- रखरखाव में कमी के चलते बीच सड़क खराब हो जाती सिटी बसें

- 220 बसें संचालित, फिर भी अन्य साधनों का लेना पड़ता सहारा

LUCKNOW(27 Sept):

खस्ता हाल सिटी बसों के मेंटीनेंस में एक करोड़ रुपया खर्च हो गया इसके बाद भी यात्रियों को भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। आलम ये है कि सफर के दौरान ही बसें बीच रास्ते में खड़ी हो जाती हैं और यात्रियों को अन्य साधनों को तलाशना पड़ता है। बसों में यात्रियों को बैठने के लिए सीटें भले ना हों फिर भी इन बसों में दिन भर भीड़ जमा रहती है। हालत ये है कि 220 बसों के संचालन के बावजदू यात्री ऑटो, ई रिक्शा से चलने को मजबूर हैं।

ये है सिटी बसों का हाल

- 2009 में जेएनएनआरयूएम योजना के तहत 260 सिटी बसें लाई गई।

- इनमें से 240 बसों का संचालन किया जा रहा है

- दिन भर 220 बसें ऑन रोड रहती है।

- 20 बसें ऐसी हैं जो कभी रोड पर चली ही नहीं

कब और कहां खराब हुई बसें

16 सितम्बर- चिनहट के पास, चारबाग में

12 सितम्बर- गोमती नगर बीबीडी के पास

26 अगस्त- मुंशीपुलिया चौराहे के पास, सिकंदर बाग चौराहे के पास

12 अगस्त- सिकंदर बाग चौराहे के पास

27 जुलाई- निशातगंज चौकी के सामने के

20 जुलाई- टेढ़ीपुलिया चौराहे के पास

3 जुलाई- आलमबाग बस अड्डे के पास

ये है यात्रियों की स्थिति

- रोजाना सफर करने वाले यात्रियों की संख्या-60,000

- एमएसटी से सफर करने वाले यात्रियों की संख्या- 20,000

बसों की खराबी से यात्रियों को होने वाली परेशानियां

जब हमसें किराया पूरा वसूला जाता है, तो बसों का रखरखाव क्यों नहीं किया जाता। एमएसटी बनवाने के बाद हाल यह है कि बसों में सीट नसीब नहीं होती है। सिटी बस प्रबंधन के पास यात्रियों की सुविधा को बेहतरीन बनाने के लिए कोई प्लान नहीं है। आए दिन बसें रास्ते में खराब होती हैं।

विजय गुप्ता

बीच सफर में जब बस खराब होती है तो हमें खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। पहले तो बस से उतरिये। फिर उसी रूट पर आ रही बस कितनी देर में आएगी यह पता नहीं रहता। फिर बस आई तो उसमें आपको जगह मिलती है या नहीं। ऐसे में सिटी बसों की एमएसएटी होने के बाद भी कई बार हमें ऑटो और टैम्पो की सहायता लेनी पड़ती है।

रणवीर सिंह

सुबह के समय बस खराब होने के चलते कई बार स्टूडेंट्स कॉलेज के लिए लेट हो जाते हैं। कॉलेज पहुंचने पर हमें पनिशमेंट भी मिलता है। जब सिटी बसें हमारी लाइफ का हिस्सा बन चुकी हैं, तो आखिर इनके रख रखाव में अनदेखी क्यों की जाती है। सिर्फ मैं ही नहीं राजधानी के कई स्कूलों के बच्चे सुबह के समय इन बसों से स्कूल जाते हैं। सबसे बड़ी समस्या तो तब होती जब पेपर हो और बस खराब हो जाए।

अनीता शर्मा

बस में चढ़ते ही दुआ करना शुरू कर देता हूं कि बीच सफर में बस खराब ना हो, लेकिन अब तो यह रूटीन में शामिल हो गया है। आए दिन सिटी बसें खराब हो रही हैं। बसों के खराब होने पर हम लोगों का पूरा शेडयूल डिस्टर्ब हो जाता है। कई बार तो चालकों और परिचालकों से कहा-सुनी तक हो चुकी है, लेकिन आज तक नतीजा कुछ नहीं निकला।

सुभाष कुमार

'जब यह सिटी बसें आई थीं तब एक प्राइवेट फर्म को बसों के मेंटीनेंस का ठेका दिया गया था, लेकिन साल भर बाद ही कंपनी ने अपने हाथ खींच लिए। तब से बसों की मेंटीनेंस का काम सिटी बस प्रबंधन ही करा रहा है। शुरुआती दौर में सिटी बसों की मेंटीनेंस के लिए बजट ही नहीं मिला। लगभग छह महीने पहले एक करोड़ का बजट मिला था। इसके खर्चे का यूटीलाइजेशन सर्टिफिकेट भी बनाकर शासन को भेजा जा चुका है। सिटी बसें सात साल पुरानी हो चुकी है और इन पर लगातार लोड़ बढ़ता जा रहा है। इसी के चलते यह आए दिन खराब हो रही हैं.'

ए रहमान

एमडी

सिटी बस प्रबंधन