- गोरखनाथ मंदिर में सीएम ने भोजपुरी निबंध संग्रह का किया विमोचन

GORAKHPUR: गोरखनाथ मन्दिर में गुरुवार को महाराणा प्रताप इंटर कॉलेज के हिन्दी प्रवक्ता, योगवाणी के संपादक भोजपुरी साहित्यकार डॉ। फूलचंद प्रसाद गुप्त के भोजपुरी निबन्ध संग्रह 'जागऽ बिहान भइल' का विमोचन किया गया। निबंध संग्रह का विमोचन गोरक्षपीठाधीश्वर व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया।

भाषा-साहित्य के लिए प्रयत्नशील

इस अवसर पर योगी ने कहा कि डॉ। फूलचंद गुप्त भोजपुरी भाषा-साहित्य की समृद्धि के लिए सतत प्रयत्‍‌नशील रचनाकर हैं। यह पुस्तक अपनी संस्कृति और परंपराओं को लेकर लिखी गई है। यह गद्य संग्रह प्रशंसनीय है। इस पुस्तक के माध्यम से भोजपुरी लोक अपनी सांस्कृतिक विरासत के प्रति सचेत होगी। नई पीढ़ी अपने रीति-रिवाज, तीज-त्योहार के माहात्म्य को समझ सकेगी।

सबने दी शुभकामना

सीएम ने कहा कि भोजपुरी भाषा-साहित्य की परम्परा को संग्रह में स्थान देने वाले डॉ। फूलचंद प्रसाद गुप्त इसी प्रकार अपनी सेवाएं निरन्तर जारी रखते हुए भोजपुरी भाषा और साहित्य को और अधिक समृद्ध करें, ऐसी शुभकामना है। पूर्वाचल यूनिवर्सिटी, जौनपुर के पूर्व कुलपति प्रो। यूपी सिंह ने निबन्ध संग्रह की संस्कृति को जीवन्त बनाये रखने में इसे प्रशंसनीय प्रयास कहा व लेखक को शुभकामना दी। गोरखपुर के जिलाधिकरी राजीव रौतेला ने भी शुभकामना दी। इस अवसर पर मन्दिर कार्यालय सचिव द्वारिका तिवारी ने संग्रह की प्रशंसा की। डीडीयूजीयू के हिन्दी विभाग में भाषा-विज्ञान के शिक्षक प्रो। राम दरश राय ने संग्रही की प्रशंसा करते हुए लेखक को शुभकामना दी।

संस्कृति-परंपरा को सहेजेगा निबंध संग्रह

भोजपुरी के वरिष्ठ साहित्यकार रवीन्द्र श्रीवास्तव जुगानी ने कहा कि डॉ। फूलचंद गुप्त का यह निबन्ध संग्रह लोक संस्कृति-परम्परा को सहेजने का संग्रह है। इनका अपनी माटी और अपनी भाषा के प्रति लगाव इस संग्रह से स्पष्ट है। श्री गुप्त का यह का प्रयास प्रशंसनीय है। एमपी पीजी कॉलेज, जंगल धूसड़ के प्रिंसिपल डॉ। प्रदीप कुमार राव ने कहा कि डॉ। फूलचंद गुप्त योग्य शिक्षक के साथ ही साथ कवि, कहानीकर और निबन्धकर भी हैं। इस अवसर पर पन्तनगर, उत्तराखंड के प्रो। जेपी सिंह गौतम, वारिष्ठ वैज्ञानिक डॉ। आरपी सिंह, विनय गौतम और मारवाड़ के प्रिंसिपल आरयन गुप्त उपस्थित रहे।

वर्जन

अपनी माटी, भाषा और संस्कृति के प्रति सबके दिल में प्रेम होना ही चाहिए। इनके लिए यथासंभव सेवा का प्रयास होना चाहिए। इसी अपेक्षा को ध्यान में रखकर यह संग्रह सबके समक्ष है।

- डॉ। फूलचंद गुप्त, लेखक