतों और बटुकों को ख्फ् सितम्बर की रात पुलिस ने बर्बर लाठी चार्ज किया था। मीडिया की मौजूदगी में हुई निर्मम पिटायी का वीडियो और फोटो रातों-रात फुटेज सोशल मीडिया पर वायरल हो गए। अगली सुबह से ही पूरे शहर में लाठी चार्ज की निंदा शुरू हो गयी। हर किसी के जुबान पर बस एक ही बात थी कि इस बुरी तरह से बटुकों और संतों को पीटना नहीं चाहिए था। पुलिस की कार्रवाई की निंदा करने वालों का कोई वर्ग या मजहब नहीं था। इस मामले पर पूरा शहर एक था। आम आदमी, व्यापारी, नौकरीपेशा, स्टूडेंट, वकील यहां तक कि महिलाएं भी एक सुर में घटना की निंदा करती रहीं। जिन पुलिसकर्मियों ने संतों और बटुकों को पीटा था उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होने से आक्रोश बढ़ता गया।

सबको था यात्रा का इंतजार

संतों ने लाठी चार्ज के खिलाफ पांच अक्टूबर को अन्याय प्रतिकार यात्रा निकालने का ऐलान किया था। ख्ब् सितम्बर से ही इसकी तैयारी होने लगी थी। इस बीच लाठीचार्ज के खिलाफ शहर में आक्रोश छिटपुट तरीके से दिखता रहा। कभी स्टूडेंट तो कभी व्यापारी मार्च, रैली निकालते रहे। लेकिन हर किसी को पांच अक्टूबर का इंतजार था। संत समाज भीड़ जुटाने के लिए जोर लगाए रहा। वहीं शहरवासी भी उनका साथ देने के लिए तैयार होते रहे। तय तिथि पर प्रतिकार यात्रा शुरू हुई तो भीड़ बहुत अधिक नहीं थी लेकिन जैसे-जैसे आगे बढ़ती गयी शहर के लोग जुटते गए। गोदौलिया पहुंचते-पहुंचते विशाल जनसमूह जमा हो गया। प्रशासन और संत समाज को भी इतनी भीड़ की उम्मीद नहीं थी। बवाल के दौरान आक्रोशित भीड़ पुलिस को निशाना बनाने का कोई मौका नहीं छोड़ रही थी।